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The farmers' fight came up to Parliament when will be the solution …..?
किसान आंदोलन पिछले दो महीनों से चल रहा है, लेकिन अब तक किसी परिणाम तक नहीं पहुंच सका है। प्रधानमंत्री मोदी ने संसद में चुटीले अंदाज में विपक्ष को घेरने के साथ साथ किसान आन्दोलन पर कटाक्ष किया। प्रधानमंत्री मोदी ने साफ-साफ कहा कि किसान आन्दोलन वास्तविक किसानों के बजाय आन्दोलनजीवियों द्वारा चलाया जा रहा है। किसान आन्दोलन प्रायोजित आन्दोलन है। यहां तक कहा कि आन्दोलनजीवी देश को अस्थिर करना चाहते हैं। हमें ऐसे लोंगों से बचने की आवश्यकता है।
साथ ही पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का उद्धरण देते हुये बताया कि मनमोहन सिंह जी चाहते थे कि बड़ी मार्केट को लाने में जो दिक्कतें थीं, उसे समाप्त किया जाना चाहिये। हमने कृषि बिल लाकर किसानों को बड़ा मार्केट देने का प्रयास किया।
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि देश में एमएसपी लागू है, लागू था और लागू रहेगा। किसानों से अपील की कि आन्दोलन खत्म करें।
कृषि बिल के तीनों प्रावधान के खिलाफ किसान सड़क से संसद तक विरोध कर रहे हैं।
किसान आन्दोलन का नेतृत्व कर रहे भाकियू प्रवक्ता राकेश टिकैत ने कहा सरकार किसानों के साथ अन्याय कर रही है। और यह आन्दोलन तब तक जारी रहेगा जब तक कि सरकार तीनों बिल को वापस नहीं ले लेती।
ग्यारह दौर की वार्ता के बाद आज भी किसान सड़क पर है। छिटपुट संघर्ष के अतिरिक्त आन्दोलन शान्तिपूर्ण ही रहा है। हालांकि कई बार आन्दोलन में संघर्ष पैदा करने की कोशिश की गयी। परन्तु किसानों ने अपने कड़े अनुशासन से काबू करने में कामयाब हो गये। किसानों ने 26 जनवरी को ट्रैक्टर परेड निकालकर कर शक्ति प्रदर्शन जरूर किया। लेकिन परेड छिटपुट संघर्ष के अतिरिक्त शान्तिपूर्ण ही रही।
इसके बाद 6 फरवरी को किसानों नें कुछ जगहों पर चक्का जाम लगाया। इसका प्रभाव भी कई जगहों पर देखने को मिला।
सरकार लगातार कह रही है, यह आन्दोलन देश को अस्थिर करने के लिये किया जा रहा है। कृषि बिल लागू होने से बिचौलियों पर असर पड़ेगा। इसलिये यह आन्दोलन बिचौलियों द्वारा चलाया जा रहा है।
कृषि बिल के विश्लेषण के बजाय मैं आपको जरूर कुछ चीजों पर प्रकाश डालना चाहूंगा।
जैसे नोटबंदी, जीएसटी से देश का कितना फायदा हुआ। इसके साथ-साथ कई प्रतिष्ठानों की बोली लगायी, जिसे आपने अभी कुछ दिनों पहले देखा है। जैसे रेल, एयरपोर्ट, टेलीकाम सेक्टर, जिसे अर्थव्यवस्था सुधारने का मास्टर प्लान बताया गया था। लेकिन हुआ इसके उलट गड़्डमगड्ड। अर्थव्यवस्था की हालत सुधरने का नाम नहीं ले रही। रूपये की हालात दिन-ब-दिन गिरती जा रही है। बेरोजगारी की दर निरंतर बढ रही है। महंगाई चरम पर है। पड़ोसी देशों में पेट्रोल की कीमत 50 रूपये से 60 रूपये है। जबकि भारत में कीमतें 90 रू के आसपास पहुंच रही है। जिस पर टिप्पणी बीजेपी के वरिष्ठ नेता सुब्रह्मण्यम् स्वामी जी कर चुके हैं। कहीं अगर कृषि बिल का प्रभाव भी इसी प्रकार रहा तो गरीबों को रोटी मुश्किल हो जायेगी।
दुलारी और राम प्यारे केवल गेहूं का उत्पादन करते हैं। अगर अपना गेहूं किसी बाजार में बेचते हैं। तो गेहूं तो औनेपौने दाम पर बेचेगा। लेकिन उपभोग कि अन्य वस्तुयें खरीदने में उसकी सांस ऊपर नीचे होने लगी। खुदा न खास्ता अगर पूरी तरिके से कृषि पर आधारित है, तो दुलारी और रामप्यारे को कर्ज भी लेना पड़ सकता है। ऐसा केवल रामप्यारे या दुलारी के साथ नहीं होगा बल्कि उस बड़ी आबादी के साथ होगा, जो अपने छोटे-मोटे खेतों से अपने जीवन जीने की जद्दोजहद कर रहा है।
कोरोना काल में प्रत्येक व्यक्ति की हालत उस टूटी खाट की भाँति है, जिसका उपयोग भी जरूरी है। बचाये रखना भी जरूरी है। इसलिये जरूरी है कि देश के प्रधानमंत्री को पहले देश की अर्थव्यवस्था को मजबूती के साथ साथ रोजगार सृजन और बाजार को नियंत्रित करके सरकारी प्रतिष्ठानों को पल्लवित पोषित करने की आवश्यकता है। ऐसा बिल्कुल नहीं है कि सरकारी प्रतिष्ठान सदैव घाटे में रहा है।
इसी प्रकाश देश के अन्नदाता को इस समय सहयोग सब्सिडी की आवश्यकता है। सिवाय कृषि बिल थोपने के सरकार को किसान संगठनों को लागू करने से पहले बातचीत करनी चाहिये। किसानों को आन्दोलन के बजाय देश के विकास में प्रोत्साहित किया जाना चाहिये। कृषि बिल पर जितना जल्दी हो सरकार को निर्णय लेकर आन्दोलन समाप्ति की तरफ ले जाना चाहिये।
बृजेश कुमार
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लेखक टीवी पत्रकार हैं।