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चिड़ियों का चहचहाना चिड़ियों का प्रेम गीत है
हमेशा एक सा अर्थ नहीं होता पक्षियों का कलरव
उत्तर भारत में जैसे जैसे अमराई की महक मादक होती जाती है, पक्षियों की कूक में दर्द, विरह और प्रणय निवेदन की कशिश बढ़ती जाती है और बरसात में अपने चरम पर होती है। वास्तव में यह समय पक्षियों के लिए घोंसले बनाने और अंडे देने का होता है, पक्षियों के कलरव का हमेशा एक सा अर्थ नहीं होता। पक्षी विशेषज्ञों (bird experts) का मानना है कि उन का सुबह का स्वर अपने होने का ऐलान होता है। साथ ही सुबह के इस कलरव से पक्षी मानो घोषणा करते हैं कि यह उन का इलाका है और वे अपने इलाके की बादशाहत संभालने के लिए मौजूद हैं। यह कलरव उन की मौजूदगी का शंखनाद भी होता है। इस का दूसरा उद्देश्य प्रणय के लिए साथी को अपनी ओर आकृष्ट करना भी होता है।
पशुपक्षियों में भी होता है प्यार, मनुहार का गुण
प्यार, मनुहार और रूठना मनाना न केवल इंसानी आदत है, बल्कि पशुपक्षियों में भी यह गुण विद्यमान है। यह अलग बात है कि सभी पशु पक्षी ऐसी भावनाएं प्रकट नहीं करते। लेकिन कुछ पक्षी और पशु भी स्पष्ट तरीके से अपने प्रेम और समर्पण का इजहार करते हैं।
इंसान ने पशु पक्षियों से ही सीखी हैं प्रेम और निवेदन की तमाम कलाएं
पशु पक्षी भले इंसान की तरह रूठने मनाने की कला में पारंगत न दिखते हों, मगर इन सब को ले कर जनून इनमें भी इंसानों जैसा ही होता है। इंसान ने प्रेम और निवेदन की तमाम कलाएं (All the arts of love and request) इन्हीं अबोलों से सीखी हैं। यह अलग बात है कि इंसान ने अपनी बुद्धि और कल्पनाशक्ति की बदौलत उन बेजबानों को भी मौलिक बना लिया है। प्रणय निवेदन की कला इंसान ने मूलत: पक्षियों से ही सीखी है।
इश्क की कला के धरती पर पुरखे माने जाते हैं पक्षी
इंसान ने इश्क का जनून इन्हीं पक्षियों से उधार लिया है। भले ही वक्त के साथ इंसान पक्षियों से आगे निकल गया हो, लेकिन समागम, समर्पण और निवेदन की कला में उन का आज भी कोई सानी नहीं।
पूरे ईको सिस्टम को ग्लोबल वार्मिंग ने तहस नहस कर दिया है। पर्यावरण विनाश के कारण पक्षियों का कुदरती आवास छिन गया है, लेकिन पक्षियों का कलरव आज भी उतना ही मधुर है। वास्तव में यह कलरव या कोरस ही पक्षियों का प्रणय गीत है।
एक समय गांवों में पक्षियों के इसी कलरव से सुबह की नींद खुलती थी। हालांकि पक्षियों के सामूहिक कलरव में यह पहचानना मुश्किल होता है कि इस में कौन-कौन से पक्षियों का स्वर शामिल है, लेकिन कानों को शब्दरहित गीत बहुत भाता है।
यों तो पक्षी हर मौसम में ही गुनगुनाते प्रतीत होते हैं, लेकिन गर्मियों में खासकर बसंत पंचमी के बाद इन के स्वरों में कुछ ज्यादा ही मिठास घुल जाती है।
पक्षियों के सुबह के कलरव की शुरुआत रात में पेड़ों की ऊंची शाखाओं पर डेरा जमाने वाले पक्षियों से होती है। शायद सूरज के प्रथम दर्शन करने की वे भरपाई कर रहे होते हैं। सुबह पौ फटने से पहले ही कई बार हम मोरों की आवाज सुनते हैं। रात को मोर बड़े-बड़े पेड़ों की ऊंची डालों पर सोते हैं, इसलिए सुबह सूरज की रोशनी से सब से पहले वे ही जगते हैं।
विरह गीत गाने वाले पक्षी
अधिकतर पक्षी अपने साथी को आकृष्ट करने के लिए गाने के साथ-साथ नाचते भी हैं। मोर का आकर्षक नृत्य तो मुहावरा है। दरअसल, वह मोरनी को रिझाने के लिए ही नृत्य करता है। कई नर पक्षी मादा को रिझाने के लिए खतरनाक जोखिम उठाते हैं। ऐसा ही एक पक्षी है 'खरमोर।' यह पारंपरिक मोर तो नहीं पर मोर की ही जाति का एक संकर पक्षी है। यह मादा को रिझाने के लिए खेतों में ऊंचीऊंची छलांगें लगाता है और फिर धम से गिर कर खेत में छिप जाने का नाटक करता है। यह मुंह से कई किस्म की आवाजें निकालता है। कई बार तो यह अपनी इस उछल-कूद में अपने पैरों को लहूलुहान तक कर लेता है।
खरमोर की ही तरह कोयल भी विरह गीत गाती है। बरसात के शुरुआती दिनों में कोयल का कूकना तब तक बेचैन करता है जब तक वह अंडे नहीं सेने लग जाती। दरअसल, डाल पर कूकती आवाज नर कोयल की होती है और वह उस समय जोड़ा बनाने के लिए साथी की तलाश कर रहा होता है। नर कोयल काला होता है, जबकि मादा भूरी या चितकबरी दिखती है। यही फर्क मोर और मोरनी में भी होता है।
पपीहा : फिल्मी गीतों का लोकप्रिय पक्षी
बरसात के मौसम में हमें एक और पक्षी की आवाज बारबार सुनाई देती है, वह है पपीहा। फिल्मी गीतों का लोकप्रिय पपीहा। पपीहे के मुंह में शब्द भले ही हम अपनी कल्पना के डाल देते हों मगर यह अपनी प्रिय को ही देख रहा होता है।
पक्षियों की विस्तृत दुनिया (wide world of birds) में झांकने के लिए सब से पहले हमें अपने इर्दगिर्द के पक्षी जगत पर नजर दौड़ानी चाहिए। यदि हम अपनी खिड़की से बाहर झांकते हैं तो हमें जो बहुत से परिचित घरेलू पक्षी दिखाई पड़ेंगे उन में दिन दोपहरी कांवकांव करता कौआ, दहलीज पर दाना चुगती गौरैया, छज्जे पर गुटरगूं करता कबूतर और पंखों से आवाज निकालती मैना। वास्तव में समय के साथ ये सारे पक्षी हमारे आसपास जीना रहना सीख गए हैं। हजारों साल पहले शायद ये भी पूर्णतया जंगल के वासी रहे होंगे, लेकिन भोजन की तलाश इन्हें धीरेधीरे बस्तियों के करीब ले आई। अब इन्होंने शहरी भीड़भाड़ में रहने के लिए सुकून और आवास तलाश लिया है। यहीं ये अपना भोजन तलाशते हैं, घोंसले बनाते हैं और रात यहीं किसी ऊंचे सुरक्षित ठौर पर सो भी जाते हैं।
नर पक्षी ही ज्यादातर सुंदर होते हैं
यों तो इंसान के अलावा किसी अन्य प्रजाति में पारिवारिक जीवन की प्रतिबद्धता नहीं होती, न ही उन में इस की चाहत दिखती है। लेकिन लगाव और भावनात्मक आकर्षण सभी प्रजातियों में पाया जाता है। पक्षियों में प्रणय निवेदन की कला (courting of birds) इसी लगाव से निकलती है।
मजेदार बात यह है कि दिखने में सुंदर ज्यादातर नर पक्षी ही होते हैं, लेकिन पक्षियों की दुनिया में भी चलती मादाओं की ही है। इन के प्रणय निवेदन की जद्दोजेहद में भी यह साफ झलकता है। नर को ही मादा को मनाने के लिए दिन रात एक करना पड़ता है। मसलन, सब से सुंदर पक्षी मोर को ही लें। जब जोड़ा बनाने का समय आता है तो इतने खूबसूरत नर मोर को बेहद खूबसूरत मोरनी के सामने अपने सुंदर पंखों को फैलाए घंटों नाचना पड़ता है। मोरनी को खुश करने के लिए इठलाते रहना पड़ता है, तब जा कर मोरनी का दिल पसीजता है।
पक्षियों का इंजीनियर बया
यही बात बया पक्षी में भी देखने को मिलती है। इसे पक्षियों का इंजीनियर (Baya: Engineer of Birds) कहते हैं। बया के बनाए घोंसले देख कर इंसान दांतों तले उंगली दबा लेता है। वर्षा ऋतु के समय बया पक्षी घोंसला बनाता है। इस कलात्मक काम में वह पूरी तरह डूब जाता है। इतना प्यारा साफ सुथरा और सुरक्षित घर बनाने के बावजूद नखरीली मादा को घर जल्दी पसंद नहीं आता। जब तक मादा बया इसे पसंद नहीं कर लेती तब तक घर को और बेहतर बनाने के लिए नर बया जुटा रहता है। इस घोंसले में अलग-अलग कक्ष होते हैं। यहां तक कि कई बार तो रोशनी के लिए जुगनुओं को भी काम में लाया जाता है।
सुंदर और पवित्र नीलकंठ
अब नीलकंठ को ही देखिए। वह जितना सुंदर उतना ही पवित्र भी माना जाता है। हालांकि यहां नर और मादा करीब-करीब एक जैसे ही होते हैं। फिर भी नर मादा नीलकंठ को खुश करने के लिए हवा में उड़ कर तरह-तरह के करतब दिखाता है। कई बार तो वह ऊपर से पत्थर की तरह ऐसे नीचे गिरता है जैसे उस की जान ही निकल गई हो, पर जमीन के पास आते ही वह फिर ऊपर उड़ जाता है। ऐसा कब तक? जब तक नीलू मान न जाए। है न कठिन परीक्षा?
प्रेमिल पक्षी कबूतर
अब कबूतरों के बारे में भी जान लेते हैं। यह सब से प्रेमिल पक्षी (love bird pigeon) है। अपनी मादा को रिझाने के लिए यह अपने पंख फैलाए उस के चारों ओर गुटरगूं करता चक्कर लगाता रहता है। यही नहीं कबूतर के बारे में यह भी कहा जाता है कि यह एक बार जिस से जोड़ा बना लेता है उस का साथ जीवन भर नहीं छोड़ता। इसीलिए कबूतर सदा जोड़े में ही दिखाई पड़ता है, लेकिन उसे भी कबूतरनी के नखरे उठाने पड़ते हैं।
विश्व प्रसिद्ध प्रेमी पक्षी सारस
दुनिया भर में सारस जैसा कोई दूसरा प्रेमी पक्षी नहीं है। यह अपने प्रेम के लिए विश्व प्रसिद्ध (world famous lover bird stork) है। नर और मादा एक दूसरे के लिए सदा समर्पित रहते हैं। यदि इन में से किसी एक की भी मृत्यु हो जाए तो दूसरा भी अन्नजल त्याग कर अपनी जान दे देता है। मगर प्रणय निवेदन में मादा सारस भी खूब नाकों चने चबवाती है।
बहुपत्नी प्रथा को मानने वाला हंस
सारस के ठीक विपरीत जीवन शैली है हंस की। यह निडर पर नाजुक पक्षी बहुपत्नी प्रथा को मानने वाला है। अपने सौंदर्य और मनलुभावनी चाल के कारण लोकप्रिय हंस की बहुत सारी पत्नियां होती हैं।
(देशबन्धु, में 09/04/2018 को प्रकाशित लेख का संपादित रूप साभार)
The love song of birds is the tweet of birds