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भाजपा को मजबूत करने के लिए संघ के इशारे पर शूद्र राजनीति का झुनझुना बजा रहे हैं अखिलेश यादव

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hastakshep
06 Feb 2023
भाजपा को मजबूत करने के लिए संघ के इशारे पर शूद्र राजनीति का झुनझुना बजा रहे हैं अखिलेश यादव

shoodra politics

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समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव का बयान काफी चर्चा में है। सपा और भाजपा की जुगलबंदी ने राजनीतिक गलियारे में एक नये किस्म की बहस शुरू कर दी है।

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दरअसल समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव पिछले दिनों लखनऊ के एक धार्मिक आयोजन में गए हुए थे, वहां भाजपा के कार्यकर्ताओं ने हंगामा काट दिया। अखिलेश यादव ने इसके बाद एक मीडिया बयान में कहा कि वे शूद्र हैं इसलिए उनका विरोध भाजपा के लोग कर रहे हैं।

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अखिलेश यादव ने सवाल करते हुए कहा कि योगी जी बताएं की वे शूद्र हैं कि नहीं हैं? इसके बाद समाजवादी पार्टी के कार्यालय के बाहर एक होर्डिंग लगी जिस पर लिखा हुआ है कि गर्व से कहो कि हम शूद्र हैं।

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बहस बिहार से शुरू हुई थी। बिहार के शिक्षा मंत्री ने रामचरितमानस के एक चौपाई पर अपनी आपत्ति दर्ज की। यूपी में सपा नेता स्वामी प्रसाद मौर्या, जो कि संघ शरणागत होकर सपा में आये हैं, उन्होंने रामचरितमानस को लेकर कई बयान दिए। उनके समर्थकों ने रामचरितमानस को जलाया। इसके बाद मीडिया और सोशल मीडिया में एक तीखी बहस शुरू हुई।

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सवाल है एजेंडा क्या होगा पिछड़ों की राजनीति का

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एक तरफ संघ परिवार  के लोग और कुछ संत महंत हैं तो दूसरी तरफ सपा के लोगों के साथ कुछ पिछड़े और दलित चिन्तक जो लगातार इस बहस को तीखा बना रहे हैं। लेकिन कोई भी मूल प्रश्न नहीं उठा रहा है कि पिछड़ों की राजनीति का एजेंडा क्या होगा? 

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यह कोई छुपी बात नहीं है कि समाजवादी पार्टी ने भाजपा के साथ मिलकर पिछड़ों और दलितों के मुद्दों को लगाताक कमजोर बनाया है। इस तरह की दर्जनों मिसालें हैं।

याद होगा जब 2012 में देश की संसद में कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए सरकार के राज्यमंत्री नारायण सामी कोटा बिल पेश कर रहे थे तब सपा के सांसद यशवीर सिंह और नीरज सिंह ने उनके हाथ से बिल की प्रति छीनकर फाड़ दिया। दलित समाज की बेहतरी लिए पेश किये गए बिल की तरफ जब सपा के नेता बढ़ रहे थे तो कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी ने उन्हें खुद रोकने की कोशिश की, लेकिन छीना-झपटी में बिल की कॉपी सपा सांसद ने फाड़ दी।

सिर्फ इतना ही नहीं, सपा ने राज्यसभा में भी इस बिल का विरोध किया। होना तो यह चाहिए था कि सपा प्रमोशन बिल में पिछड़ों के आरक्षण की बात करती, लेकिन समाजवादी पार्टी ने तो इस बिल को ही संविधान के खिलाफ बता दिया। 

पिछड़े छात्रों पर बर्बर लाठीचार्ज कराने वाले अखिलेश यादव ने पिछड़ों के त्रिस्तरीय आरक्षण पर रोक लगा दी थी

आज अखिलेश यादव खुद को शूद्र करार दे रहे हैं, लेकिन जब वे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे तब उन्होंने पिछड़ों के त्रिस्तरीय आरक्षण पर रोक लगा दी थी। इतना ही नहीं बल्कि पिछड़े वर्ग छात्रों के ऊपर इलाहाबाद से लेकर लखनऊ की सड़कों पर बर्बर अखिलेश यादव की सरकार ने लाठीचार्ज करवाया था। इन आन्दोलन के नेताओं पर संगीन फर्जी मुकदमे दर्ज किये गए। बड़े निर्मम तरीके से अखिलेश यादव ने इस आन्दोलन का दमन कर दिया था। पिछड़े छात्र अपने मौलिक अधिकार से वंचित हो गए। अखिलेश यादव के पूर्ण बहुमत की सरकार ने ठेकेदारी में दलित समाज के आरक्षण को भी ख़त्म कर दिया।

भाजपा-सपा की मिली भगत है शूद्र राजनीति का शिगूफा

आगामी लोकसभा चुनाव के पहले भाजपा की रणनीति पर समाजवादी पार्टी काम कर रही है ताकि चुनाव को ध्रुवीकरण की आग में झोंका जा सके। इसलिए साजिशन इस तरह की अंतहीन बहसों को हवा दी जा रही है। ध्रुवीकरण और जातीय नफरत आखिरकार भाजपा को ही मददगार साबित होगी, क्योंकि इस मामले में वह सपा से अव्वल है। 

वैचारिक तौर पर देखा जाए तो कथित शूद्र की नारे वाली राजनीति संघ परिवार द्वारा पोषित वर्णव्यवस्था के आधार को मजबूत करेगी। जबकि एक प्रगतिशील राजनीतिक पार्टी का धर्म तो यह है कि वह अपने देश के संविधान को ताकत दे। उसके गैर-मजहबी और समतामूलक समाज के निर्माण का कर्णधार बने। 

पिछड़ों के मूल मुद्दों से आँख चुराती है सपा

पिछड़ा समाज जोकि अपनी अंतहीन समस्याओं की घिरा हुआ है। यूपी में पिछड़ों की 79 जातियां हैं जिनमें कई जातियां अपने नंबर आने की बाट जोह रही हैं कि आखिर उनकी समस्याओं पर बात कब होगी? कब उनके हुनर को इज्जत मिलेगी? जबकि तमाम रिपोर्टों में उनकी बेदखली की कहानियां दर्ज हैं। मंडल कमीशन की सिफारिशें दम तोड़ रहीं हैं, लेकिन उसकी कोख से जनी समाजवादी पार्टी उसकी तरफदारी करने के बजाय शूद्र राजनीति का झुनझुना बजा रही है। 

अखिलेश यादव अतिपिछड़ा समाज के आरक्षण के मुद्दे पर चुप्पी साध लेते हैं। ओबीसी के 27 फीसदी आरक्षण बढ़ाए जाने को सपा ने यूपी मुद्दा नहीं बनाया जबकि छत्तीसगढ़ और झारखंड राज्य की सरकार ने अपने यहाँ इसको लागू किया। जातीय जनगणना पर सपा का रवैया ढुलमुल ही है। इन मुद्दों से भटका कर समाजवादी पार्टी भाजपा को मजबूत और पिछड़ी जातियों को कमजोर करना चाहती है।

बहस तो मंडल कमीशन, सामाजिक न्याय कमेटी, रोहिणी कमेटी में लिखी सिफारिशों और उनको लागू कराने पर होनी चाहिए, लेकिन एक साजिश के चलते यह बहस रामचरित मानस की चौपाइयों पर हो रही है। 

अनिल यादव 

लेखक यूपी कांग्रेस के संगठन सचिव हैं।

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