“मुँह पर उंगली उठाकर कड़ी आलोचना करने से आज के स्वयंभू मूर्धन्य साहित्यकारों की गीली-पीली हो जाती है। आज के दौर में जो जितना बड़ा साहित्यकार, लेखक है, वो उतना ही जमीन से कटा हुआ, घमंडी, झूठा, धूर्त और अवसरवादी है। किताबों की सेटिंग से ऐय्याशी करने वाले लेखक यह कतई बर्दाश्त नहीं कर सकते कि कोई उनसे मुँह पर …
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