कोरोना डायरी | Corona diary “तुम्हारी फाइलों में गाँव का मौसम गुलाबी है मगर ये आँकड़े झूठे हैं ये दावा किताबी है” आजादी के 73 साल बाद भी गाँव और किसान की हालत क्यों नहीं बदली? इस सवाल पर सरकार के पास सिवाए जुमले के कुछ नहीं है। गाँव की हकीकत दयनीय है, लेकिन फिर भी नेता हिन्दू-मुस्लिम करके अपना …
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तुम इतराते रहे हो अपने शहरी होने पर जनाब! काश! हम भी गाँव वापस लौट पाते
कोरोना काल से- गुफ्तगू/पैदल रिपोर्टिंग “शहर रहने लायक बचे नहीं हैं। छोटे कस्बे और गाँव ही मुफ़ीद हैं। काश! हम भी गाँव वापस लौट पाते।” जाने-माने कवि मदन कश्यप जी कल पलाश विश्वास जी से मोबाइल पर बतिया रहे थे। बोले, “दिनेशपुर तराई का सबसे अच्छा इलाका है, वहीं किराये पर कमरा दिला दो।” मैं गुफ्तगू सुनकर मुस्कुरा भर दिया। …
Read More »कोरोना काल से- जमीन से कटा साहित्यकार घमंडी, झूठा, धूर्त और अवसरवादी होता है
“मुँह पर उंगली उठाकर कड़ी आलोचना करने से आज के स्वयंभू मूर्धन्य साहित्यकारों की गीली-पीली हो जाती है। आज के दौर में जो जितना बड़ा साहित्यकार, लेखक है, वो उतना ही जमीन से कटा हुआ, घमंडी, झूठा, धूर्त और अवसरवादी है। किताबों की सेटिंग से ऐय्याशी करने वाले लेखक यह कतई बर्दाश्त नहीं कर सकते कि कोई उनसे मुँह पर …
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