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आर्थिक मंदी के कारण बिजली की मांग अपने सबसे कम स्तर पर, तीन राज्य 'कोई नया कोयला नहीं' नीति घोषित कर सकते हैं : रिपोर्ट

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hastakshep
05 Dec 2019
आर्थिक मंदी के कारण बिजली की मांग अपने सबसे कम स्तर पर, तीन राज्य 'कोई नया कोयला नहीं' नीति घोषित कर सकते हैं : रिपोर्ट

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Tamil Nadu, Rajasthan, and Karnataka could declare ‘no new coal’ policy: Report

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नई दिल्ली, 5 दिसंबर (अमलेन्दु उपाध्याय) : ‘Winds of Change: No New Coal States of India’ या बदलाव की हवा : भारत के कोई कोयला नहीं नीति वाले राज्य” शीर्षक के एक नए विश्लेषण के अनुसार, तीन भारतीय राज्य राजस्थान, तमिलनाडु और कर्नाटक, गुजरात और छत्तीसगढ़ के नक्शेकदम पर चलते हुए 'कोई नया कोयला नहीं' नीति घोषित कर सकते हैं। इसका मतलब है कि इन राज्यों को भविष्य में किसी भी नए कोयला बिजली संयंत्र की आवश्यकता नहीं होगी, और उनकी भविष्य की ऊर्जा संबंधी सभी मांगें अक्षय और स्थिति के अनुसार आधारित ऊर्जा के द्वारा प्रभावी ढंग से पूरी की जा सकती हैं।

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नई दिल्ली स्थित एक जलवायु संचार संगठन क्लाइमेट ट्रेंड्स (Climate Trends) द्वारा जारी की गई रिपोर्ट, जो कि - वर्तमान आर्थिक सूचकों और निदेशकों, राज्यों की स्थापित बिजली क्षमता, बिजली उत्पादन और नवीकरणीय ऊर्जा (RE) क्षमता के विश्लेषण के साथ-साथ इसके प्रभावों के आधार पर निष्कर्ष निकालती है, साथ ही साथ कोयले की ऊर्जा से होने वाले वायु प्रदूषण का प्रभाव और पानी की समस्या का भी विश्लेषण करती है, में बताया गया है कि

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“हमारा विश्लेषण भारत में कोयले के इस्तेमाल के अंत होने की शुरुआत की पुष्टि करता है। गुजरात जो कि देश का सबसे बड़ा औद्योगिक राज्य है और छत्तीसगढ़ जो कि सबसे बड़ा कोयला उत्पादन करने वाला राज्य है इनके द्वारा कोयला शक्ति से बाहर निकलने का निर्णय साफ़ साफ़ जाहिर करता है कि अभी तक इस्तेमाल की जाने वाली fossil  टेक्नोलॉजी जिससे अभी तक दुनिया संचालित होती आई है एक ख़राब अर्थनीति है। साथ ही साथ, यह अक्षय ऊर्जा की विश्वसनीयता और प्रतिस्पर्धात्मकता के लिए विश्वास का एक बहुत बड़ा वोट है, "

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 कर्नाटक, राजस्थान, तमिलनाडु देश में उच्चतम RE (नवीकरणीय ऊर्जा) क्षमता वाले राज्य हैं। उनकी स्थापित RE क्षमता कोयले की शक्ति से या तो अधिक है या इससे आगे निकलने के रास्ते पर हैं।

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राजस्थान में, कुल स्थापित कोयला सयंत्र क्षमता 11.6 GW है, जबकि RE + हाइड्रो 11.1 GW है। कर्नाटक में गैर-जीवाश्म की स्थापित क्षमता 63% है, कोयले की क्षमता 9 GW है, जबकि RE + हाइड्रो 17.9 GW है। इसी तरह, तमिलनाडु में गैर जीवाश्म 2.3 GW अधिक है जीवाश्म से, कोयला 13.5 GW पर है जबकि RE + हाइड्रो 15.6  GW पर है।

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कम उप्लब्धता और उच्च परिवहन लागत के कारण वहां कोयला बिजली भी अधिक महंगी है।

दूसरी ओर, सौर और पवन ऊर्जा की लागत नए non-pithead कोयला बिजलीघर (एक विशेष तरीके से बनाया गया सयंत्र) की तुलना में 30-50% कम है। साथ ही पानी की कमी के कारण इन तीनो राज्यों में प्लांट का पूरा उपयोग औसतन 60% से कम है। इसके कारण बिजली बनाने वाले और बिजली का वितरण करने वाले दोनों के लिए वित्तीय खींचतान ज़्यादा बढ़ गया।

सबसे अधिक नवीकरणीय ऊर्जा (RE) क्षमता वाला राज्य राजस्थान में सौर ऊर्जा के लिए प्रति यूनिट मूल्य (` 2.44 / यूनिट या $ 0.034 / यूनिट) सबसे कम है। इसी तरह तमिलनाडु में पवन ऊर्जा की सबसे अधिक स्थापित क्षमता है, साथ ही 1500 MW  में सबसे बड़ा पवन ऊर्जा खेत भी है।

कर्नाटक में 65 मिलियन की आबादी (फ्रांस की जनसंख्या के समान, और कनाडा की जनसंख्या से दोगुनी) के साथ, इस साल जुलाई के महीने में लगातार तीन दिनों के लिए सौर और पवन ऊर्जा परियोजनाओं से अपनी 50% से अधिक बिजली की मांग को पूरा किया।

आंकड़े बताते हैं कि कोयला से बिजली पैदा करने वाले राज्यों से बिजली खरीदने की उच्च लागत और ग्राहकों के लिए भारी सब्सिडी देने के कारण बिजली वितरण कंपनियों पर ऋण का बोझ बढ़ा रहा है। राजस्थान, कर्नाटक और तमिलनाडु का संयुक्त ऋण $ 6bn, या ` 43,562 करोड़ है।

 क्लाइमेट ट्रेंड्स की निदेशक आरती खोसला (Aarti Khosla, Director Climate Trends),  के अनुसार,

“राजस्थान, कर्नाटक और तमिलनाडु राज्यों में देश की DISCOM (विद्युत वितरण कंपनियों) के आधे से अधिक ऋण हैं। फिर भी, तमिलनाडु में भारत में सबसे अधिक नई कोयला बिजली पाइपलाइन है। तमिलनाडु और राजस्थान राज्य सरकारों की निशुल्क बिजली देने की बिलकुल भी क्षमता नहीं है क्योंकि इन राज्यों के DISCOM की आर्थिक हालत बहुत ज़्यादा ख़राब है। उनके लिए अपना बकाया चुकाने का एकमात्र तरीका है सस्ती बिजली खरीदना, जो कि नवीकरणीय ऊर्जा (RE) से हासिल की हो”।

भारत में बिजली की मांग (Electricity demand in India) आर्थिक मंदी के कारण अभी संभवत: अपने सबसे कम स्तर पर है।

मानसून के सीजन में वृद्धि तथा सौर और पवन ऊर्जा की बढ़ती क्षमता के कारण, अक्टूबर 2019 में पारंपरिक स्रोतों से बिजली उत्पादन में 12.9% (वर्ष-दर-वर्ष) की गिरावट आई है। इस बीच, इसी अवधि के दौरान अक्षय ऊर्जा उत्पादन में 9.3% की वृद्धि हुई है। इस वृद्धि को राष्ट्रीय ऊर्जा भंडारण मिशन (NESM) से और बढ़ावा मिलने की उम्मीद है, जो भारत की ऊर्जा भंडारण क्षमता को बढ़ाने तथा सौर और पवन ऊर्जा पर अधिक निर्भरता बढ़ाने का इरादा रखता है।

वर्तमान में आर्थिक और मौसम की स्थिति से बिजली का उत्पादन और खपत पर अनपेक्षित प्रभाव पड़ा है। पनबिजली और नवीकरणीय ऊर्जा से बिजली के उत्पादन में बढ़ोतरी हुई है, जबकि कोयले से बिजली के उत्पादन में कमी आई है। भविष्य के लिए बिजली उत्पादन योजनाओं के पुर्विचार के लिए ये बिलकुल सही स्थिति हैं। RE (नवीकरणीय ऊर्जा) न केवल DISCOM ऋणों को हल करने में मदद कर सकता है, बल्कि एक धीमी अर्थव्यवस्था में नए रोजगार बढ़ाने में भी मदद कर सकता है।

रिपोर्ट के विश्लेषण में आगे बताया गया है कि इन राज्यों के अतिरक्त 12 और भारतीय राज्य हैं जो 'कोई नया कोयला नहीं' नीति की आसानी से घोषणा करने की स्थिति में हैं, क्योंकि उन सभी राज्यों की RE (नवीकरणीय ऊर्जा) क्षमता बहुत अधिक है। इनमें से कई राज्य भारत के उत्तर-पूर्व में स्थित हैं और उन सभी राज्यों की कोयले उत्पादन क्षमता भी कम है। उनकी आर्थिक और बिजली मांग की प्रोफाइल उन्हें इस परिवर्तन के लिए अच्छी तरह से अनुकूल बनाती है।

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