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कोरोना महामारी के भयावह दौर में पैदा किया गया ग्रिड फेल होने का खतरा
The danger of grid failure arises in the terrible phase of corona epidemic
कोरोना महामारी के खिलाफ एकजुटता प्रदर्शित करने के लिए दिया जलायें (Burn lamps to demonstrate solidarity against the Corona epidemic) इससे किसका ऐतराज है। लेकिन एक आम नागरिक का ऐतराज कोरोना के खिलाफ जंग (war against corona) को कमजोर होने, अंधविश्वास बढ़ाने और जानबूझकर देश को संकट में ढकेलने से है। अगर अंधेरे में ही दीया जलाना था तो भी घरों के दरवाजे, खिड़कियों को बंद कर के भी बालकनी, दरवाजों पर दीया जलाया जा सकता था, वैसी ही एकजुटता प्रदर्शित होती जैसा कि सभी लाईटों को बंद करने पर होगी जिससे ग्रिड पर तो खतरा नहीं मडराता। लेकिन जब तक सनसनीखेज मामला न बने तब तक बात कैसे बनती ! देशव्यापी बहस कैसे चलती। दरअसल मौजूदा दौर में जो बुनियादी सवाल उभर कर सतह पर आ गये हैं उनका जवाब तो इनके पास है नहीं।
बता दें कि देश में पहली बार करीब आधे देश की बिजली 30 जुलाई 2012 को गुल हो गई थी, आगरा-ग्वालियर हाईटेंशन लाइन तकनीकी खराबी के चलते ट्रिप कर गई थी और अभियंताओं के तमाम प्रयासों के बावजूद ग्रिड फेल होने से आधे मुल्क में Blackout हो गया था।
बता दें कि बिजली उत्पादन, ट्रांसमिशन, वितरण प्रणाली के पूरे सिस्टम को ग्रिड कहते हैं, देश भर में पांच ग्रिड हैं जो एक दूसरे से कनेक्टेड हैं। अगर तकनीकी खराबी, दैवीय आपदा जैसे तूफान आदि से अचानक कोई disturbance पैदा होता है तो लाईनों के ट्रिप होने और ग्रिड फेल होने की आशंका रहती है।
हमारी ट्रांसमिशन लाईन में ज्यादा fluctuations होगा तो लाईनों के ट्रिपिंग करने से ग्रिड फेल होने तक की नौबत आती है।
पीएम के आवाहन पर एक खास समय में 9 मिनट के अल्पावधि के लिए एक साथ घरों में लाईट बंद करने से 15-20 हजार मेगावाट का fluactation होगा जो घातक होगा और हमारे पावर ग्रिड के फेल होने अथवा लाईनों, पावर हाऊसों में तकनीकी खराबी आ सकती है। देश में करीब एक लाख सत्तर हजार मेगावाट बिजली की खपत लाकडाऊन के पहले हो रही थी लेकिन लाकडाऊन के बाद एक लाख दस हजार मेगावाट के आसपास खपत हो रही है।
जिस समय हमारी पूरी ऊर्जा कोरोना महामारी से निपटने में लगना चाहिए, उस समय केंद्र व राज्य सरकारें, देशभर के बिजली महकमे ग्रिड बचाने में लगे हैं और पूरा देश इस मुद्दे पर पक्ष विपक्ष में बहस में उलझा हुआ है।
सोशल मीडिया में तो ऐसी पोस्टों की भरमार है जिसमें इस इवेंट से कोरोना के वायरस पर कैसी मार पड़ेगी इसके वैज्ञानिक आधार बताए जा रहे हैं, हद है पाखंड की भी तो कोई सीमा होना चाहिये!
पहले से ही हम घोर संकट में हैं तब एक नया संकट जानबूझकर क्यों पैदा किया गया है। सरकार कह रही है कि हमारे अभियंता और प्रबंधन हालात से निपटने के लिए तैयार हैं, आखिर यह हालात विलावजह पैदा ही क्यों किया गया। स्थिति की गंभीरता को समझे एक तरह से महाराष्ट्र के बिजली मंत्री ने हाथ खड़े कर दिये हैं उन्हें ग्रिड फेल होने के संभावित खतरे को लेकर प्रेस कॉन्फ्रेंस कर जनता से अपील करनी पड़ रही है। खतरा कितना बड़ा है कि इसके लिए केंद्रीय बिजली मंत्रालय ने पैदा होने वाले हालात से निपटने के लिए 13 पेज की सभी राज्यों के बिजली बोर्डों को एडवाईजरी जारी की है? बावजूद इन तैयारियों और अभियंताओं के तमाम प्रयासों के बाद भी ग्रिड फेल हो गया तब क्या होगा, इतने बड़े पैमाने पर अस्पतालों में बिजली सप्लाई कैसे होगी जहां कोरोना मरीज भर्ती हैं, उनके ईलाज पर विपरीत असर होगा।
आप खुद देखें कि किस तरह बिना तैयारी के लाकडाऊन के बाद कैसे हालात पैदा हुए, न सिर्फ मजदूरों को अपार परेशानियों का सामना करना पड़ा बल्कि संक्रमण के फैलने की भी संभावना बढ़ी है, दरअसल 30 जनवरी को पहला कोरोना मरीज मिलने के बाद ही सरकार को ठोस कदम उठाने थे लेकिन घोर लापरवाही बरती गई, बावजूद इसके देर से ही सही लाकडाऊन तो जरूरी था ही लेकिन यह प्रहसन किसी के समझ में नहीं आया। हम सभी को यही उम्मीद करना चाहिए कि हमारे अभियंता ग्रिड को बचाने में सफल होंगे।
राजेश सचान, युवा मंच
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