देह छोड़ दिया जुगनू शारदेय ने. उससे पहले उस देह की जितनी दुर्गति करानी थी, कराई. लावारिस थे, चुनांचे पंचतत्व में विलीन नहीं किये गए. फूँक दिया किसी ने उस अनधियाचित शरीर को. पहचान भी लिये जाते कि ये पत्रकार जुगनू शारदेय हैं, तो कौन सा बिहार सरकार बंदूकों की सलामी और राजकीय सम्मान के साथ उनका दाह संस्कार करती? …
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