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अदालतों से न्यायिक फैसले के बजाए राजनीतिक फैसले आना लोकतंत्र के लिए अशुभ है
जजों का एक हिस्सा सरकार के नज़रिए से प्रभावित, या उसे जज लोया के अंजाम से डरा दिया गया है
स्पीक अप# 40 में बोले अल्पसंख्यक कांग्रेस नेता
लखनऊ, 3 अप्रैल 2022। न्यायपालिका से ऐसे फैसले आने लगे हैं जो न्यायिक से ज़्यादा राजनीतिक फैसले लग रहे हैं। इससे न्यायतंत्र की स्वायत्तता (autonomy of the judiciary) पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं। न्यायपालिका की अगर यह छवि बन गयी कि यह सरकार का ही एक विस्तारित अंग है तो हमारा लोकतांत्रिक ढांचा ढह जाएगा।
यह बातें अल्पसंख्यक कांग्रेस द्वारा हर रविवार को होने वाले स्पीक अप अभियान की 40 वीं कड़ी में अल्पसंख्यक कांग्रेस के प्रदेश चेयरमैन शाहनवाज़ आलम ने कहीं।
शाहनवाज़ आलम ने कहा कि सुल्ली डील और बुल्ली बाई ऐप मामले में अदालत ने आरोपियों का पहला अपराध बता कर जमानत दे दिया। खुले आम गोली मारने की धमकी देने वाले केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर के खिलाफ़ यह कह कर सुनवाई से इनकार कर दिया कि उन्होंने मुस्कुराते हुए धमकी दी थी इसलिए यह अपराध की श्रेणी में नहीं आता। जबकि दूसरी तरफ उमर खालिद जैसे निर्दोष लोगों के खिलाफ किसी भी तरह के सुबूत न होने को स्वीकार करते हुए भी अदालत उन्हें जमानत नहीं दे रही है, जिससे यह संदेश जा रहा है कि न्यायपालिका न्यायिक नज़रिए से फैसला सुनाने के बजाए सरकार के नज़रिए से काम कर रही है।
उन्होंने कहा कि अगर ऐसा ही चलता रहा तो सत्ता पक्ष के पत्रकारों की तरह ही जजों को भी लोग सरकार के पैरोकारों की तरह देखने लगेंगे।
शाहनवाज़ आलम ने कहा कि त्रिपुरा के मुख्य न्यायाधीश अकील क़ुरैशी, जो वरिष्ठता के क्रम में दूसरे नंबर पर थे को सुप्रीम कोर्ट में बतौर जज नियुक्त न किया जाना और उससे भी अहम कि इस पर न्यायपालिका से जुड़े लोगों का चुप रहना दर्शाता है कि या तो अधिकतर लोग सरकार के साथ हो लिए हैं या फिर उन्हें तड़ीपार द्वारा जस्टिस लोया की स्थिति में पहुँचा दिये जाने का डर है। ये दोनों ही स्थितियाँ लोकतंत्र के भविष्य के लिए अशुभ हैं।
शाहनवाज़ आलम ने कहा कि यह महज ज़बान का फिसलना नहीं हो सकता कि तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश किसान आंदोलन पर सुनवाई के दौरान यह मौखिक टिप्पणी करें कि किसान उठ जाएं नहीं तो तब्लीगी जमात जैसी स्थिति हो जायेगी और कोरोना फैल जाएगा। जबकि हाई कोर्ट्स ने उससे पहले ही तब्लीगी जमात को कोरोना फैलाने के आरोप से बरी कर दिया था।
उन्होंने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश ने 7 जनवरी 2021 को जानबूझ कर यह मौखिक टिप्पणी की ताकि मीडिया तब्लीगी जमात के खिलाफ़ खबरें चला कर एक बार फिर मुसलमानों की छवि खराब करने का अवसर पा जाए और यही हुआ भी।
कांग्रेस नेता ने कहा कि कांग्रेस के शासन में यह एक नियम था कि कोई भी जज रिटायर होने के 6 साल तक किसी ओहदे पर नियुक्त नहीं हो सकता था जिसे कूलिंग पीरियड कहा जाता था, इससे न्यायिक सुचिता सुनिश्चित होती थी। लेकिन भाजपा सरकार ने यह नियम बदल कर मन चाहे फैसले देने और बदले में राज्यसभा या राज्यपाल का ओहदा लेने का स्कीम चालू कर दिया है जिससे न्यायपालिका में भ्रष्टाचार अचानक बढ़ गया है।
हिजाब मुद्दे पर आये फैसले का ज़िक्र करते हुए उन्होंने कहा कि अदालत ने कह दिया कि इस्लाम में हिजाब पहनना अनिवार्य हिस्सा नहीं है। जबकि अदालत के समक्ष मामला इस्लाम में क्या पहनने और नहीं पहनने के रिवाज का था ही नहीं। लेकिन अदालत ने उसे धार्मिक नज़रिए से देखा। उन्होंने कहा कि अगर यह फैसला नज़ीर बन जाए तो किसी भी दलित को छुआछूत के मामले में न्याय नहीं मिल सकता क्योंकि जज कह सकते हैं कि छुआछूत धर्म का हिस्सा है।
उन्होंने कहा कि राजनीतिक दलों को न्यायपालिका के राजनीतिक इस्तेमाल के खिलाफ बोलना शुरू करना चाहिए, नहीं तो न्यायिक तानाशाही का खतरा बढ़ जाएगा।
The threat of judicial dictatorship is increasing in the country - Shahnawaz Alam