Advertisment

शिक्षण की स्टीरियोटाइप शैली के खतरे

मुसलमानों को यहां से देखो

Jagadishwar Chaturvedi जगदीश्वर चतुर्वेदी। लेखक कोलकाता विश्वविद्यालय के अवकाशप्राप्त प्रोफेसर व जवाहर लाल नेहरूविश्वविद्यालय छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष हैं। वे हस्तक्षेप के सम्मानित स्तंभकार हैं।

Advertisment

शिक्षा में लगे लोग जाने-अनजाने जिस शैली का शिक्षण के लिए इस्तेमाल करते हैं उस पर कभी घर जाकर सोचते होंगे इस पर मुझे संदेह है।

Advertisment

शिक्षण की स्टीरियोटाइप शैली के कितने पहलू हैं?

Advertisment

शिक्षण शैली के तीन स्टीरियोटाइप पहलू हैं, पहला- प्रस्तुति की स्टीरियोटाइप शैली, दूसरा- स्टीरियोटाइप पाठ्यक्रम, तीसरा- ज्ञान का स्टीरियोटाइप दार्शनिक नजरिया, वर्ग और राष्ट्र का स्टीरियोटाइप नजरिया। पढ़ाते समय इन तीनों ही किस्म के स्टीरियोटाइप से बचने की जरूरत है।

Advertisment

शिक्षण का लक्ष्य क्या होता है?

Advertisment

शिक्षण सर्जनात्मक होता है, वह तयशुदा चीजों और बातों से शुरू तो हो सकता है लेकिन उसका लक्ष्य तयशुदा लक्ष्य को प्राप्त करना नहीं है, बल्कि तयशुदा से परे जाकर नए की खोज करना उसका लक्ष्य है, तयशुदा के बारे में सवाल खड़े करना, संवाद-विवाद पैदा करना।

Advertisment

यदि स्टीरियोटाइप फ्रेमवर्क में ही चीजें पेश की जाती हैं तो संवाद पैदा नहीं होगा। सवाल खड़े नहीं होंगे। खोज और जिज्ञासा की भावना पैदा नहीं होगी। खोज और जिज्ञासा की भावना के बिना आप आधुनिक नहीं बन पाएँगे, यही वजह है  हमारी शिक्षा पूर्व-आधुनिक मनोभावों और मूल्यों से मुक्त नहीं करती।

Advertisment

कहने का मतलब यह कि स्टीरियोटाइप नजरिया और अभ्यास शिक्षक और छात्र दोनों को नुकसान पहुँचाता है।

हिंदी फिल्मों में ऐसी फ़िल्में बनी हैं जो स्टीरियोटाइप को चुनौती देती हैं. मसलन्, "तारे जमीन पर" (2007) में ऐसा शिक्षक है जो एकदम खुले दिमाग का है और पूर्वाग्रहों से रहित है। "मैं हूं ना" (2004)फिल्म में शिक्षक -छात्र मित्रता पर जोर है। शिक्षक बोरिंग नहीं होता।

"चक दे इण्डिया" (2007) में शिक्षक की भूमिका है टीम को एकजुट करने की, "थ्रीइडियट" (2009) में बोमन ईरानी (वीरू सहस्त्रबुद्धे, शिक्षक का नाम) जीनियस और अहंकारी शिक्षक है, वहीं आमिर खान (रांचो) का चरित्र है जो लगातार यही बताता है कि डिग्रियाँ कहीं नहीं ले जातीं। असली ज्ञान तो क्लास रुम और किताबों के बाहर है।

"ब्लैक" फिल्म में अमिताभ बच्चन ( देवराज सहाय) बताता है कि शिक्षक किस तरह अर्थपूर्ण जीवन बना सकता है।

इसी तरह "मोहब्बतें" फिल्म में जोर है कि शिक्षक को नरम दिल होना चाहिए तब ही वह छात्रों की संवेदनाएँ समझ सकता है।

प्रोफेसर जगदीश्वर चतुर्वेदी

The dangers of stereotyped style of teaching

Advertisment
सदस्यता लें