जंगलों में कुलांच भरता मृग सोने का है या मरीचिका ? जानना उसे भी था मगर कथा सीता की रोकती है खींच देता है लखन,लकीर हर बार धनुष बाण से संस्कृति कहती दायरे में हो, हो तभी तक सम्मान से हाँ यह सच है रेखाओं के पार का रावण छलेगा फिर खुद को रचने में सच का आखर आखर …
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