सुप्रसिद्ध कवि अप्रसिद्ध कवियों की कवितायें नहीं पढ़ते अप्रसिद्ध कवियों की कवितायें पढ़ने से सुप्रसिद्ध कवियों के अहम के पतित होने का डर होता है… सुप्रसिद्ध कवि याद करते हैं अपने अप्रसिद्धि के समय को.. कितना तो मिलने जाया करते थे वे प्राय: .. अपने से अधिक सुप्रसिद्ध कवियों से विनीत भाव के साथ.. अकादमी और पत्रिकाओं के दफ़्तरों की …
Read More »Tag Archives: डॉ. कविता अरोरा
इन दिनों सँपेरों का राज है…करे क़ानून का बखान/ है अंगूठे पर संविधान/ डिवाइड एंड रूल/ जनता ब्लडी फूल
इन दिनों सँपेरों का राज है जो गूँगा है बहरा है इसीलिये जनता की जबान पर सख़्त पहरा है जो उड़ाये खिल्ली उसे दूरबीन से देखती है दिल्ली और अपना तमाम शिशटम (सिस्टम) खींच कर मुँह पर फेंकती है उनके झोले में काग़ज़ के साँप हैं मंतर मारने में वो सबका बाप है उनकी ख़िलाफ़त में जो आता है वो …
Read More »संतोष आनंद के साथ एक प्यार का नग्मा 10 जनवरी को शाम 7 बजे
Ek Pyar ka nagma hai with Santosh Anand नई दिल्ली, 08 जनवरी 2021. एक प्यार का नग्मा गीत के मशहूर शायर संतोष आनंद फेसबुक पर लगातार सक्रिय हैं। नई दिल्ली, 08 जनवरी 2021. आगामी 10 जनवरी 2021 को Santosh Anand Facebook page पर संतोषानंद लाइव होंगे। संतोष आनंद एक सुप्रसिद्ध भारतीय गीतकार हैं, जिन्होंने 1970 के दशक में सफलता प्राप्त …
Read More »तेरी संस्कृति के क़िस्से/ मुझसे और नहीं बाले जाते/ तुझसे दो कौड़ी के छोरे/ तलक नहीं संभाले जाते…
बड़े ही स्याह मंज़र हैं उनके फेंके… किसी रंग की रौशनी यहाँ तक पहुँचती ही नहीं मैं क्या करूँ..? कैसे दिखाऊँ…? यह मंज़र क्या ले जाऊँ.. इन मासूमों को घसीट कर.. लाल क़िले की प्राचीर तक.. या फिर एय लाल क़िले तुझे उठा कर ले आऊँ इस अंधे कुएँ की मुँडेर तलक कैसे चीख़ूँ कि तमाम ज़ख़्मी जिस्मों की चीख़ …
Read More »तुम मुझे मामूल बेहद आम लिखना
तुम मुझे मामूल बेहद आम लिखना जब भी लिखना फ़क़त गुमनाम लिखना यह शरारों की चमक यह लहजों की शहद रौशनी की शोहरतें दियों की जद्दोजहद मशहूरियत की ख़्वाहिश बेवजह की नुमाइश ये चमकते हुए दर सजदों में पड़े सर एय ऐब-ए-बेताबी तू सुन …. कामयाबी … धूप का तल्ख सफ़र है पैरों तले की ज़मीन जलेगी छांव नहीं देगी …
Read More »सुबह के इस मौन इश्क़ को पढ़ा है तुमने ?
शबनमीं क़तरों से सजी अल सुबह रात की चादर उतार कर , जब क्षितिज पर अलसायें क़दमों से बढ़ती हैं , उन्हीं रास्तों पर पड़े इक तारे पर पाँव रख चाँद फ़लक से उतर कर सुबह को चूम लेता है, नूर से दमकती शफ़क़ तब बोलती कुछ नहीं , चिड़ियों की चहचहाटों में सिंदूर की डिबिया वाले हाथ को चुप …
Read More »हाँ मैं बेशर्म हूँ….रवायतें ताक पर रख कर खुद अपनी राह चलती हूँ
हाँ मैं बेशर्म हूँ…. झुंड के साथ गोठ में शामिल नहीं होती रवायतें ताक पर रख कर खुद अपनी राह चलती हूँ तो लिहाजों की गढ़ी परिभाषाओं के अल्फ़ाज़ गड़बड़ाने लगते हैं.. और खुद के मिट जाने की फ़िकरों में डूबी रिवाजी औरतों की इक बासी उबाऊ नस्ल सामने से वार करती है… झुंड में यह मुँह चलाती भेड़ें भरकस …
Read More »रात भर आज रात का जश्न चलेगा.. सुरूर भरी आँखों वाली शब जब देखेगी उजाला
उफ़्फ़ दिसम्बर की बहती नदी से बदन पर लोटे उड़ेलने की उलैहतें .. इकतीस है हर साल की तरह फिर रीस है .. घाट पर ख़ाली होगा ग्यारह माह के कबाड़ का झोला .. साल फिर उतार फेंकेगा पुराने साल का चोला .. जश्न के वास्ते सब घरों से छूट भागेंगे .. रात के पहर रात भर जागेंगे .. दिसम्बरी …
Read More »बेड़ा गर्क है.. सस्ता नेटवर्क है.. इकोनॉमी पस्त है.. पर सब चंगा सी
रोज दिखती हैं मुझे अखबार सी शक्लें…. गली मुहल्ले चौराहों पर इश्तेहार सी शक्लें… शिकन दर शिकन क़िस्सा ग़ज़ब लिखा है.. हिन्दू है कि मुस्लिम माथे पे ही मज़हब लिखा है…. पल भर में फूँक दो हस्ती ये मुश्त-ए-ग़ुबार है.. इंसानियत को चढ़ गया ये कैसा बुखार है.. खेल नफ़रतों का उसने ऐसा शुरू किया .. अमन पसंद चमन का …
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