Advertisment

आगे अहंकारी महाराजा ज्योतिरादित्य सिंधिया की भारी दुर्गति सुनिश्चित है

New Update
अब सड़क पर नहीं राज्यसभा में आवाज उठाएंगे सिंधिया !

The arrogant Maharaja Jyotiraditya Scindia's heavy misery is ahead

Advertisment

सिंधिया ने कहा है कि कांग्रेस में रहते हुए जनता की सेवा अब संभव नहीं है।

सवाल है कि जब वे कांग्रेस में थे और केंद्र में मंत्री भी, तब की कांग्रेस और आज की कांग्रेस में कौन सा फ़र्क़ है ? सिवाय इसके कि तब कांग्रेस सत्ता में थी और आज सत्ता में नहीं है, क्या कांग्रेस में लेश मात्र भी फ़र्क़ आया है ?

Scindia believes that 'public' cannot be served by staying out of power!

Advertisment

इसका अर्थ है कि सिंधिया मानते हैं कि सत्ता के बाहर रह कर ‘जनता’ की सेवा नहीं की जा सकती है ! एक कथित तौर पर बड़ा नेता ऐसी बात तब कह रहा है जब देश में जनतांत्रिक व्यवस्था है जिसमें सत्ता पक्ष के अलावा विपक्ष को भी राज्य का एक अविभाज्य अंग माना जाता है !

जनतंत्र में सत्ताधारी पक्ष सत्ता में होता है तो विपक्ष भी सत्ता के समान दावेदार के रूप में पूरे सत्तातंत्र का ही एक हिस्सा होता है। किसी भी पक्ष का सत्ता पर परम अधिकार जैसी धारणा का जनतंत्र में कोई स्थान नहीं होता है।

यह तो राजशाही और शासन की तानाशाही फासिस्ट व्यवस्थाओं की विशिष्टता है, जिसमें विपक्ष की उपस्थिति से इंकार करके चला जाता है। अर्थात् जो सत्ता में है, वहीं सब कुछ है, बाक़ी सभी शून्य है।

Advertisment

सिंधिया वंशानुगत रूप में भारत के एक राजपरिवार से आते हैं। जो इन्हें व्यक्तिगत रूप से जानते हैं, वे उन्हें एक अहंकारी महाराजा भी कहते हैं।

भारत में आज़ादी के दिनों से ही आरएसएस की यह विशिष्टता रही है कि वह एक ओर तो पेशवाओं की हिंदू पद पादशाही के आदर्श को मानता रहा है और इसीलिये कांग्रेस की जनतांत्रिक राजनीति के विरुद्ध कई रियासती राजाओं से आरएसएस के गहरे संबंध रहे हैं। आरएसएस को खड़ा करने में उनकी भूमिका के तमाम प्रमाण मौजूद है।

ग्वालियर के सिंधिया राज्य से आरएसएस का रिश्ता तभी से रहा है। वहीं, दूसरी ओर आरएसएस का मूलभूत आदर्श मुसोलिनी और हिटलर का फासीवाद रहा है।

Advertisment
Rajmata Vijaya Raje Scindia's central role in formation of Jana Sangh and BJP

Arun Maheshwari - अरुण माहेश्वरी, लेखक सुप्रसिद्ध मार्क्सवादी आलोचक, सामाजिक-आर्थिक विषयों के टिप्पणीकार एवं पत्रकार हैं। छात्र जीवन से ही मार्क्सवादी राजनीति और साहित्य-आन्दोलन से जुड़ाव और सी.पी.आई.(एम.) के मुखपत्र ‘स्वाधीनता’ से सम्बद्ध। साहित्यिक पत्रिका ‘कलम’ का सम्पादन। जनवादी लेखक संघ के केन्द्रीय सचिव एवं पश्चिम बंगाल के राज्य सचिव। वह हस्तक्षेप के सम्मानित स्तंभकार हैं। Arun Maheshwari - अरुण माहेश्वरी, लेखक सुप्रसिद्ध मार्क्सवादी आलोचक, सामाजिक-आर्थिक विषयों के टिप्पणीकार एवं पत्रकार हैं। छात्र जीवन से ही मार्क्सवादी राजनीति और साहित्य-आन्दोलन से जुड़ाव और सी.पी.आई.(एम.) के मुखपत्र ‘स्वाधीनता’ से सम्बद्ध। साहित्यिक पत्रिका ‘कलम’ का सम्पादन। जनवादी लेखक संघ के केन्द्रीय सचिव एवं पश्चिम बंगाल के राज्य सचिव। वह हस्तक्षेप के सम्मानित स्तंभकार हैं।

  जनसंघ और भाजपा के गठन में राजमाता विजयाराजे सिंधिया की केंद्रीय भूमिका से सब परिचित हैं। उनकी बोटियाँ भी उनके ही पदचिह्नों पर चल रही है। उनका शिक्षित बेटा माधवराव सिंधिया अपने जनतांत्रिक बोध के कारण आरएसएस से अलग रहा, लेकिन अब माधवराव सिंधिया के बेटे ने फिर से राज परिवार की राह पकड़ ली है।

Advertisment

यही वह पृष्ठभूमि है जिसमें ज्योतिरादित्य यह मानता है कि सत्ता से हट चुकी कांग्रेस उसके काम की नहीं है, क्योंकि उनके राजशाही के आदर्श कहते हैं कि जो सत्ता में नहीं है, वह राज्य के कामों के लिये किसी काम का नहीं है।

सिंधिया की तरह के लोग तभी राजनीति में होने का कोई मतलब समझते हैं, जब वे सत्ता में हो। यही वजह है कि समय के साथ ऐसे लोग सत्ता के पीछे दौड़ते-दौड़ते अपने वजूद को खोकर बुरी तरह से अपनी दुर्गति कर लिया करते हैं। ज्योतिरादित्य खुद को उसी दिशा में झोंक चुका है। आने वाले दिन अंतत: उसकी चरम बदहवासी के दिन ही साबित होंगे।

-अरुण माहेश्वरी

https://www.hastakshep.com/it-is-shameful-and-anti-national-to-have-children-of-scindia-family-in-any-political-party-of-indian-democracy/

Advertisment
सदस्यता लें