जब-जब प्रेमचंद की चर्चा शुरू होती है तब तब प्रेमचंद को उनके वैचारिक व रचनात्मक सरोकारों से मुक्त कर ‘प्रेमचंद की परम्परा’ के नाम पर अमूर्त बहस छेड़ दी जाती है. अमूमन इस बहस के दो छोर होते हैं. एक छोर पर इस परंपरा में प्रेमचंद के पूर्ववर्तियों से लेकर सभी समकालीनों को शामिल करने की उदारता बरती जाती है …
Read More »Tag Archives: प्रेमचंद और भारतीय समाज
यदि प्रेमचंद आज भारत के प्रधानमंत्री होते !
प्रेमचंद जयंती पर जरूरी सवाल | Important questions on Premchand Jayanti आज साहित्य से लेकर जीवन तक सारवान भौतिक तत्व घट रहा है। साहित्यकार निर्मित बहसें, निर्मित यथार्थ और निर्मित प्रशंसा में मगन हैं। इनमें कहीं पर भी सबस्टेंस नहीं नजर आ रहा। जो लेखक भूमंडलीकरण पर बहस कर रहे हैं, वे भूमंडलीकरण का क-ख-ग तक नहीं जानते। जो बाजारवाद …
Read More »प्रेमचन्द का पाठ वस्तुतः गरीब, दरिद्र और वंचितों का पाठ है
प्रेमचंद और आलोचना की चुनौतियाँ -1 | Premchand and the challenges of criticism-1 इस समय आलोचना जिस संकट में है उसमें नए –पुराने दोनों ही किस्म के समालोचकों के पास जाने की जरूरत है। आलोचना के संकटग्रस्त होने की अवस्था में पुराने आलोचक और सिद्धांत ज्यादा मदद करते हैं। हिन्दी में नया संकट दो स्तर पर है। पहला संकट यथार्थबोध के …
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