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दवा प्रतिरोधकता : टीबी, एचआईवी की दवाएं कारगर न रहीं तो क्या होगा?

दवा प्रतिरोधकता : टीबी, एचआईवी की दवाएं कारगर न रहीं तो क्या होगा?

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दवा प्रतिरोधकता क्या है ? What is drug resistance in Hindi?

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लगभग 2 साल पहले जब चीन के वुहान से पहला कोरोना वाइरस रिपोर्ट हुआ था, तो दुनिया में अमीर देश तक अत्यंत चिंतित हुए क्योंकि इस रोग की कोई कारगर दवा नहीं थी। महामारी के दौरान हम सबने देखा कि यह चिन्ता वाजिब थी क्योंकि हृदय विदारक त्रासदी (heart wrenching tragedy) वैश्विक स्तर पर हुई है। महामारी ने हमें एक सीख दी है कि जो दवाएँ हमारे पास उपलब्ध हैं, उनको हम ज़िम्मेदारी से इस्तेमाल करें क्योंकि दवा प्रतिरोधकता उत्पन्न हो गयी तो यह दवाएँ कारगर नहीं रहेंगी और रोग के इलाज के लिए विकल्प कम (और अत्यंत महँगे) होते जाएँगे, और रोग लाइलाज हो जाए यह तक मुमकिन है।

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दवा प्रतिरोधकता को रोगाणुरोध प्रतिरोधकता (एंटी-मायक्रोबीयल रेज़िस्टन्स) भी कहते हैं।

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जब भारत में प्रथम एचआईवी केस की पुष्टि (First HIV case confirmed in India) हुई थी तो डॉ ईश्वर गिलाडा प्रथम पंक्ति के चिकित्सकों में रहे हैं जिन्होंने एड्स-से जूझ रहे लोगों की चिकित्सकीय मुमकिन देखभाल शुरू की, एड्स सम्बंधित शोषण और भेदभाव के ख़िलाफ़ सक्रिय रहे और आज भी कोविड महामारी में पूरी कार्यसाधकता के साथ जुटे हुए हैं।

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कौन हैं डॉ ईश्वर गिलाडा? Who is Dr. Ishwar Gilada?

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डॉ ईश्वर गिलाडा जो अंतर्राष्ट्रीय एड्स सोसाइटी (आईएएस) की अध्यक्षीय समिति में अकेले भारतीय निर्वाचित सदस्य हैं और एड्स सोसाइटी ऑफ़ इंडिया (AIDS Society of India) के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं, ने कहा कि रोगाणुरोध प्रतिरोधकता के कारण टीबी एवं एचआईवी से बचाव (Prevention of TB and HIV) और चिकित्सकीय इलाज भी जटिल होता जाता है। टीबी बैक्टीरिया और एड्स वाइरस में ऐसा बदलाव आ जाता है जिसके कारण प्रभावकारी दवाएँ उस पर कारगर नहीं रहतीं। इसीलिए रोगाणुरोध प्रतिरोधकता के कारणवश, संक्रमण नियंत्रण असफल होने लगता है, इलाज अन्य महँगी दवाओं से करने का प्रयास किया जाता है जो लम्बा और जटिल हो जाता है, रोग गम्भीर होता जाता है, और मृत्यु तक का ख़तरा बढ़ जाता है।

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कब मनाया जाएगा अंतरराष्ट्रीय रोगाणुरोधी प्रतिरोध जागरूकता सप्ताह ? : 18-24 नवम्बर 2021 (The World Antibiotic Awareness Week (WAAW), also known as World Antimicrobial Awareness Week)

हर साल की तरह विश्व स्वास्थ्य संगठन इस साल 18-24 नवम्बर तक अंतरराष्ट्रीय रोगाणुरोध प्रतिरोध जागरूकता सप्ताह (विश्व एंटी-माइक्रोबियल प्रतिरोध जागरूकता सप्ताह) का आयोजन कर रहा है जिससे कि लोग चेते कि रोगाणुरोध प्रतिरोध ख़तरनाक ढंग से बढ़ोतरी पर है जिसके कारण दवा प्रतिरोधक कीटाणु पर दवाएँ कारगर नहीं रही हैं, और इलाज विकल्प और उपचार अत्यंत महँगा और जटिल होता जा रहा है।

इसी लिए डॉ ईश्वर गिलाडा और भारत सरकार द्वारा संचालित राष्ट्रीय टीबी उन्मूलन कार्यक्रम के अध्यक्ष डॉ सुदर्शन मंडल ने एक उच्च स्तरीय सलाहकार बैठक की अध्यक्षता की।

डॉ ईश्वर गिलाडा ने कहा कि यदि मौजूदा टीबी और एचआईवी दवाओं के प्रति रोगाणुरोध प्रतिरोधकता उत्पन्न होती चली जाएगी तो यह दवाएँ कारगर नहीं रहेंगी फिर हम कैसे टीबी और एड्स उन्मूलन का सपना साकार करेंगे? इसीलिए जो दवाएँ हमारे पास हैं वह वैज्ञानिक उपलब्धियाँ रही हैं उनको हमें बड़ी सूझ-बूझ और ज़िम्मेदारी के साथ सही उपयोग करना है जिससे कि रोगाणुरोध प्रतिरोधकता उत्पन्न होने का ख़तरा न मंडराएँ।

कोविड महामारी के कारण लगी तालाबंदी और स्वास्थ्य सेवा पर पड़े अतिरिक्त बोझ के तले सभी स्वास्थ्य सेवाएँ कुप्रभावित हो गयी थीं। एक ओर जहां कोविड के लिए स्वास्थ्य सेवा मिलना दूभर हो रहा था तो दूसरी ओर ग़ैर-कोविड अन्य रोग का जाँच-इलाज भी अत्याधिक प्रभावित रहा। टीबी और एचआईवी स्वास्थ्य सेवाएँ भी अत्याधिक प्रभावित रहीं।

हाल ही में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार, कोविड महामारी का असर जो हमारी स्वास्थ्य प्रणाली पर पड़ा है, उसके कारणवश आगामी 5 साल में भारत में 20% अधिक टीबी मृत्यु और 10% अधिक एचआईवी मृत्यु हो सकती हैं।

डॉ ईश्वर गिलाडा की अपील है कि अभी वर्तमान में कोविड दर नीचे की ओर जा रहा है और हमें अन्य रोगों के लिए स्वास्थ्य प्रणाली को बिना विलम्ब मज़बूत करना होगा। टीबी और एचआईवी स्वास्थ्य सेवा जितना लाभ पहुँचाती है उसे रोगाणुरोध प्रतिरोध पंक्चर कर देता है। रोगाणुरोध प्रतिरोधकता पर अंकुश लगाना एक बड़ी चुनौती है और जन स्वास्थ्य के लिए उच्चतम प्राथमिकता होनी चाहिए।

मुंबई के डीपीएस शताब्दी म्यूनिसिपल अस्पताल के प्रमुख और भारत सरकार द्वारा संचालित राष्ट्रीय टीबी उन्मूलन कार्यक्रम के प्रशिक्षक और वरिष्ठ फेफड़े रोग विशेषज्ञ डॉ विकास एस ओसवाल ने इस माह अक्टूबर में एक महत्वपूर्ण शोध देश में आरम्भ किया है जो सरकार को भावी नीति निर्माण के लिए आधार देगा कि दवा प्रतिरोधक टीबी के इलाज के लिए नवीनतम दवाएँ (Latest drugs to treat drug resistant TB) हमारे परिप्रेक्ष्य में अनुकूल हैं या नहीं। इन दवाओं को बीपीएएल के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि इसमें 3 दवाएँ शामिल हैं जो इस प्रकार हैं : बेडाकुइलीन, प्रीटोमेनिड और लिनेजोलिड।

विषाक्त दवा की डोज़ कम करें, कहना है डॉ अमीत द्रविड का (Reduce the dosage of toxic drug, says Dr Amit Dravid)

रूबी हाल क्लिनिक अस्पताल के वरिष्ठ एचआईवी और संक्रामक रोग विशेषज्ञ डॉ अमीत द्रविड ने कहा कि विश्व टीबी रिपोर्ट के नवीनतम आँकड़े देखें तो ज्ञात होगा कि 2019 में 4.45 लाख लोग टीबी के कारण भारत में मृत हुए जिनमें 9500 ऐसे लोग थे जो एचआईवी के साथ सह-संक्रमित थे। 2019 में 71000 ऐसे एचआईवी पॉज़िटिव लोग थे जिनको टीबी रोग हुआ जिनमें से 44517 को जीवनरक्षक एंटीरेट्रोविरल दवाएँ प्राप्त भी हो रही हैं। भारत में 124000 लोगों को 2019 में दवा प्रतिरोधक टीबी थी पर सिर्फ़ 56569 लोगों को मुनासिब दवा मिल पायी। डॉ अमीत द्रविड ने कहा कि दवा प्रतिरोधक टीबी के इलाज में उपयोग होने वाली एक दवा से विषाक्तता हो सकती है (लिनेजोलिड)। इसलिए वैज्ञानिक शोध के मद्देनज़र हम लोगों को विषाक्त दवा (लिनेजोलिड) की डोस (खुराक की मात्रा) १२०० मिलीग्राम से ६०० मिलीग्राम कम कर देनी चाहिए।

डॉ ईश्वर गिलाडा का कहना है कि जब टीबी से बचाव मुमकिन है, पक्की जाँच और पक्का इलाज मुमकिन है और सरकारी स्वास्थ्य सेवा में निशुल्क है तो क्यों लाखों लोग हर साल देश में टीबी से मृत होते हैं? टीबी आज भी एचआईवी के साथ जीवित लोगों के लिए सबसे सामान्य और घातक अवसरवादी संक्रमण है। यदि हम एचआईवी पॉज़िटिव लोगों को टीबी से बचा पाएँगे तो टीबी और एड्स दोनों के उन्मूलन की ओर बढ़ने में सहायक रहेगा और मानव पीड़ा भी घटेगी।

नवीनतम आँकड़ो के अनुसार, दुनिया में एक साल में 1 करोड़ लोगों को टीबी रोग हुआ और 14 लाख लोग मृत, एवं एक साल में 15 लाख लोग नए एचआईवी से संक्रमित हुए और 680,000 लोग एड्स सम्बंधित रोगों से मृत।

बॉबी रमाकांत

(विश्व स्वास्थ्य संगठन महानिदेशक द्वारा २००८ में पुरस्कृत, बॉबी रमाकांत, सीएनएस (सिटिज़न न्यूज़ सर्विस), और आशा परिवार से जुड़े हैं।

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