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विज्ञान को दरकिनार करने की कीमत

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hastakshep
11 May 2021
New Update
कोविड -19 और नैदानिक चिकित्सा का अंत, जैसा कि हम जानते हैं : ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में प्रोफेसर का लेख

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The cost of bypassing science

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वैज्ञानिक तर्क की अनदेखी या देरी से उसपर आधारित कार्रवाई करने की हमें भारी कीमत चुकानी पड़ती है।  कुछ ऐसा ही कोरोना महामारी के साथ भी हुआ। इसे नियंत्रित करने के लिए विज्ञान की सलाह- यानी फिजिकल डिसटेंसिंग, मास्क पहनना और लोगों के बीच संपर्क सीमित करने के प्रति धीमी प्रतिक्रिया का परिणाम है कि हमें इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ रही है।

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जैसा कि हमने अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के प्रशासन के दौरान देखा, कोविड 19 का मुकाबला करने के लिए शारीरिक दूरी बनाए रखने की आवश्यकता के साक्ष्य को अनदेखा करने के विनाशकारी परिणाम होते हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका ने बीमारी से 570,000 से अधिक मौतें दर्ज की हैं, जो अभी भी निरपेक्ष रूप से दुनिया का सबसे बड़ा कोविड 19 मृत्यु टोल है। जैसा कि वर्ल्ड व्यू (विश्व दृश्य) लेख में नेचर ने रिपोर्ट किया गया है।

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ब्राज़ील की सबसे बड़ी नाकामयाबी क्या है

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इसी तरह ब्राज़ील की सबसे बड़ी नाकामयाबी यह है कि इसके राष्ट्र-पति जार बोल्सोनारो ने कोविड 19 को एक छोटे से फ्लू (संक्रामक ज़ुकाम) के रूप में लगातार ग़लत वर्गीकृत किया है और मास्क पहनने और लोगों के बीच संपर्क सीमित करने जैसे नीति निर्धारित करने में वैज्ञानिक सलाह का पालन करने से इंकार किया है। इसके चलते  पिछले सप्ताह तक कोविड-19 की वजह से ब्राज़ील में हुई मौतों की संख्या (number of deaths in brazil due to covid 19) 400,000 से अधिक रही।

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6 मई, 2021 को नेचर पत्रिका  में प्रकाशित एक शोध  के अनुसार भारत में महामारी हर दिन बड़ी संख्या में लोगों की जान ले रही है( करीब 3500) और इसने ऑक्सीजन, वेंटिलेटर, इंटेंसिव केयर बेड (गहन चिकित्सा बिस्तर) और अधिक की मदद के लिए एक वैश्विक प्रतिक्रिया को प्रेरित किया है।

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First case of corona virus infection in India

जहाँ  तक भारत का सवाल है भारत में कोरोना वायरस संक्रमण का सबसे पहला मामला केरल के त्रिशूर में 30 जनवरी 2020 को सामने आया था। भारत में कोरोना वायरस के ख़िलाफ़ लड़ाई का सफर कभी गहरी निराशा में डूबा तो कभी मज़बूत उम्मीदें जगी ।  अब लगभग एक साल बाद और करीब एक करोड़ मामले सामने आने के बाद भारत ने 16 जनवरी 2021 से दुनिया का सबसे बड़ा टीकाकरण कार्यक्रम शुरू किया।

केंद्र सरकार ने 18 साल से अधिक उम्र के सभी लोगों के लिए टीकाकरण की अनुमति दे दी है लेकिन मौजूदा हालात में बहुत से लोगों के लिए टीका लगवा पाना मुश्किल हो रहा है ।

अगर आंकड़ों पर नज़र डालें तो भारत की कुल आबादी लगभग138 करोड़ है, 45 वर्ष से उपर की आबादी 44 करोड़ , 18 से 44 के बीच की आबादी 62 करोड़ है और 18 वर्ष से कम वाली जनसंख्या 32 करोड़ है। 45 वर्ष से ऊपर के 44 करोड़ लोगों को दो टीके लगवाने के लिए 88 करोड़ टीके चाहिए। 18 से 44 के बीच की 62 करोड़ आबादी को दो टीके लगवाने के लिए 124 करोड़ टीके चाहिए। देश की 70% आबादी के टीकाकरण के लिए एक साल तक हर रोज़ 40 लाख टीकों की ज़रुरत है जबकि उपलब्ध केवल 20 -25 लाख प्रति दिन ही हो पा रहे हैं।

भारत के पास एक और चुनौती है कि यहां वैज्ञानिकों के लिए कोविड 19 के संदर्भ में विश्वसनीय डाटा तक पहुंचना आसान नहीं है, जो बदले में उन्हें सटीक भविष्यवाणियां करने से रोकता है। पिछले साल, डाटा की अनुपस्थिति के बावजूद, लैंसेट 2020 के एक शोध के अनुसार, वैज्ञानिकों ने सरकार को प्रतिबंधों को शिथिल करने के खिलाफ सतर्क रहने की चेतावनी दी थी। अप्रैल की शुरुआत से, वैज्ञानिक एक दूसरी लहर की भविष्यवाणी कर रहे हैं और अप्रैल के अंत तक प्रति दिन 100,000 कोविड मामलों की भविष्यवाणी और घटना देख सकते हैं।

वैज्ञानिकों की राय और  सही क्लीनिकल (नैदानिक) ​​और स्वास्थ्य डाटा पर आधारित अनुसंधान के बिना सही निर्णय लेना मुश्किल है।

विशेषज्ञों के प्रति इस तरह के डाटा को अस्पष्ट या अस्वीकार करने का मतलब है महामारी को लम्बा खींचने का जोखिम बढ़ाना। पारदर्शिता बढ़ाने की किसी भी पहल का स्वागत किया जाना चाहिए।

डॉ. सीमा जावेद (Dr.Seema Javed)

पर्यावरणविद , वरिष्ठ पत्रकार और जलवायु परिवर्तन की रणनीतिक संचारक

Seema Javed सीमा जावेद पर्यावरणविद, स्वतंत्र पत्रकार

Seema Javed सीमा जावेद

पर्यावरणविद, स्वतंत्र पत्रकार

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