The medical system in Uttarakhand is at a standstill.
Advertisment
उत्तराखंड में चिकित्सा व्यवस्था ठप है। डॉक्टर और स्वास्थ्यकर्मी कोरोना संक्रमित होकर मर भी रहे हैं। पीपीई किट नहीं है। दवाएं नहीं हैं। कोरोना के आंकड़े बढ़ाकर लूटखसोट मची है और डॉक्टरों, स्वास्थ्यकर्मियों की बलि चढ़ाई जा रही है। भत्ते बन्द हैं। इंक्रीमेंट पर रोक है। वेतन में कटौती की जा रही है। संक्रमितों के परिजनों की जांच नहीं हो रही है। मारे गए कोरोना योद्धाओं के परिजनों के साथ सत्ता का कोई प्रतिनिधि खड़ा नहीं है।
अस्वस्थ, असंतुष्ट डॉक्टर और स्वास्थ्यकर्मी आम जनता की सेहत का कैसे ख्याल रख सकते हैं? स्वास्थ्य केंद्रों पर न डॉक्टर हैं न नर्स। दवाएं तक नहीं। दवा भेजी तो exppired...
सरकार कोई सुनवाई नहीं कर रही है।
Advertisment
नाराज डॉक्टर, स्वास्थ कर्मी काली पट्टी पहनकर ड्यूटी कर रहे थे। हड़ताल और सामूहिक इस्तीफा की धमकी दी तो मुख्यमंत्री की नींद खुली।
भारतीय समाज का ताना बाना मजहबी सियासत प्रायोजित घृणा और हिंसा ने छिन्न-भिन्न कर दिया है।
आचरण का व्याकरण खत्म हो गया है।
Advertisment
जिनकी मातृभाषा देवभाषा है, उनमें घृणा,हिंसा और अस्पृश्यता के सिवाय कोई शब्द नहीं है।
यही उनका मिथकीय सौंदर्य शास्त्र है, जिस पर तामीर है असमानता और अन्याय का अजेय किला।
इसी किले से वे शिक्षा और जीवन व मनुष्यत के सारे अधिकारों से हजारों सालों से आम जनता को वंचित करते रहे हैं।
Advertisment
जीवन के हर क्षेत्र में उन्हीं का एकाधिकार मोनोपोली है।
यह मोनोपोली किसी भी क्षेत्र में टूट जाए तो कोरोना फ़ैल जाता है।
फिर कोरोना की आड़ में राष्ट्र हित में धर्मयुद्ध शुरू हो जाता है, जिसमें हर शम्बूक की हत्या का प्रावधान है।
Advertisment
हर स्त्री की अग्नि परीक्षा है और यही उनकी मर्यादा है।
इस परम्परा को तोड़ना सबसे जरूरी है।
भाषा, साहित्य, इतिहास,भूगोल और ज्ञान विज्ञान में आम जनता की भागीदारी बढ़ाना जरूरी है।