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लालू जयकारा से शुरू होकर अखिलेश की जयकारा तक पहुँच गयी भाकपा (माले)

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Guest writer
21 Nov 2021
पटना में NRC-CAA-NPR के खिलाफ गरीब दलित उतरे सड़कों पर

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भाकपा (माले) की राजनीतिक वैचारिक गिरावट लगातार जारी...

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भाकपा (माले) की राजनीतिक वैचारिक गिरावट का बिहार से उत्तर प्रदेश में हुआ विस्तार

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The political ideological decline of CPI(ML) continues…

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हम बात यहाँ से शुरू करते हैं, जब हम नब्बे के दशक में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के छात्र थे और छात्रसंघ के चुनाव में जब सीपीआई का छात्र संगठन एआईएसएफ समाजवादियों के पैनल से चुनाव लड़ रहा था और माले के छात्रसंगठन आइसा से हम लोग लड़ रहे थे और दोनों का जुलूस जब आमने-सामने रास्ते से गुजरता था तो समाजवादियों की तरफ से हम लोग को इंगित कर नारा लगता था कि वामपंथियों कैम्पस से बाहर जाओ, वामपंथी देश के गद्दार हैं आदि आदि तो उसमें एआईएसएफ के प्रत्याशी हाथ जोड़ कर चलते थे...

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यह एक परिघटना नहीं, बल्कि कई परिघटनाएं हुईं और बाद में इसी वैचारिक गिरावट ने उत्तर प्रदेश में सीपीआई का क्या हश्र किया सब जानते हैं।

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हम बात करना चाहते हैं भाकपा माले (लिबरेशन) का जिसने अपने संघर्ष, स्वतंत्र वामपंथी दिशा, त्याग से वामपंथी आंदोलन व कतारों में आशा की किरण जगाया था!

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जब बाबरी मस्जिद को उन्मादी साम्प्रदायिक भाजपाई ताकतों द्वारा सत्ता के सरक्षण में विध्वंस किया गया और भाजपा उफान पर थी उस समय भी भाकपा (माले) की तरफ से नारा था भाजपा के साम्प्रदायिक फन को कुचलने के लिए आगे बढ़ो, समझौतापरस्त वामपंथियों को बेनकाब करो, सपा बसपा के पिछलग्गू वामपंथियों से हटकर वाम की लाल पताका को स्वतंत्र तरीके से बुलंद करो। उसका परिणाम था कि देश भर में माले की एक अलग पहचान बनी और सामाजिक आधार का विस्तार हुआ और जनता के लोकप्रिय नेता संसद से लेकर विधानसभा तक पहुंच गए जहाँ उनकी अलग छवि भी रही।

एक खास बात और जिक्र करना चाहते हैं। बिहार के जहानाबाद के घोसी विधानसभा में हमारा गाँव हैं वहाँ हम बचपन से देखते थे कि वहाँ से सीपीआई के रामाश्रय प्रसाद यादव विधानसभा से लोकसभा के चुनाव जीतते थे लेकिन जब वाभन ( भूमिहार) व गोवार ( यादव) प्रत्याशी आमने सामने लड़ते थे (तब कोई सीपीआई का संगठन का ढांचा नहीं था, जातियों के टक्कर में सीट सीपीआई के खातें में होता था) वहाँ से सीपीआई जीते हैं। वहीं हाल हमने भाकपा (माले) के लिए भी देखा। जब भी माले ने यादव प्रत्याशी खड़ा किया तब हमने आमने सामने का टक्कर देखा।

मिथलेश यादव का चुनाव का विश्लेषण कर लें और दूसरी तरफ जब भी संघर्ष के महत्व का इलाका होने के बाद संघर्ष में चर्चा में रहने वाली कुन्ती देवी, जो यादव नहीं थी, वह मात्र कुछ हजार में वोट पायीं यानि बहुत ही कम।

यह बात हम इसलिए कह रहे हैं कि अभी-अभी जेल से छूटकर आये लालू यादव से मिलने माले विधायक स्वत: गए या मिलने के लिए नेतृत्व की तरफ से भेजा गया? ये वही लालू जी हैं जिसके लिए माले रोजाना सड़कों पर नारा लगाती थी कि चारा चोर गद्दी छोड़, उनके ही राज में या तो हमारे सैकड़ों कार्यकर्ता या नेता मार दिए गए या जेल में हैं!

लालू जी मानसरोवर या अजमेर शरीफ से नहीं आए थे कि आप सभी विधायक मिलने चले गए।

खैर वैचारिक गिरावट होनी शुरू होती है तो वह कहां तक जायेगी, कहा नहीं जा सकता। लेकिन लालू जी का वहाँ घोसी सीट का जिक्र करना यह इशारा था कि यह एक दम हमारे बल पर जीते हैं....

अब तो माले के नेताओं की तेजस्वी यादव के जन्म दिन की शुभकामनाएं देने की होड़ मची है....

माले ने उन कार्यकर्ताओं के दर्द को भाजपा हराओ के नाम पर भुला दिया और समझा दिया कि परिस्थितियों में बदलाव आया है, भाजपा बड़ा खतरा हैं लेकिन अपनी स्वतंत्र राजनैतिक पहचान खोकर, वैचारिक राजनीति का समर्पण करके, सीटों के बढ़ जाने से ताकत नहीं बढ़तीं हैं जैसे उत्तर प्रदेश में बहुजन पार्टी को सर्वजन पार्टी की तरफ मायावती ले गयी वहीं से बहुजन की राजनीति की मौत की प्रक्रिया शुरू हो गयी, जबकि बसपा ने सरकार भी बनायी और सीटों में भी बढ़ोतरी हुई लेकिन आज उनकी राजनीति की क्या स्थिति है देख लें.... वहीं हश्र भाकपा (माले) का भी होना शुरू हो गया है...

माले के राजनैतिक वैचारिक पतन की प्रक्रिया बिहार से शुरू हुई और उसका उत्तर प्रदेश में विस्तार हो गया। छोटे छोटे संगठन भी, यहाँ तक कि भाकपा जैसी कम्युनिस्ट पार्टी भी उभी उत्तर प्रदेश में राजनीति पर नजर रखे हैं.. लेकिन यहाँ भी जल्दी-जल्दी आपने अखिलेश यादव से मिलकर कह दिया कि हम आपके साथ हैं और आपके नेता जगह-जगह सपा से मिलकर बैठकर भाषण देने लगे जबकि वहाँ आपका कोई बड़ा सामाजिक आधार नहीं है कुछ नेता हैं.

अखिलेश राज आपने भी देखा है। कोई भी उनके सामने अपनी राजनीति , जनता के सवालों की शर्तें नहीं, कोई भी अपनी स्वतंत्र पहचान नहीं... सीधा भाजपा हराओ के नाम पर उनके सामने अपनी स्वतंत्र राजनीति का समर्पण। वामपंथी पार्टी के साथ एकता बनाते हुए सपा राज आने पर जनता का सवालों उनका का रुख़ होगा इस पर कोई बातें न करते हुए, इतनी जल्दी समर्थन की घोषणा? बिहार से आपकी वैचारिक गिरावट शुरू हुई उसका उत्तर प्रदेश में विस्तार के अलावा और कुछ नहीं हैं...

आपको अनुभव से बताता हूँ कि पिछले चुनाव में माकपा, माले नेताओं ने सोनभद्र लोकसभा में सपा बसपा गठबंधन को एकतरफा समर्थन दिया जबकि सामाजिक आधार, संघर्ष का इलाका हैं लेकिन यादव जाति में कामकाज के आधार और नेताओं के अलावा सभी मुसहर, आदिवासियों, सहित कई संघर्ष शील लोगों ने भाजपा को वोट दिया। पूछने पर उन लोगों ने अपनी भाषा में बताया कि अखिलेश यादव के राज में हमारे पर दमन हुआ, नेताओं को जेल भेजा गया, फर्जी मुकदमा लादे गए वनाधिकार कानून लागू नहीं हुआ .. आदि आदि बातें कहते हुए भाजपा को वोट दिया। इसका मतलब अपनी कतारों को आपने विश्वास में नहीं लिया।

हम भी भाजपा को हराने में कोई कसर नही छोड़ना चाहते हैं भाजपा देश के लिए बड़ा खतरा है, लेकिन अपनी स्वतंत्र राजनीति, वैचारिक गिरावट की शर्तों पर नहीं। आज जो उत्तर प्रदेश में भाजपा आयी है वह सपा बसपा राज में जनता के सवालों की अनदेखी व भ्रष्टाचार के कारण ही आई है। जनता जैसे भाजपा के शासन में दमन झेल रही हैं वही अखिलेश यादव व मायावती राज में हुआ है, बस बहस के लिए कम ज्यादा का फर्क कर सकते हैं...

इसलिए उनकी राजनीति से फर्क़ करते हुए भाजपा के खिलाफ वोट करें!

भाकपा माले की वामपंथी आंदोलन में वैचारिक गिरावट की तरफ जा रही है! संयुक्त मोर्चा के नाम पर माले की भूमिका लालू जयकारा से शुरू होकर अखिलेश की जयकारा तक पहुँच गयी हैं! फासीवाद के खिलाफ लड़ाई में संयुक्त गठबंधन में भी अपनी स्वतंत्र पहलकदमी, जनता का मुद्दा, लालू अखिलेश से अलग हमारे अलग लाइनों की स्पष्टता होनी चाहिए! लेकिन जयकारा में यह सीपीआई से भी आगे बढ़ गयी है इनका भी वहीं हश्र होगा जो सीपीआई का हुआ.....

यह हमारा दर्द है, क्योंकि हम माले की क्रांतिकारी राजनीति, वामपंथी आंदोलन में स्वतंत्र पहचान से प्रभावित होकर, काशी विश्वविद्यालय से आधे में पढ़ाई, पापा की आकस्मिक निधन पर ( जो सरकारी नौकरी में थें) सरकारी नौकरी छोड़ कर इस राजनीति से जुड़े थे ! बाईस सालों तक होलटाईमर था! आज भी वामपंथी आंदोलन से एकताबद्ध होते हुएं आई पी एफ संगठन को खड़ा कर रहा हूँ!

अजय राय

चन्दौली (उप्र)

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