The Kingmaker Lalu Prasad Yadav
“द किंगमेकर : लालू प्रसाद की अनकही दास्तान” के लेखक जयन्त जिज्ञासु ने अपनी इस किताब के ज़रिये लालू प्रसाद के राजनैतिक जीवन के कई अनसुने-अनकहे-अनछुए पहलुओं को सामने लाने की कोशिश की है। लालू को देखने का उनका अपना नज़रिया है। जहाँ वे लालू को 7 विश्वविद्यालय खोलने और अविभाजित बिहार में 16 ज़िले (बिहार – 9 जिले, झारखंड क्षेत्र – 7 जिले) बनाने वाले नेता के रूप में चित्रित करते हैं, वहीं वे ज़ोर देकर कहते हैं कि लालू जीवन भर आम लोगों को लोकतंत्र में असली राजा होने का अहसास कराते हैं।
दरअसल उनकी भूमिका सत्ता-प्रतिष्ठानों में अलग-अलग वंचित समूहों को बिठाने व उन्हें चेतना से लैस करने की रही है। जहाँ जगन्नाथ मिश्र के डेवलपमेंट का मॉडल कुछ वर्ग विशेष के लोगों का विकास रहा, वहीं लालू प्रसाद के डेवलपमेंट का मॉडल (Lalu Prasad’s model of development) भगवती देवियों, भोलाराम तूफानियों, विद्यासागर निषादों व रमई रामों का विकास रहा है। साथ में गणेश झाओं का विकास भी जारी रहे, इसका ख़याल लालू के शासनकाल में रखा गया। वे समतामूलक समाज की स्थापना के केंद में सबके लिए समुचित अवसर व सबके सर्वांगीण विकास को रखते थे।
जयन्त ने बिहार के अलग-अलग इलाकों में लालू प्रसाद द्वारा किये गये कामों का विस्तार से अपनी इस किताब में उल्लेख किया है।
राबड़ी देवी द्वारा हर कमिश्नरी में अतिपिछड़े व पिछड़े समाज की लड़कियों के लिए एक आवासीय विद्यालय खोले जाने के मौलिक काम को सामने लाया है।
कर्पूरी ठाकुर द्वारा अतिपिछड़े समाज को दिये गये आरक्षण को लालू प्रसाद द्वारा बढ़ा कर 14 फीसदी व राबड़ी द्वारा बढ़ा कर 18 फीसदी करने के ज़िक्र के साथ तेजस्वी यादव द्वारा इस सीमा को बढ़ा कर 40 फीसदी करने के संकल्प की भी चर्चा है।
कोशी में आई बाढ़ की विभीषिका से तबाह इलाके में राहत व पुनर्वास हेतु तत्कालीन रेल मंत्री लालू प्रसाद द्वारा केंद्र सरकार की ओर से अभूतपूर्व मदद के साथ-साथ सहरसा के इंडोर स्टेडियम का नामकरण कारु खिरहरी के नाम पर किये जाने का रोचक वाकया तथा बीएन मंडल के नाम पर मधेपुरा यूनिवर्सिटी, सिदो-कान्हू-मुर्मू के नाम पर दुमका यूनिवर्सिटी, जेपी के नाम पर छपरा यूनिवर्सिटी, वीर कुँवर सिंह के नाम पर आरा यूनिवर्सिटी, विनोबा भावे के नाम पर हज़ारीबाग यूनिवर्सिटी, मजहरूल हक़ के नाम पर अरबी-फारसी यूनिवर्सिटी एवं एक्ट द्वारा नालंदा ओपन यूनिवर्सिटी के बनने की कहानी का भी दिलचस्प वर्णन है।
साथ ही भागलपुर यूनिवर्सिटी का नाम तिलकामांझी के नाम पर करने व बिहार यूनिवर्सिटी का नाम अंबेडकर के नाम पर करने व भागलपुर मेडिकल कॉलेज का नाम नेहरू के नाम पर रखने का भी उल्लेख है।
लालू प्रसाद के कार्यकाल में कॉलेज व यूनिवर्सिटी शिक्षकों की पारदर्शी नियुक्ति और स्कूली शिक्षकों की बीपीएससी के जरिये गुणवत्तापूर्ण व स्तरीय नियुक्ति का भी इस किताब में सलीक़े से ज़िक्र है।
लालू प्रसाद ने जिस तरह से हर जाति-बिरादरी के लोगों को मंत्री, सांसद, विधान पार्षद बनाया, उन सबका उल्लेख इस किताब में आपको मिलेगा।
राजद द्वारा सांगठनिक चुनाव में ज़िला से लेकर प्रखंड स्तर तक अतिपिछड़ों व दलितों-आदिवासियों को 45 फीसदी आरक्षण देने के बाद बाक़ी दलों से भी प्रतिनिधित्व के सवाल पर सामने आकर मिसाल प्रस्तुत करने की अपेक्षा पर बात की गई है।
परिवारवाद के प्रश्न पर जयन्त ने वैश्विक परिप्रेक्ष्य में बात की है।
हर बात को रेफेरेंस के साथ कहने की भरसक कोशिश की गई है। कुल मिलाकर यह किताब आपको लालू प्रसाद की शख्सियत के कुछ नये रंग से रुबरू करायेगी।
अविनाश कुमार चंचल
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