जो ठाना है, वो पाना है। जब तक तोड़ेंगे नहीं, तब तक छोड़ेंगे भी नहीं। ये शब्द आज भी, हमारे कानों में गूंजते हैं, उस एक अदना से, गाँव के आदमी, दशरथ माँझी के, जो देखने में साधारण था, लेकिन अंदर से था, असाधारण । उस एक आदमी ने, जिसने जब ठान लिया, मीलों तनकर खड़े, पहाड़ को तोड़कर, सपाट …
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