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बच्चों की खरीद-फरोख्त रोकने के लिए दरकार है ट्रैफिकिंग के खिलाफ एक सख्त कानून की
There is a need for a strict law against trafficking to stop the trafficking of children.
आशुतोष नेमा
एक अच्छा जीवन जीने के लिए अच्छी नौकरी हर किसी के जीवन का सपना होता है। ऐसा ही एक सपना रतन लाल द्वारा अशोक कुमार को दिखाया जाता है। अपने गांव में पसरी गरीबी व भुखमरी से बचने के लिए अशोक रतन के झांसे में आ जाता है और अपनी 15 साल की मासूम बेटी सरला (बदला हुआ नाम) को दिल्ली भेजने को राजी हो जाता है। रतन सरला को दिल्ली में नौकरी दिलाने का वायदा करता है। वह अशोक को 2000 रूपये पेशगी देकर दिलासा देता है कि सरला दिल्ली पहुंचकर खूब पैसे कमाएगी। फिर वह सरला को लेकर दिल्ली आ जाता है।
अशोक को यह एहसास ही नहीं होता है कि उसकी बेटी का सौदा हो चुका है। सरला बाल दुर्व्यापार (ट्रैफिकिंग) की शिकार हो चुकी है। दिल्ली पहुंचकर रतन सरला को एक वेश्यालय में बेच देता है।
सरला जैसी घटना हर साल हजारों लड़कियों के साथ घटती है।
नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार भारत में हर रोज 8 बच्चे दुर्व्यापार के शिकार होते हैं। कोविड-19 की महामारी और उससे उपजे आर्थिक संकट व बेरोजगारी ने हजारों बच्चों को जाने-अनजाने इस अपराध की चपेट में लिया हैl पिछले महज 14 महीने के दौरान नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित कैलाश सत्यार्थी द्वारा स्थापित बचपन बचाओ आंदोलन (बीबीए) ने कानून प्रवर्तन एजेंसियों की मदद से 9000 से अधिक बच्चों को दुर्व्यापार से मुक्त कराया है। वहीं 265 दलालों (ट्रैफिकर्स) को भी हिरासत में लिया गया है।
ट्रैफिकर या दलाल कौन होता है
ट्रैफिकर या दलाल वो व्यक्ति होता है जो बच्चों की खरीद-फ़रोख्त में लिप्त होता है। यह अनजान व्यक्ति, जान-पहचान का या फिर रिश्तेदार कोई भी हो सकता है। आमतौर पर भारत में यह ट्रैफिकर गरीब और पिछड़े राज्यों मसलन बिहार, उत्तर प्रदेश, असम, पश्चिम बंगाल, झारखंड, छत्तीसगढ़ या अन्य राज्यों से बच्चों को बहला-फुसलाकर, डरा धमका और ज़ोर ज़बरदस्ती से बच्चों के दुर्व्यापार को अंजाम देता है। ट्रैफिकर अपने मुनाफे के लिए बच्चों को एक गांव से दूसरे गांव, गांव से शहर, शहर से बड़े शहर, और कई बार देश से विदेश तक उनका दुर्व्यापार करता है।
गौरतलब है कि अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) के अनुसार मानव दुर्व्यापार विश्व में तीसरा सबसे बड़ा मुनाफे वाला संगठित आपराधिक उद्योग है। यह सालाना 150 बिलियन डॉलर का कारोबार करता है। इस अपराध में व्यक्ति की आज़ादी को चुरा कर मुनाफा बनाया जाता है।
दुर्व्यापार करने के कई कारण हैं, जैसे बंधुआ या जबरिया मजदूरी, भीख मंगवाना, आतंकवादी गतिविधियों में इस्तेमाल करना, अंग व्यापार करना, जबरन शादी या बाल विवाह आदि। ट्रैफिकर आम लोगों को छल-कपट, धोखाधड़ी या शारीरिक रूप से मजबूर करता है। कई बार ट्रैफिकर्स दूसरों को अपने काबू में करने के लिए मनोवैज्ञानिक साधनों का भी प्रयोग करते हैं।
भय, आघात, मादक पदार्थों की लत, परिवारों के खिलाफ धमकियां, गरीबी, बेघर होना आदि विकल्पों का भी इस्तेमाल किया जाता है। ऐसा सिर्फ देश में ही नहीं, देश के बाहर तक किया जाता है। पुलिस के पास ऐसे कई मामले आते हैं, जहां मिडिल ईस्ट में काम करने गए भारतवासियों का पासपोर्ट जब्त कर उन्हें अवैध कार्यों में लगाया जाता है। उन्हें पैसे भी नहीं मिलते व दयनीय स्थिति में दिन-रात काम करना पड़ता है।
एक नागरिक के रूप में हमें यह समझना चाहिए कि मानव दुर्व्यापार कोई अकेला अपराध नहीं है। यह एक बड़े कटोरे के समान है जिसके अंदर कई सारे अपराध रखे हैं। एक दलाल असम से बच्ची को झांसा देकर दिल्ली लाता है। उसे बेच कर अपना मुनाफा कमाता है। जिसने बच्ची खरीदी, वो उसे गुलाम बनाकर घर के सारे काम कराता है। उसका यौन शोषण करता है। अपने दोस्तों से भी उस बच्ची का यौन शोषण कराकर पैसा कमाता है। इस प्रक्रिया मे लिप्त हर एक व्यक्ति दोषी है क्योंकि बच्ची पर कई सारे अपराध किए गए, जिसमें बंधुआ मजदूरी, गुलामी, बाल मजदूरी, यौन शोषण, दुर्व्यापार आदि शामिल हैं।
भारत मानव दुर्व्यापार को कई प्रकार से प्रतिबंधित करता है। भारत के संविधान में अनुच्छेद 23 (1) के तहत मानव दुर्व्यापार निषेध है। इम्मोरल ट्रैफिकिंग प्रिवेंशन एक्ट 1956 (Immoral Trafficking Prevention Act 1956), व्यावसायिक यौन शोषण के लिए दुर्व्यापार रोकने का प्रमुख कानून है। क्रिमिनल अमेंडमेंट एक्ट 2013 के तहत इंडियन पीनल कोड की धारा 370 और 370 ए को इसके लिए स्थापित किया गया है। कानून होने के बावजूद राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के अनुसार भारत में हर साल दुर्व्यापार 14.3 प्रतिशत की रफ्तार से बढ़ रहा है। इसका मुख्य कारण मौजूदा कानूनी व्यवस्था में कई बड़ी खामियों का होना है, जैसे इस जटिल अपराध की जांच और इस पर रोक लगाने के लिए एक विशेष एजेंसी की अनुपस्थिति। अपराध में लिप्त संगठित सिंडिकेट के खिलाफ सख्त प्रावधान कानून में शामिल न होना। पीड़ितों के पुनर्वास, उनकी समाजिक बहाली और पुन: सामाजिक एकीकरण वर्तमान ढांचे में न होना है। अतः एक विशेष कानून की तत्काल आवश्यकता कई वर्षो से है।
इस संबंध में नोबेल शांति पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी के लंबे आंदोलन के बाद भारत की संसद में पहली बार मानव दुर्व्यापार के खिलाफ कानून 2018 में लोकसभा से पारित हुआ था। हालांकि राज्यसभा में पारित न हो पाने से बिल का अस्तित्व समाप्त हो गया। गौरतलब है कि सन 2017 में श्री कैलाश सत्यार्थी ने बाल दुर्व्यापार के खिलाफ एक प्रभावी और मजबूत कानून बनाने और लोगों को इस बारे में जागरुक करने के लिए देशव्यापी “भारत यात्रा” का आयोजन किया था। तब श्री सत्यार्थी के नेतृत्व में 12 लाख भारतीयों ने सड़क पर उतर कर मजबूत मानव दुर्व्यापार विरोधी कानून बनाने की मांग उठाई थी।
बच्चों के यौन शोषण और ट्रैफिकिंग के खिलाफ 35 दिनों तक चली यह ऐतिहासिक जन-जागरुकता यात्रा तब 22 राज्यों से गुजरते हुए 12 हजार किलोमीटर की दूरी तय की थी। एक बार फिर 2021 में सरकार संसद के मौजूदा मानसून सत्र में ‘ट्रैफिकिंग इन पर्संस (प्रीवेंशन, केयर एंड रिहैबिलिटेशन) बिल, 2021’ पेश कर रही है। ड्राफ्ट बिल दुर्व्यापार के पहलुओं को प्रभावी और व्यापक रूप से सम्बोधित करता है। इस सख्त कानून में मानव दुर्व्यापार की रोकथाम एवं जांच के लिए विशेष एजेंसियां, परीक्षण के लिए विशेष अदालतें, पीडि़तों का पुनर्वास आदि मौजूद हैं। मानव दुर्व्यापार से निपटने के लिए प्रतिष्ठित एजेंसी एनआईए को भी इसमें शामिल किया गया है। ये प्रावधान जांच प्रक्रिया को गति देने का काम करेंगे और अपराधियों की तेजी से गिरफ्तारी में मदद करेंगे, जो आम तौर पर सिर्फ एक व्यक्ति नहीं, बल्कि एक पूरा सिंडिकेट और संगठित आपराधिक समूह होता है।
कुछ दूसरे प्रावधान जैसे बच्चे का दुर्व्यापार करने पर कड़ी सज़ा, बच्चे की आयु 12 वर्ष से कम है, तो अत्यधिक कठोर सज़ा आदि का प्रावधान है। बिल में दुर्व्यापार के 23 गंभीर रूप भी शामिल किए गए हैं। इसमें एफ़आईआर दर्ज करने के 30 दिनों के भीतर पीड़ित को तत्काल राहत देने का भी प्रावधान है। ऐसे कई प्रावधान इस नए बिल को एक मजबूत कानून के रूप में पेश करते हैं।
अब देखना यह है कि भारत की संसद हमारे बच्चों और लोगों को मानव दुर्व्यापार का सुरक्षा कवच इस सत्र में दे पाती है या फिर इसके लिए लंबा इंतज़ार करना पड़ेगा। यदि संसद द्वारा इसे पारित किया जाता है, तो यह कानून मानव दुर्व्यापार के अपराध से निपटने में मील का पत्थर साबित होगा।
(लेखक बाल अधिकार कार्यकर्ता हैं।)