प्रेमचन्द से राजेन्द्र यादव तक के देखे सपनों का पूरा होना आज अगर राजेन्द्र यादव होते तो बहुत खुश होते। जनवरी 1993 में हंस के सम्पादकीय में उन्होंने एक अलग रुख लिया था। 6 दिसम्बर 1992 को बाबरी मस्जिद तोड़ने पर, जब सभी बुद्धिजीवी , पत्रकार , सम्पादक राजनेता, सामाजिक कार्यकर्ता एक स्वर से कट्टर हिन्दुत्व की निन्दा कर रहे …
Read More »