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Akhilesh Yadav Yogi Aditynath
The beginning of corruption and controversies that took place in the Akhilesh government became more complicated in the Yogi government.
उत्तर प्रदेश की योगी सरकार में बेकारी के भयावह होने से निपटने के किसी नीतिगत समाधान के अभाव से युवाओं के अंधकारमय भविष्य को लेकर गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं। कोविड-19 महामारी के दौर में बेकारी के सवाल से निपटने में मोदी व योगी सरकार जिस तरह से अक्षम साबित हुई है इसे छोड़ भी दिया जाये, तो भी इसके पूर्व भी उत्तर प्रदेश में योगी सरकार के कार्यकाल में बेरोजगारी (Unemployment during Yogi government's tenure) राष्ट्रीय औसत से भी ज्यादा रफ्तार से बढ़ी और यह मालूम ही है कि राष्ट्रीय स्तर पर मोदी सरकार के इन 6 वर्षों में आजादी के बाद रिकॉर्ड स्तर पर बेरोजगारी दर्ज की गई।
Investment in Uttar Pradesh, employment generation and government job propaganda
उत्तर प्रदेश में निवेश, रोजगार सृजन और सरकारी नौकरी देने का प्रोपेगैंडा तो खूब किया गया है। जो भी इस प्रोपेगैंडा की जमीनी हकीकत से वाकिफ नहीं होगा, उसे ऐसा आभास होगा कि प्रदेश में योगी सरकार ने रोजगार के मोर्चे पर बढ़िया काम किया है। भाजपा योगी सरकार की इस कामयाबी का बड़े जोरशोर से प्रचार करने में काफी आगे है।
अपने मैनीफेस्टो में भाजपा ने इस सवाल पर प्रमुख वादा यह किया था कि 70 लाख रोजगार का सृजन किया जायेगा, सरकारी विभागों में खाली समस्त पदों को 90 दिनों के अंदर चयन प्रक्रिया शुरू कर उन्हें भरा जायेगा, चयन प्रक्रिया में भ्रष्टाचार दूर किया जायेगा और इसे पारदर्शी बनाया जायेगा।
What happened to investors meet in Uttar Pradesh
भले ही सरकार यह दावा करे कि रोजगार सृजन प्रदेश में भारी पैमाने पर हुआ है लेकिन पहले ही हम इस पर लिख चुके हैं कि प्रदेश में इंवेस्टर्स मीट आदि का क्या हश्र हुआ है, बेहद कम निवेश अभी तक हुआ है, प्रोपेगैंडा जरूर एक बार इंवेस्टर्स को लेकर जोरशोर से जारी है, दरअसल प्रोपैगेंडा के सिवाय रोजगार सृजन के सवाल पर इस सरकार की योजनाएं ऐसी दिखाई नहीं दे रही हैं जिन पर विचार किया जा सके।
अरसे से बेकारी संकट की इसी पृष्ठभूमि में सरकारी नौकरियों के संबंध में भी विचार करना चाहिए।
उत्तर प्रदेश समेत अन्य राज्यों व केंद्र सरकार द्वारा जो दशकों से खाली पद हैं क्या उन्हें भरने की नीति ली गई है, आखिर बेकारी के इस भयावह दौर में 24 लाख से ज्यादा खाली पदों (सृजित)को भरने में अवरोध क्या है। यहां उत्तर प्रदेश में हम इस संदर्भ में विचार करेंगे।
योगी सरकार अपने प्रोपैगैंडा में दावा करती है कि प्रदेश में पारदर्शी चयन प्रक्रिया बहाल किया है और पिछली सरकार के भ्रष्टाचारियों को संरक्षण देने की नीति के विपरीत जीरो टालरेंस की नीति पर सरकार अमल कर रही है और सरकारी नौकरी देने के अपने वादे को तेजी से पूरा कर रही है। लेकिन इसकी सच्चाई क्या है, इसकी जांच पड़ताल जरूरी है।
योगी सरकार ने पहला साल तो आयोगों के पुनर्गठन में लगा दिया, पारदर्शी बनाने के लिए इसे जरूरी बताया गया। पारदर्शिता तो पुनर्बहाल नहीं हुई लेकिन अपने चहेते, प्रशासनिक तौर पर अक्षम, भ्रष्ट लोगों की नियुक्ति से जाने-अनजाने पैदा किये गए विवादों, मामलों के न्यायिक प्रक्रिया में उलझने से जो चयन प्रक्रिया चल भी रही थी वह भी बेपटरी हो गई। पेपर लीक, धांधली, प्रश्न पत्रों के विवाद से लेकर एक के बाद एक विवादों की अंतहीन श्रंखला बन गई जिसके समाधान की प्रदेश सरकार की न तो कोई नीति है और न ही ऐसा करने को वह इच्छुक ही प्रतीत होती है।
क्या वास्तव मे सरकारी नौकरी देने की नीति है?
उदार अर्थव्यवस्था की हिमायत कर रही सभी सरकारों की यह सुस्पष्ट व घोषित नीति है कि सरकारी खर्च को घटाने के लिए आउटसोर्सिंग व संविदा के तहत काम कराया जाये। लेकिन जनदबाव में कभी समायोजन तो कभी कुछ नौकरियां देनी पड़ती हैं। उत्तर प्रदेश इसका अपवाद नहीं है।
मालूम ही है कि शिक्षा मित्रों के समायोजन के रद्द होने के बाद सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर उत्तर प्रदेश में मौजूदा 68500 व 69000 शिक्षक भर्ती प्रक्रिया चल रही है। इस भर्ती को योगी सरकार अपनी सरकार की बड़ी कामयाबी के बतौर पेश करने का प्रोपैगैंडा खूब कर रही है। इन पदों के अलावा भी प्रदेश में उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार शिक्षकों के करीब 4 लाख खाली पदों का अनुमान है। लेकिन इन वर्षों के ज्यादा के कार्यकाल में एक भी शिक्षक भर्ती का नया विज्ञापन नहीं आया। यही नहीं जो शिक्षक भर्ती एवं कुछ अन्य भर्तियों की जो प्रक्रिया पिछली सरकार में शुरू हुई थी उनमें भी जानबूझकर पैदा किये गए अनगिनत विवादों, भ्रष्टाचार से न्यायिक प्रक्रिया में उलझ कर रह गए हैं, एक मामला सुलझता नहीं है कि दूसरा विवाद आ जाता है।
अखिलेश सरकार में भ्रष्टाचार (Corruption in Akhilesh government) और विवाद के मामलों में कोई मुकम्मल नीति नहीं बनाई गई और इन मामलों में योगी सरकार अखिलेश सरकार से भी आगे निकल गई जिसका खामियाजा प्रदेश का युवा भुगत रहा है।
दरअसल अखिलेश सरकार में लोक सेवा आयोग समेत चयन संस्थाओं में घोर भ्रष्टाचार-भाईभतीजावाद के गंभीर आरोप लगे थे, पीसीएस जैसी प्रतिष्ठित परीक्षा में गलत प्रश्न पत्रों का मामला जैसे घोर लापरवाही के चलते पैदा किया गया विवाद सुप्रीम कोर्ट तक गया। जानकर बताते हैं कि अकेले लोक सेवा आयोग के विरुद्ध हजारों मामले न्यायालय में ले जाए गए।
इसी तरह बहुचर्चित 72825 शिक्षक भर्ती का विज्ञापन जिसे 2011 में मायावती सरकार ने निकाला था, अखिलेश सरकार में पैदा हुआ विज्ञापन संबंधी विवाद समेत अनगिनत विवादों का पटाक्षेप 6 साल के अंतराल में सुप्रीम कोर्ट से हुआ। संभवतः 6700 से ज्यादा अभ्यर्थियों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिकायें की, सुप्रीम कोर्ट के निर्णय से भी नये अंतर्विरोध पैदा हुए और प्रदेश में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के आलोक में बीएड अभ्यर्थियों ने नियुक्ति देने की मांग को लेकर चलाये गये आंदोलन पर योगी सरकार ने दमन ढहाया।
अखिलेश सरकार के कार्यकाल में भ्रष्टाचार और विवादों के विरुद्ध इलाहाबाद में युवाओं का आंदोलन चला, लेकिन पारदर्शिता लाने, भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने और विवादों को हल करने की कोई मुकम्मल नीति बनाने के बजाय सरकार ने दमन की नीति ली।
युवाओं का अखिलेश सरकार से जबरदस्त रोष था, इसी माहौल की पृष्ठभूमि में भाजपा ने भ्रष्टाचार मुक्त पारदर्शी चयन प्रक्रिया की बहाली, बैकलॉग पदों को भरने का वादा किया था।
ऊपर जिक्र किया जा चुका है कि सत्ता में आने के बाद कैसे भ्रष्टाचार और विवादों की जो शुरुआत अखिलेश सरकार में हूई थी, वह और ज्यादा जटिल हो गई।
Demand for CBI probe into corruption in recruitment of Public Service Commission in Akhilesh government
अखिलेश सरकार में लोक सेवा आयोग की भर्तियों में भ्रष्टाचार की सीबीआई जांच की मांग युवा कर रहे थे, लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष को हाईकोर्ट द्वारा पहले ही बर्खास्त किया जा चुका था। भारी दबाव में योगी सरकार ने सीबीआई जांच का आदेश दिया लेकिन जांच को ठण्डे बस्ते में डाल दिया गया और कोई भी ऐसी कार्यवाही नहीं हुई जो नोट करने लायक हो।
दरअसल भाजपा की न तो भ्रष्टाचार के विरुद्ध प्रतिबद्धता थी और न ही बेकारी के सवाल को हल करने की नीति। यह तो उसके लिए सिर्फ चुनावी मुद्दे थे। ऐसी परिस्थिति में भ्रष्टाचार और विवाद योगी सरकार में चरम पराकाष्ठा पर पहुंचा। ऊपर इसका जिक्र किया गया है। इस संबंध में लोक सेवा आयोग की परीक्षा नियंत्रक और आयोग के पृश्नपत्रों को छपाई करने वाले प्रिंटिंग प्रेस संचालक के ऊपर पीसीएस सहित आयोग की परीक्षाओं के पेपर लीक कराने के बेहद संगीन आरोप लगे और जेल भी भेजना पड़ा। इसी तरह 68500 शिक्षक भर्ती प्रक्रिया में हुए अभूतपूर्व धांधली के मामले में हाईकोर्ट ने सीबीआई जांच तक के आदेश दिए थे और न्यायालय के हस्तक्षेप व जनदबाव में परीक्षा आयोजित कराने वाली संस्था के सचिव को निलंबित कर जेल भेजना पड़ा था।
इसी तरह 69000 शिक्षक भर्ती में पेपर लीक, धांधली और जानबूझकर पैदा किये गए विवादों के चलते पूरी प्रक्रिया ही हाईकोर्ट, सुप्रीम कोर्ट और एसटीएफ जांच में उलझ कर रह गई है। कुल मिलाकर प्रदेश में आम तौर पर नई भर्तियों पर तो रोक जारी ही है और पहले से लंबित भर्तियों की चयन प्रक्रिया भी बेपटरी हो गई है। भ्रष्टाचार और विवादों के इतने ज्यादा मामले हैं कि यहां सभी का जिक्र करना संभव नहीं है। इसी तरह देखा गया कि एसएससी परीक्षाओं में भी हाल के वर्षों में जबरदस्त धांधली हुई, देशव्यापी आंदोलन चला, सुप्रीम कोर्ट में भी मामला गया लेकिन मोदी सरकार ने यहां पर भी पारदर्शिता लाने, भ्रष्टाचार दूर करने, दोषियों पर कार्यवाही के बजाय छात्रों के आंदोलन को कुचलने की कोशिश की।
योगी सरकार हो या केंद्र की मोदी सरकार हो, चयन प्रक्रिया में पारदर्शिता लाने, भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने, बेकारी की समस्या को हल करने और बैकलॉग पदों को भरने की कोई मुकम्मल नीति बनाई ही नहीं। अगर पारदर्शिता हो, भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाया जाये, चयन संस्थाओं में बाहरी ताकतों का हस्तक्षेप न हो, लोकतांत्रिक ढंग से संचालन किया जाता और समग्रता में सरकार बेकारी, बैकलॉग और चयन प्रक्रिया से जुड़े मामलों को हल करने के लिए एक निगरानी तंत्र विकसित करती, तो कम से कम विवाद होते और भ्रष्टाचार पर भी अंकुश लगता। अगर ऐसी मुकम्मल नीति बनाई जाती तो न्यायिक हस्तक्षेप भी कम से कम होता, युवाओं में भी इससे जिस तरह का विभाजन पैदा होता है, उससे भी बचा जा सकता है। मौजूदा दौर में भी जो मामले न्यायिक प्रक्रिया में उलझे हुए हैं इनके हल के लिए विधि विशेषज्ञों व जुडीशियल सिस्टम से जुड़े लोगों की राय ली जानी चाहिए।
Decision of High Court in case of 69000 teacher recruitment dispute
आज ही 69000 शिक्षक भर्ती विवाद के मामले में उच्च न्यायालय के निर्णय में सुप्रीम कोर्ट द्वारा शिक्षा मित्रों के लिए रिजर्व रखे गए पदों को छोड़कर चयन प्रक्रिया पर को आगे बढ़ाने का आदेश दिया है। फिलहाल इस भर्ती का भविष्य क्या होगा, अभी इस पर कुछ नहीं कहा जा सकता है।
दरअसल सरकार को प्रदेश में जो बैकलॉग पद हैं उन्हें भरने के बारे स्पष्ट तौर बताना चाहिए कि इसके बारे में क्या योजना है।
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इसके अलावा जो भी मामले माननीय सुप्रीम कोर्ट व माननीय उच्च न्यायालय में लंबित हैं उनके निस्तारण के लिए सरकार को वार्ता करने और इस संबंध में अपनी नीति न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करना चाहिए जिससे इन मामलों का त्वरित निस्तारण हो सके।
रोजगार सृजन के बारे में भी सरकार अपनी नीति स्पष्ट करे, अगर युवाओं की अन्य कैटेगरी के रोजगार के बारे में छोड़ दे तो भी शिक्षित बेरोजगारों के लिए सरकार बताये कि उसकी नीति क्या है।
वास्तव में आज बेकारी का सवाल युवाओं के लिए जीवन-मरण का प्रश्न बना हुआ है, उसको सरकार हल करे।
राजेश सचान,
संयोजक युवा मंच