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Agriculture, Fertilizer, Food System,
उर्वरक कम्पनियां कमाएंगी 84 करोड़ डॉलर का मुनाफा
नई दिल्ली, 11 नवंबर 2022. वाशिंग्टन स्थित इंस्टीट्यूट फॉर एग्रीकल्चर एंड ट्रेड पॉलिसी तथा ग्रेन द्वारा जारी एक हालिया विश्लेषण में बताया गया है कि जी20 देशों की सरकारों और किसानों ने वर्ष 2021 और 2022 में प्रमुख उर्वरकों के आयात पर 21.8 बिलियन डॉलर से ज्यादा रकम खर्च की। वहीं, इसी दौरान दुनिया की सबसे बड़ी उर्वरक निर्माता कंपनियों के करीब 84 बिलियन डॉलर का मुनाफा कमाने की संभावना है।
इंडोनेशिया में जी-20 देशों के प्रमुखों की बैठक में होगी खाद संकट पर चर्चा
वहीं खबर है कि घरेलू उत्पादन बढ़ाने और यूरोपीय संघ के देशों के किसानों की उर्वरकों पर निर्भरता को कम करने की यूरोपीयन कमिशन योजना बना रहा है। जी-20 देशों के प्रमुख आगामी 15-16 नवंबर को जब इंडोनेशिया में मिलेंगे तो वे उर्वरक संकट पर भी विचार-विमर्श करेंगे।
भारत में किसानों के सबसे बड़े संगठनों में शुमार किए जाने वाले कर्नाटक राज्य रैथा संघ के चुक्की नंजुंदास्वामी (Chukki Nanjundaswamy of Karnataka State Raitha Sangha) ने कहा "भारत के किसान महंगे रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के कारण खुद पर बढ़ते कर्ज के चलते अस्तित्व के संकट से गुजर रहे हैं। फिर भी हमारे संगठन से जुड़े किसान यह जाहिर कर रहे हैं कि वे कृषि उपज को प्रभावित किए बगैर रासायनिक खाद के इस्तेमाल को रोक सकते हैं। इसके लिए वे स्थानीय स्तर पर उपलब्ध जानकारियों और बीज का इस्तेमाल कर रहे हैं जिससे वे आत्मनिर्भर जीवन जी सकते हैं।"
गौतलब है कि दुनिया में किए गए अनेक अध्ययनों से जाहिर हुआ है कि उपज की मात्रा को बरकरार रखते हुए रासायनिक उर्वरकों की जगह कृषि पारिस्थितिकी (एग्रो इकोलॉजिकल - Agro Ecological Farming) खेती को अपनाया जा सकता है। इससे उत्पादन की मात्रा बढ़ भी सकती है।
प्रदूषण का प्रमुख स्रोत हैं रासायनिक उर्वरक
रासायनिक उर्वरक हवा, पानी और मिट्टी के प्रदूषण का प्रमुख स्रोत है और यह हर 40 टन वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के एक टन हिस्से के लिए जिम्मेदार हैं। इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) का कहना है कि कम उर्वरकों के इस्तेमाल वाली अधिक विविधतापूर्ण कृषि को अपनाना बदलती जलवायु में खाद्य सुरक्षा (Food security in a changing climate) को बरकरार रखने के लिए बेहद महत्वपूर्ण है।
'द फर्टिलाइजर ट्रैप' शीर्षक से प्रकाशित इस विश्लेषण ("The Fertiliser Trap" by The Institute for Agriculture and Trade Policy) में महंगे और नुकसानदेह रासायनिक उर्वरकों के इस्तेमाल को कम करने के लिए कदम उठाने का आह्वान किया गया है। इसमें बताया गया है कि :
· जी 20 देशों ने वर्ष 2020 के मुकाबले 2022 में उर्वरकों के आयात पर लगभग तीन गुना ज्यादा धन खर्च किया है। वर्ष 2021 और 2022 में खाद के आयात पर भारत ने कम से कम 4.8 बिलियन डॉलर, ब्राजील ने 3.6 बिलियन और यूरोपीय यूनियन ने तीन बिलियन डॉलर का अतिरिक्त खर्च किया।
· 9 विकासशील देशों ने वर्ष 2020 के मुकाबले 2022 में उर्वरकों के आयात पर दो से तीन गुना ज्यादा खर्च किया। इथोपिया, जहां दो करोड़ लोगों को भोजन की आवश्यकता है, उसने वर्ष 2021 और 2022 में उर्वरकों के आयात पर कुल 384 मिलियन डॉलर और पाकिस्तान ने इसी मद में 874 मिलियन डॉलर अतिरिक्त खर्च किए।
· दुनिया की सबसे बड़ी नौ उर्वरक उत्पादक कंपनियों के इस साल 57 बिलियन डॉलर का मुनाफा कमाने की संभावना है। यह वर्ष 2020 में कमाए गए लाभ से 4 गुना ज्यादा है। अगर उर्वरक संकट की कुल लागत की बात करें तो घरेलू स्तर पर उत्पादन की लागत में वृद्धि को जोड़ने पर इसके बहुत अधिक हो जाने की संभावना है।
कुछ मुट्ठी भर कंपनियां 200 बिलियन डॉलर के वैश्विक उर्वरक बाजार पर अपना दबदबा बनाए हुए हैं। सिर्फ चार कंपनियां- न्यूट्रिन, यारा, सीएफ इंडस्ट्रीज और मोजैक दुनिया के कुल नाइट्रोजन उर्वरक उत्पादन के एक तिहाई हिस्से पर अपना नियंत्रण रखती हैं। बाजार पर इस दबदबे की वजह से वे कंपनियां अपने लाभ को बरकरार रखते हुए या फिर उसे बढ़ाते हुए उर्वरक की बढ़ती कीमतों का बोझ उपभोक्ताओं पर डालने में सक्षम है।
खाद की कीमतों में यह बढ़ोत्तरी किसानों तथा सरकार के बजट पर काफी बोझ डाल रही है। संयुक्त राष्ट्र ने यह चेतावनी दी है कि अगर उर्वरकों के दाम इसी तरह आसमान छूते रहे तो इससे फसल पर भी बुरा असर पड़ सकता है। पूरी दुनिया के किसान उर्वरकों के इस्तेमाल में कटौती कर रहे हैं और आर्गेनिक के महत्व को समझ रहे हैं ।
ऐसे देश जहां औद्योगिक कृषि का दबदबा है, वहां उर्वरकों का जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल किया जा रहा है। यहां खाद की मात्रा को फसल पर कोई प्रभाव डाले बगैर उल्लेखनीय रूप से कम किया जा सकता है। जर्मनी के अध्ययन में पाया गया है कि गेहूं की फसल में डाली जाने वाली खाद का सिर्फ 61% हिस्सा ही इस्तेमाल होता है। बाकी 39% बेकार चली जाती है। इसके अलावा मेक्सिको में सिर्फ 45% खाद की उपयोगिता रहती है। वहीं, कनाडा में सिर्फ 59 और ऑस्ट्रेलिया में केवल 62 फीसद खाद की उपयोगिता रहती है।
एग्रोइकोलॉजिकल खेती में प्राकृतिक उर्वरकों, जैसे कि कंपोस्ट और मिट्टी में नाइट्रोजन की मात्रा को बेहतर बनाने वाले पौधों का इस्तेमाल किया जाता है।
The rising cost of farming’s addiction to chemical fertilisers