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COP26 (GLASGOW CLIMATE CHANGE CONFERENCE – OCTOBER-NOVEMBER 2021)
The latest IPCC report says that global emissions will be at their peak by 2025.
संयुक्त राष्ट्र के इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) { United Nations Intergovernmental Panel on Climate Change (IPCC)} ने जलवायु परिवर्तन आपदा (climate change disaster) को टालने के लिए, अब तक के सबसे कड़े कदमों को उठाने का किया आह्वान…
संयुक्त राष्ट्र की जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल (आईपीसीसी) निकाय, जो वैश्विक जलवायु स्थिति का आकलन (global climate situation assessment) तैयार करने का काम करता है और जलवायु परिवर्तन को टालने के लिए किये जाने वाले उपायों पर दिशानिर्देश (Guidelines on measures to be taken to avert climate change) भी तैयार करता है, ने अपनी ताजा-तरीन रिपोर्ट को प्रकाशित किया है। यह छठी जलवायु आकलन रिपोर्ट का अंतिम भाग है, जिसके दो भागों में अन्तर्निहित विज्ञान और मानव सहित पारिस्थितिकी तंत्र पर जलवायु के प्रभावों का आकलन शामिल है, जिन्हें पहले प्रकशित किया जा चुका था।
2,900 पृष्ठों की रिपोर्ट कार्बन उत्सर्जन पर अंकुश लगाने की बात करती है
हाल ही में प्रकाशित रिपोर्ट के तीसरे भाग में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन के सबसे बुरे प्रभाव को रोकने का अवसर बड़ी तेजी से कम होता जा रहा है। दो दिनों तक चली इस मैराथन वार्ता सत्र में 195 सरकारों की भागीदारी एवं अनुमोदन के साथ, करीब 2,900 पृष्ठों वाली रिपोर्ट में प्राथमिक तौर पर कार्बन उत्सर्जन पर अंकुश लगाने और ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव (effects of global warming) को कैसे कम किया जाए, पर केंद्रित रखा गया है। इस दस्तावेज को 65 देशों के सैंकड़ों वैज्ञानिकों के द्वारा तैयार किया गया है।
1988 में अपनी स्थापना के बाद से, आईपीसीसी समय-समय पर इस प्रकार की रिपोर्टों को तैयार करती आई है और इसकी छठी रिपोर्ट ने निष्क्रियता के आसन्न परिणामों के बारे में अब तक की सबसे कड़ी चेतावनियों को जारी किया है।
वैज्ञानिकों ने कहा है कि समय आ गया है जिसमें देखना होगा कि क्या विभिन्न राष्ट्रीय सरकारें अपने आधे-अधूरे वादों के बजाय कार्रवाई करेंगी या नहीं।
येल विश्वविद्यालय, अमेरिका के भूगोलवेत्ता और रिपोर्ट पर एक समन्वयकप्रमुख लेखक करेन सेटो ने कहा, “सभी स्तरों पर अधिकाधिक सरकारों के द्वारा शमन के और ज्यादा प्रयासों को अपनाने के बावजूद, उत्सर्जन में लगातार वृद्धि का क्रम बना हुआ है। हमें अभी भी बहुत कुछ करने की जरूरत है, और हमें इसे जल्द से जल्द करना होगा।”
आईपीसीसी रिपोर्ट के क्या हैं प्रमुख संदेश ?
1. मानवता के हाथ से वक्त लगभग फिसल चुका है। जलवायु मॉडल सुझाता है (climate model suggests) कि कुछ नहीं तो 2025 तक वैश्विक उत्सर्जन अपने चरम पर होगा, लेकिन उसके बाद वैश्विक स्तर पर इसमें भारी गिरावट की जरूरत है, ताकि विश्व के पास बढ़ती गर्मी को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लिए 50% मौका मिल सके।
2015 में पेरिस समझौते पर हस्ताक्षर हुए थे। इसमें सुझाया गया था कि जलवायु की तबाही से बचने के लिए तापमान को पूर्व-औद्योगिक स्तर की तुलना में वैश्विक तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस के स्तर पर स्थिर रखना होगा। यदि केवल इसी लक्ष्य को हासिल करना है तो 2030 तक कार्बन उत्सर्जन को आधा करना होगा और 2050 की शुरुआत तक इसे शून्य तक पहुंचना होगा। ऐसे अनुमान हैं जो कहते हैं कि यदि मौजूदा प्रवृत्ति जारी रहती है तो पूर्व-औद्योगिक स्तरों की तुलना में लगभग 3 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होने की संभावना है।
2. रिपोर्ट में कुछ शमन प्रयासों के अच्छे प्रभावों का भी जिक्र किया गया है और अक्षय उर्जा ने इस संबंध में ध्यान आकर्षित किया है। पवन टरबाइन, सौर पैनल इत्यादि जैसे अक्षय ऊर्जा प्रौद्योगिकियों (renewable energy technologies) को लगभग समूचे विश्व भर में तेजी से इस्तेमाल में लाया जा रहा है और इसका वैश्विक स्तर पर साफ़-सुथरा प्रभाव पड़ा है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि वैश्विक उर्जा तीव्रता (जो कि अर्थव्यवस्था को चलाने के लिए जरूरी उर्जा का मापक है) 2010 से 2019 तक वार्षिक रूप में 2% घट गई है, जिसने पिछले दशकों से उलट ट्रेंड को दर्शाया है।
3. जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल पर अंकुश (ban the use of fossil fuels) लगाना होगा। मॉडल सुझाता है कि मौजूदा एवं भविष्य के लिए नियोजित जीवाश्म ईंधन की परियोजनाओं से उत्सर्जन की मात्रा पहले से ही स्वीकार्य कार्बन बजट को पार कर चुकी है।
4. लक्ष्यों को हासिल करने के लिए सिर्फ उत्सर्जन पर अंकुश लगाना पर्याप्त नहीं होगा। वातावरण से कार्बन डाइऑक्साइड को निकालना होगा। तमाम देश चाहें तो खेतीबाड़ी की पद्धतियों में सुधार लाने के साथ-साथ वनों के विस्तार को अंजाम देने के माध्यम से कार्बन अपटेक को बढ़ा सकते हैं। रिपोर्ट में नवजात प्रौद्योगिकी के बारे में भी पुष्टि की गई है जो पर्यावरण से और औद्योगिक स्रोतों से भी कार्बन को गिरफ्त में लेने में मदद कर सकती हैं।
5. धनी देशों को निम्न-आय वाले देशों को आर्थिक सहायता प्रदान किये जाने की आवश्यकता है, ताकि जीवाश्म ईंधन-आधारित अर्थव्यवस्था से एक हरित अर्थव्यवस्था में संक्रमण को सुगम और बेहतर बनाया जा सके, ताकि सभी इससे लाभान्वित हो सकें। इसके साथ ही महत्वपूर्ण रूप से, जो देश ग्रीनहाउस गैसों का सबसे कम उत्पादन कर रहे हैं वे ही देश जलवायु परिवर्तन से सबसे अधिक प्रभावित हैं। संयुक्त राष्ट्र के जलवायु ढांचे के भीतर सबसे कम विकसित देशों और छोटे द्वीप विकाशील देशों में से 88 देश सामूहिक रूप से 1% से भी कम कार्बन उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार हैं।
रिपोर्ट के प्रमुख लेखक एवं जर्मन इंस्टीट्यूट फॉर इंटरनेशनल एंड सिक्यूरिटी अफेयर्स, बर्लिन के समाज विज्ञानी ओलिवर गेडेन ने कहा, “मेरी समझ में हम राजनीतिक रूप से ऐसी स्थिति के करीब पहुँच गए हैं जहाँ हमें गंभीरतापूर्वक यह सवाल करना होगा कि हम इस आधिक्य से कैसे निपटने जा रहे हैं। हालाँकि अभी भी तकनीकी दृष्टि से देखने पर तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रख पाना संभव लग रहा है, लेकिन इसके लिए जैसी कार्रवाइयों की दरकार है उन्हें अभूतपूर्व होना चाहिए।”
संदीपन तालुकदार
न्यूजक्लिक में प्रकाशित समाचार का किंचित् संपादित रूप साभार