/hastakshep-prod/media/post_banners/3zGv1ZIZ65B8ydbbAftK.jpg)
The situation on the health front in Uttar Pradesh is very bad, the government's focus is only on media management, the health department itself is ill
उत्तर प्रदेश में कोविड-19 मरीजों की संख्या (Number of COVID-19 patients in Uttar Pradesh) 50 हजार से ऊपर हो गई है जिसमें सक्रिय मरीजों की संख्या तकरीबन 20 हजार है। अगर प्रदेश में जांच का दायरा बढ़ाया जाये तो संक्रमितों की संख्या में काफी तेजी से ईजाफा हो सकता है।
अभी तक प्रदेश की 23 करोड़ आबादी के लिहाज से बेहद कम (15-16 लाख) जांच हुई हैं, जो आबादी का एक फीसद भी नहीं है।
इस महामारी से निपटने के लिए इलाज के मुकम्मल इंतजाम के अलावा ज्यादा से ज्यादा टेस्टिंग, लोगों को क्वारंटीन व आईसोलेट करना ही प्रमुख उपाय है।
शुरुआती दौर में देश में महामारी के प्रमुख के केंद्र केरल, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, दिल्ली व गुजरात थे, जिससे उत्तर प्रदेश के पास महामारी से निपटने के लिए मुकम्मल इंतजाम के लिए पर्याप्त वक्त था।
&t=3s
दरअसल शुरुआत से ही इसकी जरूरत थी कि बाहर से आने वाले प्रवासी मजदूरों, छात्रों सहित सभी की समुचित मेडिकल चेकअप और कोविड जांच की जाती, क्वारंटीन(संस्थागत व होम) व आईशोलेशन के उचित इंतजाम किया जाता तो प्रदेश में महामारी के प्रसार को रोकने में मदद मिलती। लेकिन जमीनी काम करने, ठोस योजना बनाने के बजाय कागजी घोषणाएं और आंकड़े पेश कर सफल योगी माडल के प्रोपेगैंडा पर सरकार का ज्यादा जोर रहा। कोविड मरीजों के लिए हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित करने पर ध्यान ही नहीं दिया गया। एक तरह से मौजूदा सरकारी हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर को ही कोविड के लिये आरक्षित कर आंकड़े पेश किए जाते रहे। जिसका खामियाजा आज प्रदेश की जनता को भुगतना पड़ रहा है।
हालात इतने बदतर होते जा रहे हैं कि लखनऊ, कानपुर जैसे महानगरों तक में स्वास्थ्य सेवाएं चरमरा गई हैं, यहां कोविड बेड सरकारी और निजी अस्पतालों में भी उपलब्ध नहीं हैं। जांच में लेटलतीफी और कोविड अस्पतालों में दुर्व्यवस्था की खबरें प्रदेश भर से आ रही हैं।
दरअसल संसाधनों, चिकित्सकों व स्टाफ की भारी कमी प्रदेश भर में है। यह हाल तब है, जबकि अभी प्रदेश में महामारी पीक पर पहुंचने के काफी पहले के स्टेज में बताई जा रही है। प्रदेश में हालात कितने बदतर हो रहे हैं इसे हाल ही के चंद उदाहरणों, जो मीडिया में रिपोर्ट्स आई हैं, उन से सहज अंदाजा लगाया जा सकता है।
कानपुर से मीडिया रिपोर्ट्स हैं कि एक व्यवसायी के परिवार के तीन लोगों की कोविड पॉजिटिव रिपोर्ट के बाद सरकारी व निजी अस्पताल में कहीं पर भी बेड की उपलब्ध नहीं हुआ, जबकि निजी अस्पताल में वह 10 लाख रुपये एडवांस जमा करने के लिए तैयार था, बाद मंत्री स्तर से सिफारिश के बाद ही हैलट और रामा मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराया जा सका।
उन्नाव में सदर विधायक के प्रयासों के बाद भी बेड उपलब्ध न होने के चलते एक आगनबाड़ी कामिनी निगम को उन्नाव से लेकर कानपुर के अस्पतालों में एडमिट नहीं किया गया जिससे उनकी इलाज के अभाव में मौत हो गई।
लखनऊ में लिवर पेशेंट व बुजुर्ग वासुदेव पाण्डेय को 15 जुलाई को कोविड पॉजिटिव रिपोर्ट आने के बाद बीकेटी के एल-1 कोविड अस्पताल में भर्ती किया गया, जहां किसी तरह के इलाज की सुविधा नहीं थी, गंभीर तौर पर बीमार वासुदेव की उसी शाम उनके परिजनों द्वारा डाक्टरों व अधिकारियों से इलाज के लिए मिन्नतें करने के बावजूद इलाज नहीं किया गया और उनकी इलाज के अभाव में मौत हो गई।
15 जुलाई को बाराबंकी के कोविड अस्पताल में सरकारी अस्पताल का वार्ड ब्वॉय द्वारा सोशल मीडिया में वायरल वीडियो में आरोप लगाया गया कि उसके एडमिट होने के 16 घण्टे बाद तक कोई भी स्टाफ अथवा स्वास्थ्य कर्मचारी देखने नहीं आया और वहां पहले से भर्ती मरीजों के मुताबिक आईसोलेशन वार्ड में 6 दिनों से disinfected नहीं किया गया है।
गोरखपुर के मेडिकल कॉलेज में दुर्व्यवस्था का आलम यह है कि कोविड वार्ड 3 व 4 बरसात के पानी से भर गये, इसी तरह बरेली में भी छत से बरसात का पानी कोविड वार्ड में भर गया, वीडियो सोशल मीडिया में वायरल होने के बाद प्रशासन हरकत में आया।
बांदा से रिपोर्ट है कि चित्रकूट धाम मंडल के एक मात्र कोविड अस्पताल राजकीय मेडिकल कॉलेज में बेहद घटिया किस्म का भोजन कोविड मरीजों को दिया जा रहा है जबकि पौष्टिक आहार इनके लिए बेहद जरूरी है। मीडिया में इसके आने के बाद मंडलायुक्त से खाना व नाश्ता में दी जाने वाली धनराशि को 46 रू से बढ़ाकर 100 रू करने का आश्वासन दिया।
इसी तरह सोनभद्र में कोविड अस्पताल में दुर्व्यवस्था (Bad arrangements in COVID Hospital,) का आलम है, साफ-सफाई से लेकर स्टाफ कोई नहीं है, इलाज के नाम पर सिर्फ भर्ती कर लिया गया है, अगर किसी मरीज की अचानक तबीयत बिगड़े तो कोई भी वैकल्पिक व्यवस्था नहीं है, इसकी जानकारी वहां पर भर्ती रेनूकूट के पूर्व सभासद ने दी।
चौतरफा अव्यवस्था के बीच सेनीटाईजर, स्कैनर आदि की खरीद-फरोख्त में अनियमितता की खबरें भी आ रही हैं। इसी तरह के भ्रष्टाचार के मामले के मीडिया में आने के बाद चंदौली में प्रशासन द्वारा जांच कराई जा रही है।
दरअसल मई में प्रदेश में संक्रमण प्रथम चरण में था और एक लाख कोविड बेड तैयार कर लेने का जोरशोर से प्रोपेगैंडा इस तरह किया जा रहा था कि मानों महामारी को नियंत्रित करने में हम सफल हो गए हैं। हमने उस वक्त भी मांग की थी कि जैसे-तैसे कोविड बेड तैयार करने के आंकड़े प्रस्तुत करने से ज्यादा अहम सवाल है कि मुकम्मल तैयारियां की जायें, कोविड मरीजों के लिए हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित किया जाये, रूटीन मरीजों के इलाज की भी गारंटी की जाये, निजी अस्पतालों में कोविड व नॉन कोविड दोनों तरह के मरीजों के लिए न्यूनतम दरों पर इलाज की सुविधा की गारंटी की जाये और इसका खर्च सरकार वहन करे।
शुरुआत से ही अव्यवस्था का आलम यह था कि सरकारी व निजी अस्पतालों में ओपीडी बंद थी। इस संबंध में ऑल इंडिया पीपुल्स फंट की ओर से इस संबंध में माननीय उच्च न्यायालय में याचिका भी दायर की गई है और न्यायालय के हस्तक्षेप पर ही ओपीडी खोलने का सरकार ने निर्णय भी लिया। लेकिन हालात में कोई खास सुधार नहीं हुआ है।
प्रदेश में महामारी के संक्रमण के तेजी से बढ़ने के अलावा अन्य संक्रमित बीमारियां भी फैल रही हैं। लेकिन इन बीमारियों के इलाज के लिए सरकार ने किसी तरह के वैकल्पिक इंतजाम नहीं किये हैं। कोविड व नॉन कोविड दोनों तरह के मरीजों के लिए निजी अस्पतालों में न्यूनतम दरों पर इलाज कराने और इलाज का खर्च सरकार द्वारा वहन करने के लिए अभी तक किसी तरह के वैधानिक अथवा प्रशासनिक कदम नहीं उठाया गया है जो कि सरकार के लिए संभव है। हालत यह है कि नोयडा, गाजियाबाद में निजी अस्पतालों में कोविड मरीजों से 30 हजार रुपए प्रतिदिन का चार्ज लिया जा रहा है। काफी हो-हल्ला के बाद सरकार ने निजी अस्पतालों के लिए गाईडलाईन जारी की है लेकिन अभी भी ए संवर्ग के शहरों के लिए 8-18 हजार रुपये प्रतिदिन चार्ज की इजाजत है। बी ग्रेड के शहरों के लिए इसका 80 फीसद व सी ग्रेड के लिए 60 फीसद तक चार्ज लेने की इजाजत है। ऐसे में एक मरीज को निजी अस्पताल में इलाज पर लाखों रुपए खर्च करना पड़ेगा जोकि गरीबों व आम लोगों के लिए संभव ही नहीं है।
कुल मिलाकर उत्तर प्रदेश में स्वास्थ्य मोर्चे पर हालात बेहद खराब हैं। इसी तरह बेकारी के सवाल पर भी ठोस योजनाओं को अमल में लाने के बजाय मीडिया में प्रोपैगेंडा पर ज्यादा जोर रहा है, प्रदेश में बेकारी का भी गंभीर संकट बरकरार है। इसे हल करने के सरकार के प्रयास अपर्याप्त हैं।
सच्चाई तो यह है कि मनरेगा के रूटीन वर्क में थोड़ा बहुत बढ़ोतरी के अलावा बेकारी के भयावह संकट को हल करने के लिए ऐसा कुछ किया ही नहीं गया जो उल्लेख करने लायक हो।
/hastakshep-prod/media/post_attachments/vKXoiJSivuVTLEAUi8R6.jpg)
महामारी व बेकारी से निपटने के जिस सफल योगी मॉडल को प्रस्तुत किया जा रहा था उसकी असलियत सामने आ चुकी है। अगर अभी भी सरकार ने इसके लिये युद्ध स्तर पर काम नहीं किया और सिर्फ कागजी खानापूर्ति व आंकड़े प्रस्तुत करने तक ज्यादा जोर रहा तो प्रदेश में हालात बेकाबू हो सकते हैं।
दरअसल यह सवाल लोगों की जिंदगी से जुड़े हुए हैं। इसीलिए आल इंडिया पीपुल्स फ्रंट, युवा मंच, वर्कर्स फ्रंट हो या स्वराज अभियान हम बराबर मांग करते रहे हैं कि इन सवालों को हल करने के लिए, लोगों की जिंदगी की हिफाजत के लिए सरकार ठोस कदम उठाए।
राजेश सचान,
लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं युवा मंच से जुड़े हुए हैं।