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These news are presenting a black picture of our perverted politics and stifling system.
रांची, 08 मई 2020. जहां पूरे विश्व में कोरोना की महामारी सुर्खियों में है, वहीं भारत में मजदूरों के बीच भूख का भय, बेरोजगारी की चिंता, अपनों से मिलने की बेताबी से पैदा हो रही अफरा—तफरी से उत्पन्न हो रहे माहौल की खबरों की सुर्खियां कोरोना के खतरों से भी ज्यादा चिंताजनक हो गई हैं। कहीं सैकड़ों मील पैदल चल पड़ने, तो कहीं साईकिल से ही निकल पड़ने की खबर हमारी मानवीय संवेदनाओं को झंकझोर दे रही है। कभी भूखे प्यासे पैदल चलते—चलते हो रहीं मौतों की खबरें, कभी लगातार साईकिल चलाते हुए मौत का निवाला बन जाने की खबरें, तो कभी रेल की पटरी को ही सेज बनाकर निश्चिंत हो मौत का शिकार हो जाने की खबरें, कोरोना के खतरों को एक खास वर्ग तक सिमट कर रह जाने को मजबूर कर दिया है। कहना ना होगा कि ये खबरें हमारी विकृत राजनीति व दमघोंटू व्यवस्था की काली तस्वीर पेश कर रही हैं।
कहना ना होगा कि आज मजदूर वर्ग सदी की सबसे बड़ी त्रासदी से गुजर रहा है। कोरोना के संक्रमण से मुक्ति को लेकर लॉकडाउन से प्रवासी मजदूरों का हाल बेहाल हो गया है। पिछले डेढ़ महीने से लॉकडान के कारण जो जहां हैं, उसे वहीं रुके रहना है। मजदूरों को भूखों रहने की नौबत आ गई है। ऐसे में प्रवासी मजदूर कहीं पैदल तो कहीं साईकिल से ही अपने—अपने गांव—घर निकल जा रहे हैं। क्योंकि सरकारी लफ्फाजी पर अब मजदूरों को भरोसा नहीं रही है। झारखंड के 10 लाख से अधिक मजदूर दूसरे राज्यों में फंसे हैं। छत्तीसगढ़ के नागपुर से झारखंड के 8 प्रवासी मजदूरों को घर लौटने का जब कोई साधन नहीं मिल सका तो वे झारखंड के लिए पैदल ही निकाल पड़े। इसमें एक मजदूर सराईकेला निवासी रवि मुंडा (42) की जान डिहाईड्रेशन के कारण रास्ते में ही चली गयी।
बताते हैं कि बिलासपुर शहर के निकट सरगांव पहुंचने पर रवि मुंडा की तबीयत बिगड़ी। तब तक वह 400 किलोमीटर की दूरी तय कर चुका था। उसे अचानक डिहाइड्रेशन की शिकायत हुई। लेकिन कोरोना का संदिग्ध मानकर उसका इलाज देर से शुरू किया गया।
बताते हैं कि 3 अप्रैल को छत्तीसगढ़ आयुर्वेदिक संस्थान में रवि का दाखिला हुआ। उसके साथ चल रहे सात लोगों को भी जांच के लिए भर्ती किया गया। चार अप्रैल को रवि की मौत हो गयी। मौत के बाद रवि और उसके बाकी के साथियों की रिपोर्ट भी निगेटिव ही आई। रिपोर्ट के बाद 6 अप्रैल की सुबह रवि मुंडा के शव का अंतिम संस्कार छत्तीसगढ़ में ही कर दिया गया।
इसी तरह आंध्रप्रदेश के विजयवाड़ा में रोड कंस्ट्रक्शन के लिए झबली कांट्रेक्टर के पास काम करने वाले झारखंड के गढ़वा जिला के निवासी 30 मजदूरों को लॉकडाउन के बाद भूखों मरने की नौबत आई तो वे सभी मजदूर 3 मई को विजयवाड़ा से चल दिये। ये प्रवासी मजदूर 333 किलोमीटर यात्रा पैदल पूरी करके जब तेलंगाना और छत्तीसगढ़ सीमा के सुकमा जिला के कोंटा पहुंचे तो उन्हें रोक दिया गया। ये सभी मजदूर गढ़वा जिले के बरडीहा प्रखंड के सलगा गांव के रहने वाले हैं। जब इसकी जानकारी वाट्सएप के माध्यम हुई और इनसे फोन पर संपर्क किया गया तो धर्मदेव राम ने बताया कि जो हमारे पास मजदूरी के पैसे बचे थे अब वे भी खत्म हो गये हैं। यह पूछे जाने पर कि वहां का प्रशासन खाना वगैरह दे रहा है कि नहीं? तो धर्मदेव राम बताते हैं कि दिन भर में एक समय खाना दिया जा रहा है। पिछली रात से वे लोग खाने की व्यवस्था कर रहे हैं पर घर भेजने के लिए किसी गाड़ी की व्यवस्था नहीं कर पाये हैं।
वे बताते हैं कि हमें खुले में रखा गया है और इधर कहीं भी जाने नहीं दिया जा रहा है। वहीं विकास यादव कहते हैं कि राज्य सरकार हमें अपने घर पहुंचा दे। हमलोगों को काफी परेशानी हो रही है। खाने-पीने के साथ पैसे भी खर्च हो गये हैं। सरकार ने मदद नहीं की तो घर लौटना अब मुश्किल होता जा रहा है।
अशोक राम का कातर स्वर सुनाई पड़ता है— वे कहते हैं कि वे लोग जिसके यहां काम करते थे, उसके पास कुछ मजदूरी एवं किराया बचा हुआ है लेकिन वह दिया नहीं। किसी तरह जंगल के रास्ते से कोंटा (सुकमा) पहुंचे हैं जहां छत्तीसगढ़ प्रशासन ने उन्हें रोक लिया है।
इस बावत जब स्वतंत्र पत्रकार रूपेश कुमार सिंह को जानकारी हुई तो उन्होंने एक ट्वीट कर इनकी समस्याओं को रखा तब छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ पत्रकार कमल शुक्ला ने ट्वीट कर बताया कि
''रूपेश जी तेलंगाना की ओर से छत्तीसगढ़ प्रवेश करने वाले सभी मजदूरों को सुकमा जिले के कोंटा में क्वारंटीन किया गया है। इन सब की देखरेख के लिए अनेक पत्रकार साथी सक्रिय हैं। मकबूल भाई का नंबर 6302202697 है, मेरी बात इनसे हो गई है, किसी भी अन्य समस्या के लिए नम्बर दे सकते हैं।''
इनके ट्वीट को झारखंड सरकार का कोविड 19 ने भी गंभीरता से लिया है।
एक अन्य खबर के अनुसार झारखंड के लातेहार व पलामू जिला के दर्जनों प्रवासी मजदूर तेलंगाना के हैदराबाद स्थित बांस पल्ली में फंसे हुए हैं। वे घर आना चाहते हैं, परंतु संदीप खलखो नामक उनका ठेकेदार उन्हें आने नहीं दे रहा है। सरकार द्वारा जारी लिंक में रजिस्ट्रेशन भी करने नही दे रहा है। जिसके कारण सारे मजदूर दहशत में हैं। प्रवासी मजदूरों में अभय मिंज व चंदन बड़ाईक ने फोन पर बताया कि ''संदीप खलखो लातेहार जिला के महुआटांड़ थाना अंतर्गत नावा टोली सरनाडीह का रहने वाला है। जब हम मजदूर लोग घर वापस जाना चाहते हैं तो हमलोगों का लेबर सप्लायर संदीप खलखो हमारा सारा सामान रख ले रहा है। सरकार द्वारा जारी रजिस्ट्रेशन लिंक को भी हटा दिया है। वह हमें बंधक बना लिया है और कहता है कि अगर जाना है तो सारा सामान यहीं छोड़ दो। वह हमें पैसा भी नहीं दे रहा है।'' इसकी जनकारी पूर्व मंत्री थियोडोर किडो से मिली, जिन्होंने अभय मिंज व चंदन बड़ाईक का नंबर दिया।
सुकमा में फंसे मजदूर धरमदेव राम- 6202613253 का नंबर है।
हैदराबाद में फंसे अभय मिंज 9523195135 व चंदन बड़ाईक 8987512625 का नंबर है।
- विशद कुमार
विजयवाड़ा से पैदल अपने घर लौट रहे झारखंड के गढ़वा जिले के बरडीहा प्रखंड के सलगा गांव के रहने वाले 30 प्रवासी मजदूरों को कोंडा (सुकमा, छत्तीसगढ़) में 6 मई से ही रोककर रखा गया है। इनमें से एक धरमदेव राम (मो. 6202613253) ने मुझे बताया कि इन्हें खाना भी नहीं दिया जा रहा है। pic.twitter.com/XMwbpuD824
— Rupesh Kumar Singh (@RupeshKSingh85) May 8, 2020
मित्रों से मेरी बात हुई है वह इन तक हर प्रकार के पहुंचाने के लिए तैयार हैं। वैसे अभी मेरी बात राजवर से हुई है। उसका कहना है कि आज उन्हें खाना मिल चुका है। @kawasi_lakhma जी कृपया ध्यान दें
— kamal shukla (@kamalkanker) May 8, 2020