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इम्फाल से बहुत बुरी खबर है। व्योमेश शुक्ल जी ने लिखा है
भारत के शीर्षस्थ रंगनिर्देशकों में-से एक श्रीयुत रतन थियाम कोविड से संक्रमित होकर इंफाल-स्थित राज मेडिसिटी हॉस्पिटल में भर्ती हैं, जहाँ उनका इलाज शुरू हो गया है और तबीयत ख़तरे से बाहर है।
उनके साथ उनके पुत्र और युवा रंगनिर्देशक थवई थियाम, मित्रों- परिजनों- शुभचिंतकों- रंगकर्मियों के साथ-साथ देश-भर के रंगप्रेमियों की शुभकामना का भी बल है।
वह शीघ्र स्वस्थ हों। मणिपुर और देश में चिकित्सा-सुविधा और प्रशासन से जुड़े लोग भी उनका ध्यान रखें। वह राष्ट्र की अनमोल निधि हैं।
हम भी भारत सरकार से मांग करते हैं कि रत्न थियाम जी के इलाज का सही बंदोबस्त किया जाए। हालांकि यह मांग बेमानी है क्योंकि हुक्मरान को कवि शंखों घोष और कानूनविद सोली सोराबजी के निधन पर श्रद्धांजलि देने की फुर्सत नहीं मिली।
इतनी बड़ी तादाद में डॉक्टर, प्रोफेसर, इंजीनियर, वकील, अफसर, पुलिसकर्मी, साहित्यकार, पत्रकार, स्वास्थ्यकर्मी मारे जा रहे हैं, इनकी सेहत पर कोई असर नहीं है।
समझा जा सकता है कि हमारी की राजनीति और बिजनेस के लिए आपदा ही अवसर है।
लोग मरें या जियें किसी को फर्क नहीं पड़ता।
फेसबुक पर लोग दुःख ही जता सकते हैं।
अखबारों में तो सिर्फ गिनती होती है, जिसमें किसी का चेहरा नहीं होता।
आज दिन भर देश भर में प्रेरणा अंशु के रचनाकारों, सहयोगियों, पाठकों, वितरकों और मित्रों से पत्रिका के मई अंक के सिलसिले में बात की तो पहाड़ से लेकर कोलकाता, दिल्ली, पुणे, पटना, रांची, जयपुर, पुणे, मुम्बई, हैदराबाद, चंडीगढ़, रायपुर, नागपुर, भोपाल, अहमदाबाद, लखनऊ, वाराणसी, नागपुर, भुवनेश्वर,सर्वत्र लोग संक्रमित हैं या गृहबन्दी हैं। या फिर परिवार में शोक है।
हल्द्वानी, नैनीताल,पिथौरागढ़, टिहरी सर्वत्र महामारी है। पहाड़ों में प्राकृतिक आपदा अलग है।
हमारे इलाके में भी गांवों में संक्रमण तेज़ है और कहीं भी इलाज नहीं हो रहा है।
सरकारी खरीद के वेंटिलेटर बेकार हैं। आक्सीजन नहीं है। वैक्सीन मिल नही रहा। डॉक्टर मरीज को छू नहीं रहे।
पहाड़ में तो गांव से 50 मील दूर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र हैं।
क्या कहा जाए?
महामारी के राजकाज में महाविनाश का यह महोत्सव है
पलाश विश्वास
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जन्म 18 मई 1958
एम ए अंग्रेजी साहित्य, डीएसबी कालेज नैनीताल, कुमाऊं विश्वविद्यालय
दैनिक आवाज, प्रभात खबर, अमर उजाला, जागरण के बाद जनसत्ता में 1991 से 2016 तक सम्पादकीय में सेवारत रहने के उपरांत रिटायर होकर उत्तराखण्ड के उधमसिंह नगर में अपने गांव में बस गए और फिलहाल मासिक साहित्यिक पत्रिका प्रेरणा अंशु के कार्यकारी संपादक।
उपन्यास अमेरिका से सावधान
कहानी संग्रह- अंडे सेंते लोग, ईश्वर की गलती।
सम्पादन- अनसुनी आवाज - मास्टर प्रताप सिंह
चाहे तो परिचय में यह भी जोड़ सकते हैं-
फीचर फिल्मों वसीयत और इमेजिनरी लाइन के लिए संवाद लेखन
मणिपुर डायरी और लालगढ़ डायरी
हिन्दी के अलावा अंग्रेजी औऱ बंगला में भी नियमित लेखन
अंग्रेजी में विश्वभर के अखबारों में लेख प्रकाशित।
2003 से तीनों भाषाओं में ब्लॉग