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The economy will still improve at some time, but the education system is completely destroyed.
हम प्रेरणा अंशु के सितंबर अंक में भारत की शिक्षा व्यवस्था पर खास चर्चा (Special discussion on India's education system) करेंगे। अभी से तैयारी हो रही है। अर्थव्यवस्था फिर भी कभी न कभी सुधर जाएगी। लेकिन शिक्षा व्यवस्था पूरी तरह बदल दी गयी है। छोटे स्कूल कोरोना संकट में खत्म होने के कगार पर हैं और सरकारी स्कूल बड़े पैमाने पर खत्म किये जा रहे हैं।
कहाँ पढ़ेंगे ग़रीबों, किसानों,मजदूरों, आदिवासियों, दलितों और दुर्गम क्षेत्रों के बच्चे?
जो बच्चा स्कूल में नहीं पढ़ता वह ऑनलाइन क्या पढ़ेगा?
जिन बच्चों के अभिभावक दिन रात रोटी के जुगाड़ में रहते हैं, उनके बच्चे मोबाइल और टीवी का क्या इस्तेमाल कर रहे हैं, इसकी निगरानी कौन करेगा?
क्या ऑनलाइन शिक्षा से शिक्षकों और छात्रों का बेहद जरूरी सम्वाद सम्भव है?
क्या निजी कार्पोरेट स्कूल में आम बच्चों की पढ़ाई सम्भव है?
ब्रिटिश हुकूमत से पहले भारत में मुगल काल में भी मनुस्मृति अनुशासन लागू था, जिसके तहत सिर्फ शासक जातियों और वर्गों के बच्चों को शिक्षा का अधिकार था। सम्पत्ति और शस्त्र के अधिकार भी उन्हीं को था।
जीवन का अधिकार भी उन्हीं को।
बाकी जनता गुलाम थी,जिन्हें कोई हक हक़ूक़ नहीं था।
सती प्रथा और नरबलि का प्रचलन था।
आम लोगों को जीने का अधिकार नहीं था।
लोक गणराज्य भारत के नागरिकों को कोरोना हथियार के जरिये नए सिरे से गुलाम बनाया जा रहा है।
धर्मोन्माद और जाति संस्कार के कारण जंजीरों में कैद जनता को मौत से बुरी इस गुलामी का अहसास नहीं है।
सरकार न कोरोना रोकना चाहती है और न टिड्डियों को तबाही मचाने से रोकने की कोशिश कर रही है।
वह धारा 188 के तहत आपातकाल लगा कर अपना एजेंडा निर्विरोध लागू कर रही है।
रोटी और रोज़गार के साथ जीने का अधिकार भी खत्म है।
देश की आम जनता को जबरन बर्बर अंध अशिक्षा के युग में धकेल कर जीवन में आगे बढ़ने और विभिन्न क्षेत्रों में जाति वर्ग वर्चस्व की गुलामी में कैद किया जा रहा है।
पलाश विश्वास