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प्रसंगवश : राष्ट्रपति चुनाव के दिलचस्प किस्से
Aaj Ka Itihas 19 July : मोरारजी देसाई को बाहर कर आज के ही दिन बैंकों के राष्ट्रीयकरण का धमाका किया इंदिरा गांधी ने..
देश में पहली बार चीफ़ जस्टिस ऑफ इंडिया कार्यकारी राष्ट्रपति बने..
देश के अगले राष्ट्रपति के लिए मतदान हो चुका है। तय है कि द्रोपदी मुर्मू भारत की प्रथम नागरिक होंगीं।
इस अवसर पर हम आपको इतिहास के सबसे रोचक राष्ट्रपति चुनाव के किस्से सुना रहे हैं।
अब तक दो किस्तों में आप पढ़ चुके हैं कि प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 'अंतरात्मा की आवाज' पर कांग्रेस के घोषित उम्मीदवार नीलम संजीव रेड्डी (Neelam Sanjiv Reddy) को पटखनी दिलवा कर अपने उम्मीदवार वी वी गिरि को राष्ट्रपति बनवाया। इसके बाद इंदिरा को कांग्रेस से बर्खास्त कर दिया गया और पार्टी दो फाड़ हो गई।
सन 1969 का यह चुनाव बहुतेरी राजनीतिक कथाओं से भरा हुआ है।
आइए अब आपको कुछ और दिलचस्प घटनाओं से रूबरू करवाते हैं।
कामराज ने इंदिरा गांधी को राष्ट्रपति बनाने का दांव फेंका
पूर्व में हम बता चुके हैं कि इंदिरा गांधी को 'गूंगी गुड़िया' कहने वाले कांग्रेस के खांटी दिग्गजों से उनका संघर्ष शुरू हो चुका था। कामराज, निजलिंगप्पा, अतुल्य घोष, एस के पाटिल, मोराराजी देसाई, नीलम संजीव रेड्डी आदि का खेमा 'सिंडीकेट' कहलाने लगा था। सिंडीकेट कदम-कदम पर इंदिरा गांधी की राह में कांटे बिछाता रहता था।
मजे की बात यह है कि इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री बनाने में सिंडीकेट के दो दिग्गजों कामराज और निजलिंगप्पा का बहुत बड़ा हाथ था, लेकिन जल्द ही उनके बीच तलवारें खिंच गईं थीं।
डॉ ज़ाकिर हुसैन के अचानक निधन से समय से पहले राष्ट्रपति चुनाव की नौबत आ गई। इस मौके पर सिंडीकेट ने इंदिरा गांधी को धूल चटाने के लिए ज़ाजम बिछाना शुरू कर दिया।
चुनाव से पहले बेंगलुरु में कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक हुई। इस समय पार्टी अध्यक्ष सिंडीकेट के ही सूरमा एस निजलिंगप्पा थे।
निजलिंगपा मैसूर के पहले मुख्यमंत्री रहे थे।
इसमें पार्टी की ओर से उम्मीदवार तय होना था। इंदिरा गांधी ने बाबू जगजीवन राम (Babu Jagjeevan Ram) का नाम आगे बढ़ाया लेकिन सिंडीकेट अपनी मनमर्जी पर उतारू था। उसने नीलम संजीव रेड्डी का नाम रख दिया।
कार्यसमिति में इंदिरा गांधी मात खा गईं। बहुमत से सिंडीकेट के प्रत्याशी रेड्डी का नाम राष्ट्रपति पद के लिए तय हो गया। लेकिन सिंडीकेट का असल दांव अभी बाक़ी था।
रेड्डी का नाम तय होने के बावजूद के. कामराज ने अपने भाषण में इंदिरा गांधी के कसीदे पढ़े और कहा कि हम चाहते हैं कि इंदिरा जी स्वयं राष्ट्रपति का चुनाव लड़ें।
इंदिरा गांधी के लिए यह समझना कठिन नहीं था, कि सिंडीकेट उनके राजनीतिक जीवन की भ्रूण हत्या करने के लिए जाल बिछा रहा है।
इंदिरा गांधी ने कामराज के प्रस्ताव पर कान नहीं धरे, लेकिन सिंडीकेट से निपटने की कसम खा कर बैंगलुरु से दिल्ली लौटीं।
मोरारजी देसीई को बाहर करके बैंकों का राष्ट्रीयकरण
बुजुर्ग नेताओं के सिंडीकेट से मुकाबला करने में इंदिरा गांधी को पार्टी के 'युवा तुर्क' नेताओं का साथ मिल रहा था। ओल्ड गार्ड वर्सेस यंग टर्क (Old Guard vs Young Turk) के इस मौसम में इंदिरा गांधी ने युवा तुर्कों की बहु प्रतीक्षित मांग को पूरा करने का फैसला किया।
ये मांग थी बैंकों के राष्ट्रीयकरण की। चंद्रशेखर, मोहन धारिया, कृष्ण कांत जैसे युवा तुर्क इसके लिए आवाज उठाते रहे थे जबकि सिंडीकेट के बुढ़ऊ इसके लिए तैयार नहीं थे।
खास तौर पर इंदिरा गांधी सरकार में वित्त मंत्री मोरारजी देसाई इसके लिए बिल्कुल राजी नहीं थे।
इंदिरा गांधी ने सबसे पहले मोराराजी को मंत्री पद से हटाया। चाबीस घंटे में बैंकों के राष्ट्रीयकरण का अध्यादेश तैयार करवाया और 19 जुलाई 1969 को बैंकों के राष्ट्रीयकरण की घोषणा कर दी।
(यह संयोग ही है कि आज 19 जुलाई ही है।)
राष्ट्रपति चुनाव की प्रक्रिया (presidential election process) शुरू हो चुकी थी और इंदिरा गांधी के इस ऐतिहासिक फैसले ने सिंडीकेट को भौंचक कर दिया। देश में इस फैसले की अच्छी प्रतिक्रिया हुई थी।
दोनों पद खाली हो रहे थे इसलिए सीजेआई बने राष्ट्रपति
इस चुनाव में एक और रोचक घटना हुई थी।
जिस समय राष्ट्रपति जाकिर हुसैन की मृत्यु हुई उस समय वी वी गिरि उपराष्ट्रपति थे। परंपरा अनुसार वे कार्यवाहक राष्ट्रपति बने।
लेकिन जब वी वी गिरि इंदिरा गांधी के इशारे पर राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार बन गए तब उन्हें कार्यवाहक राष्ट्रपति पद से भी इस्तीफ़ा देना पड़ा।
इस बीच जब इंदिरा गांधी ने बैंकों के राष्ट्रीयकरण का अध्यादेश तैयार करवा लिया, तो वी वी गिरि ने इस पर बतौर राष्ट्रपति हस्ताक्षर किए और अगले दिन त्यागपत्र दे दिया।
अब एक और संकट सामने आ गया।
गिरि उपराष्ट्रपति पद पहले ही छोड़ चुके थे और अब चुनाव मैदान में आने पर राष्ट्रपति के कार्यवाहक दायित्व से भी मुक्त हो गए।
दोनों पद खाली नहीं रह सकते थे। तब तत्कालीन चीफ़ जस्टिस ऑफ इंडिया एम हिदायतुल्ला (M Hidayatullah) को कार्यवाहक राष्ट्रपति बनाया गया।
आज़ादी के बाद यह पहला मौका था जब देश के प्रधान न्यायाधीश को राष्ट्रपति का दायित्व सम्हालना पड़ा।
डॉ राकेश पाठक
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।
The Syndicate wanted to settle Indira Gandhi by making her the President..!