कोरोना से निपटने का सरकार का कोई इरादा नहीं, यह योजनाबद्ध नरसंहार है

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hastakshep
31 May 2020
कोरोना से निपटने का सरकार का कोई इरादा नहीं, यह योजनाबद्ध नरसंहार है

The government has no intention of dealing with Corona, it is a planned massacre

कोरोना से निपटने का सरकार का कोई इरादा नहीं है। यह योजनाबद्ध नरसंहार (Planned massacre...) है। हम पहले ही लिख चुके हैं।

अब पांचवें चरण के लिए लॉकडाउन (Lockdown for fifth stage) 30 जून तक बढ़ा दिया गया।

लॉकडाउन की हालत यह है कि उत्तराखण्ड जब ग्रीन जोन था और कोरोना मरीजों की संख्या सौ भी नहीं थी, तब कर्फ्यू और लॉकडाउन में कोई छूट नहीं थी। तीसरे चरण में शराब की दुकानें खोल दी गई।

अब उत्तराखण्ड में कोरोना विस्फोट के हालात (Situation of Corona explosion in Uttarakhand) में बाज़ार शाम सात बजे तक खोल दिये गए हैं लेकिन रेहड़ीवालों ठेलेवालों और ऑटो टुकटुक के लिए कोई छूट नहीं है। यातायात सिरे से बन्द है और बाजार खोले जा रहे हैं।

प्रवासी मज़दूरों की व्यथा कथा (Troubles of migrant laborers) दोहराने की जरूरत नहीं है। लॉक डाउन से पहले उन्हें घर भेज दिया जाता तो महानगरों और नगरों की एक तिहाई जनसँख्या कम हो जाती, जनसँख्या घनत्व कम होने से कोरोना का सामुदायिक संक्रमण नियंत्रित रहता और गांव पूरी तरह सुरक्षित रहते।

Chances of death are being created for people in the name of quarantine.

जब मजदूर घर लौटना चाहते थे, उन्हें रोका गया और अब उन्हें दौड़ा-दौड़ाकर खदेड़ा जा रहा है गांव की तरफ। बुखार की जांच के अलावा न जांच हो रही है और न इलाज का इंतज़ाम है। क्वारंटाइन के नाम पर लोगों के लिए मौत के मौके बनाये जा रहे हैं।

Treatment of other diseases is completely closed in the corona period

फ्लू कोई बीमारी नहीं होती। वायरल संक्रमण कुछ दिनों में ठीक हो जाता है। गम्भीर प्राणघातक दूसरी बीमारियों के साथ कोरोना हो तो जानलेवा है। कोरोना काल में दूसरी बीमारियों का इलाज सिरे से बन्द है। अमेरिका, यूरोप और भारत में भी मौत की असल वजह यही है। भूख और बेरोज़गारी और अर्थव्यवस्था की बदहाली भी कोरोना लॉक डाउन और कर्फ्यू की वजह से है।

अर्थव्यवस्था खोलने के नाम पर सब कुछ खोला जा रहा है लेकिन लॉक डाउन और कर्फ्यू जारी है। सब कुछ, धर्मस्थल से लेकर बाजार तो खुला होने के बाद लॉक डाउन और कर्फ्यू का मायने क्या है?

कल पत्रकारिता दिवस था।

कैसी पत्रकारिता?

किसके लिए पत्रकारिता?

कैसा पत्रकारिता दिवस है।

जैसी धर्मांध कारपोरेट पत्रकारिता चल रही है, आज का दिन मेरे लिए पत्रकारिता में ज़िंदगी खपाने के जुर्म में शर्म दिवस है।

अमेरिका में लाखों युवजन सड़क पर हैं वियतनाम युद्ध के बाद पहली बार। कहीं कोई खबर नहीं है कि अमेरिका में फासीवादी विश्व व्यवस्था का जबरदस्त प्रतिरोध हो रहा है।

देश भर में किसानों मजदूरों के आंदोलन की कहीं कोई खबर नहीं है।

लॉकडाउन का असली उद्देश्य ? | The real purpose of lockdown?

लॉक डाउन कोरोना से निपटने के लिए नहीं बल्कि बिना प्रतिरोध भारत को निजी देशी विदेशी कम्पनियों के हवाले करने के करपपोरेट हिंदुत्व के एजेंडे को धारा 188 के तहत अघोषित आपातकाल लागू करके पूरा करने के लिए है।

लॉकडाउन के पांचवे चरण की घोषणा के बाद भी लोग यह समझ नहीं रहे हैं और जो समझ रहे हैं, डर के मारे बोल नहीं रहे हैं।

हम लोग इन दिनों गांव-गांव घूम रहे हैं और थकान की वजह से नियमित लिखना सम्भव नहीं है

परसों कड़ी धूप और लू के बीच विकास स्वर्णकार हमें मोटर साइकिल पर बैठाकर पंचाननपुर ले गए। बसन्तीपुर, पंचाननपुर और उदयनगर गांव 1952 में बस गए थे, लेकिन बाद में तीनों गांवों का रजिस्ट्रेशन रद्द होने पर रुद्रपुर में तीनों गांवों के लोगों ने मिलकर तराई में पहला आंदोलन किया, जिसके तहत मेरी बुआ सरल देवी तराई में पहली बार भूख हड़ताल पर बैठी। रजिस्ट्रेशन बहाल हुआ। तब से इन  गांवों के लोगों में घर रिश्ता बना हुआ है।

हम बचपन में और कॉलेज के दिनों में अक्सर तराई भर के गांवों में बाजपुर से किच्छा, गूलरभोज से पंतनगर तक और सितारगंज से शक्तिफार्म के गांवों में जाया करते थे।

1979 के बाद पहली बार उन गांवों में फिर जाने लगा हूँ।

पुरानी पीढ़ियों के ज्यादातर लोग नहीं है और नए लोग पहचानते नहीं हैं। लेकिन जो लोग अभी बचे हुए हैं, उनके प्यार से मेरा बचपन फिर ज़िंदा होने लगा है।

हर गांव में प्रेरणा अंशु का गर्मजोशी से स्वागत हो रहा है।

मास्साब की किताब भी लोग ले रहे हैं।

पँचननपुर में सिर्फ दिवंगत कुमुद्ररंजन सरकार की पत्नी मिलीं। इस परिवार से हमारा घर रिश्ता रहा है।

चाची तो रोने लगीं।

गांव के युवाजनों से सम्वाद हुआ।

जगदीशपुर में वीरेन मण्डल के घर गया तो घर में वे नहीं थे। उनकी भाभी ने बैठाया। कहा कि वे हमसे दो कक्षा नीचे थीं। फिर उस जमाने की सारी लड़कियों के हालचाल सुनाने लगीं। उनकी ममेरी बहन अंजली आरती हैं जो हिंदी की लेखिका और प्रेरणा अंशु परिवार से हैं, बंगाल में रहती हैं। उनकी बहन का बसंतीपुर में विवाह मेरे दोस्त हरि से हुया है। मुझे मालूम न था। बाद में उनसे बात करने पर पता चला कि अंजली के पिता अभी जीवित हैं।

वे आपातकाल और उसके बाद हमारी लड़ाई में शामिल थे। फिर जगदीशपुर जाना होगा।

चंडीपुर के सन्यासी मण्डल अस्सी नब्वे के होंगे। वे भी सत्तर के दशक में हमारे साथ थे। पूरे गांव को बुलाने लगे। कड़ी धूप और लू में ज्यादा लोग नहीं मिले। पत्रिका और किताब लेकर बोले फिर आना, गांव के सभी लोगों से बात करनी है।

आज लालकुआं गूलरभोज रेललाइन के पास दिलीपनगर गांव बूंदाबांदी के बीच गणेश सिंह रावत के घर गए। कल रुद्रपुर में विकास के साथ उनकी मुलाकात हुई थी और उन्होंने मुझे उनके घर ले जाने के लिए कहा था।

घर से निकलने में देरी हो गई।

बसंतीपुर कवारंटीन सेंटर में मेडिकल टीम आयी थी। उन लोगों के हाल जानने और ग्राम प्रधान संजीत के अलावा गांव के अस्पताल में डॉक्टर गंगवार और उनके सहयोगी पंकज जोशी से मुलाकात करके धर्मनगरी मोड़ में स्टेट बैंक ब्रांच में केशव पाइक को पुस्तक और पत्रिका देकर आनन्दखेड़ा ग्राम पंचायत आफिस में सबसे मिलकर सीधे रामबाग गए। वहां हमारे गुरुजी डालाकोटी जी के बेटे अशोक जी को किताब और प्रेरणा अंशु देकर सीधे गूलरभोज रोड पर ललपूरी जगन्नाथ मिश्र के गांव गए। वे 1952 में एमएलए बने थे और मेरे पिता पुलिनबाबू के साथ वे तराई को बसाने वाले लोगों में थे।

जगन्नाथ मिश्र तराई के पहले पत्रकार थे। गदरपुर के गूलरभोज मोड़ पर किसानों मजदूरों के हक़ में लिखने के जुर्म में उन्हें गोली से उड़ा दिया गया था।

इसी गांव से हैं हमारे मित्र और अमर उजाला के पत्रकार कुंदन साह।

गांव के छात्रों युवाओं को प्रेरणा अंशु देकर हम सीधे पहाड़ी गांव दिलीपनगर पहुंचे।

गणेश जी बीमार हैं ।

फिर भी उन्हें तराई बसनी की कथा सिलसिलेवार याद हैं

पलाश विश्वास जन्म 18 मई 1958 एम ए अंग्रेजी साहित्य, डीएसबी कालेज नैनीताल, कुमाऊं विश्वविद्यालय दैनिक आवाज, प्रभात खबर, अमर उजाला, जागरण के बाद जनसत्ता में 1991 से 2016 तक सम्पादकीय में सेवारत रहने के उपरांत रिटायर होकर उत्तराखण्ड के उधमसिंह नगर में अपने गांव में बस गए और फिलहाल मासिक साहित्यिक पत्रिका प्रेरणा अंशु के कार्यकारी संपादक। उपन्यास अमेरिका से सावधान कहानी संग्रह- अंडे सेंते लोग, ईश्वर की गलती। सम्पादन- अनसुनी आवाज - मास्टर प्रताप सिंह चाहे तो परिचय में यह भी जोड़ सकते हैं- फीचर फिल्मों वसीयत और इमेजिनरी लाइन के लिए संवाद लेखन मणिपुर डायरी और लालगढ़ डायरी हिन्दी के अलावा अंग्रेजी औऱ बंगला में भी नियमित लेखन अंग्रेजी में विश्वभर के अखबारों में लेख प्रकाशित। 2003 से तीनों भाषाओं में ब्लॉग पलाश विश्वास

जन्म 18 मई 1958

एम ए अंग्रेजी साहित्य, डीएसबी कालेज नैनीताल, कुमाऊं विश्वविद्यालय

दैनिक आवाज, प्रभात खबर, अमर उजाला, जागरण के बाद जनसत्ता में 1991 से 2016 तक सम्पादकीय में सेवारत रहने के उपरांत रिटायर होकर उत्तराखण्ड के उधमसिंह नगर में अपने गांव में बस गए और फिलहाल मासिक साहित्यिक पत्रिका प्रेरणा अंशु के कार्यकारी संपादक।

उपन्यास अमेरिका से सावधान

वे पुलिनबाबू और जगन्नाथ मिश्र से लेकर पंडित गोविंद बल्लभ पंत के किस्से सुनाने लगे।

उन्होंने कहा कि तराई को बसाने वाले ये लोग ही असली नेता थे और आज के नेता घर भरनेवाले।

उन्होंने कहा कि बंगाली और पंजाबी शरणार्थियों के पुनर्वास का काम पंडितजी ने किया। उनके बाद इस देश में कोई पुनर्वास नहीं हुआ।

उनके बताए पते पर गांव हरिपुरा में हमारे गुरुजी नैन सिंह के बेटों राम सिंह और मानसिंह के घर पहुंचे। उनके बड़े भाई दिवंगत मोहन सिंह और राम सिंह मेरे सहपाठी थे कक्षा 6 से 10 तक। 1973 के बाद पहली बार मुलाकात हो गयी। हम इतने भावुक हो गए कि न फोन नम्बर नोट किये और न ही फोटो खिंचवाई।

वहां से करनपुर बेटी प्रिय के मायके पहुंचे। आज अन्नू और प्रिया के विवाह की सालगिरह है।

चाय पकोड़े और गपशप के बाद गांव खटोला में प्रधान मुकेश राणा के घर गए। खटोला पंचायत में चार मौजा के किसान हैं। मुकेश बुक्सा जनजाति के युवा नेता हैं।

आज रुद्रपुर जाएंगे।

पलाश विश्वास

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