The bizarre exploits of India's 'independent' journalists
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भारत में 'गोदी' मीडिया की तो बहुत निंदा हुई है, मगर हमारे तथाकथित 'स्वतंत्र' पत्रकारों की हरकतें, हथकंडे और अनोखे कार्य भी आश्चर्यजनक और टिप्पणी योग्य हैंI
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उदाहरण के लिए एक महिला पत्रकार हैं, जो राडिया टेप्स के स्कैंडल में लिप्त थींI 1999 की कारगिल युद्ध और 2008 के मुंबई आतंकी हमले में भी उनकी कवरेज विवादों में घिरी थीI 2014 में बीजेपी के सत्ता में आने के बाद शायद कांग्रेस पार्टी नेताओं से क़रीबी के कारणवश उनको अपने टीवी चैनल से त्यागपत्र देने पर मजबूर किया गयाI इस बात पर वह बहुत दिन विलाप करती रहीं कि उनको अकेला कर दिया गया हैI बाद में उन्होंने अपना वेबसाइट बनायाI
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अप्रैल 2020 के लॉकडाउन के बाद वह देश के कई भागों में अपनी टीम के साथ भ्रमण करती रहीं और प्रवासी मज़दूरों की आपदा पर कवरेज करती रहीं जो लगातार ट्विटर आदि पर दिखाया गया, शायद यह दिखाने के लिए कि उनके सीने में कितना दर्द है इन पीड़ित ग़रीबों के लिएI उन्होंने यह कभी नहीं बताया कि इस देश भर के उनके और उनके साथियों के भ्रमण का पैसा कहाँ से आया ?
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एक अन्य पत्रकार हैं जो कई वर्ष तक 'गोदी' मीडिया के एक टीवी चैनल में उच्च पद पर थेI वहाँ से मजबूरन त्यागपत्र देने के बाद अब उन्होंने अपना यूट्यूब चैनल शुरू कर दिया है, जिसमें वह अक्सर मोदी और बीजेपी पर प्रहार करते हैंI किसान आंदोलन के दौरान वह प्रायः सुबह से शाम तक सिंघू, टिकरी या ग़ाज़ीपुर सीमा पर जमे रहते थे और विशेषकर किसान नेता राकेश टिकैत का साक्षात्कार लेते रहेI बाद में वह बंगाल के चुनाव को कवर करने बंगाल पहुँच गएI अब देखते हैं और क्या-क्या आगे कलाबाज़ी करेंगे और पेंगें लेंगे I
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एक अन्य पत्रकार हैं जो एक टीवी चैनल के उच्च पद पर थेI जब उस चैनल को एक बड़े उद्योगपति ने खरीद लिया और उन्हें लगा उनकी छंटनी होने जा रही है कूदकर एक राजनैतिक दल में दल शामिल हो गए, संभवतः यह सोचकर कि राजनीति में वह ऊंचे पद पर पहुंचेंगेI जब उन्हें राज्य सभा का टिकट नहीं मिला तो खिन्न होकर वह राजनैतिक पार्टी छोड़कर पुनः पत्रकारिता के जगत में आ गए और कुछ लोगों के साथ अपना वेबसाइट शुरू कर दिया जो प्रायः मोदीजी और बीजेपी की आलोचना करता हैI
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यही वेबसाइट में ऊंचे पद पर एक अन्य पत्रकार हैं जो कई वर्ष 'गोदी' मीडिया के एक टीवी चैनल में उच्च पद पर थे, पर अब गिरगिट जैसे अपना रंग बदल लियाI
संभवतः इन महारथियों की सोच यह है कु शीघ्र मोदीजी और बीजेपी का अंत होने वाला है, तो क्यों न डूबते सूरज की आलोचना करें और लोकप्रिय हो जाएँ ?
पर यदि यह सूरज नहीं डूबा तो फिर क्या होगा ? इसे भी इन महानुभावों को सोचना चाहिएI
जस्टिस मार्कंडेय काटजू
लेखक प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया के पूर्व चेयरमैन और सर्वोच्च न्यायालय के अवकाशप्राप्त न्यायाधीश हैं।