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मेहनतकशों के नरसंहार का महिमामंडन कर रहा है सम्पन्न नवधनाढ्य तबका

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hastakshep
25 May 2020
एक देश में ही कितने देश बसेंगे ?

The rich middle class is glorifying the massacre of working people

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अमेरिका में एक लाख से ज्यादा लोगों की कोरोना से मृत्यु हो गई है। चार करोड़ लोग बेरोज़गार हो गए हैं, लेकिन सम्पन्न ट्रम्प समर्थकों के लिए यह मृत्यु पर्व महोत्सव बन गया है।

डॉ पार्थ बनर्जी, जो रोजनामचा लिख रहे हैं, उसमें मज़दूरों, अश्वेतों और गरीबों के इस नरसंहार का सिलसिलेवार ब्यौरा है।

भारत में भी अमेरिका जैसे हालात हैं। मेहनतकशों के नरसंहार का महिमामंडन कर रहा है सम्पन्न नवधनाढ्य तबका और बुद्धिजीवी अब भी खामोश हैं।

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आम जनता में अंध राष्ट्रवाद, धर्म और जाति का असर इतना ज्यादा है कि उन्हें कुछ भी समझ में नहीं आ रहा है।

कोरोना बहुत तेज़ी से फैल रहा है। दो महीने तक कोरोना इलाकों में कैद रखने के बाद उन्हें घर वापस भेज जा रहा है। बिहार, बंगाल, मध्य प्रदेश की बात छोड़ें, उत्तराखण्ड के ऊंचे पहाड़ों में भी तेजी से फैलने लगा है कोरोना। यह योजनाबद्ध नरसंहार के अलावा और क्या है?

कोरोना से निपटने का ट्रम्प की तरह नीरो का भी कोई इरादा नहीं है। उनकी वंशी की धुन में मग्न हैं बलि के लिए चुने गए लोग। जो आज भी दैत्य, दांव, असुर, किन्नर, राक्षस, वानर माने जाते हैं और जिनकी हत्या धर्म यानी मनुस्मृति के मुताबिक अनिवार्य है।

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कल अयोध्या में बात हुई। विवादित स्थान पर बुद्ध प्रतिमा मिलने के बावजूद कहीं कोई सुनवाई नहीं है।

जो लोग सन्तों पर हमले को लेकर मुसलमानों के खिलाफ मुहिम चला रहे हैं, वे लोग पुष्यमित्र के समय पूरे भारत में और बल्लाल सेन के समय बंगाल में बौद्धों पर हुए हमलों की तरह खामोशी का कफ़न ओढ़े हुए हैं।

लॉकडाउन और कर्फ्यू के बावजूद राममंदिर का निर्माण हो गया है।
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कश्मीरी जनता और आदिवासी भूगोल के दमन का समर्थन करने वाले योगों को अहसास ही नहीं है कि उनके भाग्य विधाता पूरे देश को कश्मीर और आदिवासी भूगोल बनाने पर तुले हैं।

कोरोना फैलाकर देश को 188 के तहत अनिश्चतकालीन आपातकाल के अंधेरे में धकेला जा रहा है ताकि देश को अमेरिका बनाया जा सके।

आर्थिक सुधारों का सुपर साइक्लोन आया हुआ है, जिससे बचनी की कहीं कोई राह नहीं है।

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श्रम कानून खत्म हैं।

नागरिकता खत्म है।

मानवाधिकार खत्म हैं।

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कानून का राज खत्म है।

संविधान खत्म है।
देश की सम्पत्ति, संसाधन अमेरिका और विदेशी कम्पनियों और उनके दलालों के हवाले किया जा रहा है।
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यह राजकाज ईस्ट इंडिया कम्पनी की विदेशी हुक़ूमत को भी शर्मिंदा कर देगा।

आज कोलकाता में मशहूर साहित्यकार कपिल कृष्ण ठाकुर से बातचीत हुई। सुंदरवन इलाके में एक भी द्वीप सही सलामत नहीं है।

पूरे बंगाल में एक भी गांव सही सलामत नहीं है।

न पेड़ बचे हैं और न कच्चे मकान और न खेत और खेतों पर खड़ी फसल।

कोलकाता में सिर्फ पेड़ गिरे हैं, सिर्फ तेज़ आंधी पानी का सदमा लगा है। मीडिया वही दिखा रहा है।

बाकी बंगाल की किसी को कोई परवाह नही है।

गांवों में किसान आबादी दलित और मुसलमान हैं। उनके मरने जीने की किसी को परवाह नहीं है।

गांव खेत समुंदर के पानी में डूबे हैं, वहां राहत के नाम पर पूरे परिवार के लिए दिन में एकबार दो सौ ग्राम चूड़ा।

कोरोना काल में राहत की परिभाषा यही है।

हमने बंगाल में दूसरे लोगों से भी बात की है। हर कहीं तबाही और मौत का मंजर है।

ऐसे में भी लोग तमाशबीन बने हुए हैं।

डॉ पार्थ बनर्जी ने लिखा है

Just think — 100,000 — America’s Coronavirus deaths in only 2 months. Yes, 100,000 people died here in USA. But millions of Americans have celebrated this Memorial Day weekend with crowded beach parties, pool parties, and other gatherings. They call it “fun.”

They also call themselves patriotic, and this is their way to celebrate such a sacred, patriotic day! In my book, this is not just flouting science and common sense. This is pure hypocrisy. God forbid, this country will see a huge surge in COVID-19 deaths, soon. And we’re all going to be put in renewed danger — because of the stupidity.

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