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आज है तस्लीमा नसरीन का जन्मदिन | Today is Taslima Nasreen's birthday
जन्मदिन मुबारक तस्लीमा नसरीन।
धर्म जब तक है, तब तक समानता और न्याय असम्भव है।
धर्म जब तक है, स्त्री की मुक्ति असम्भव है।
धर्म जब तक है, दलितों की आज़ादी नामुमकिन है।
धर्म है तो नागरिक स्वतंत्रता और लोकतंत्र बेमतलब है।
ऐसी बातें कहकर लिखकर, धर्मग्रन्थों मिथकों को ध्वस्त करके बांग्लादेश की मेमन सिंह (Mymensingh, Bangladesh) की पेशे से डॉक्टर गजब की पठनीय भाषा और दुनिया भर में लोकप्रियता के बावजूद 26 साल से निर्वासित है। लेकिन उसने कभी अपने बयान और तेवर नहीं बदले।
यह अकेली लड़की दुनियाभर की धर्मसत्ता, राजसत्ता, सामंती और फासिस्ट ताकतों से लड़ रही है।
बांग्लाभाषी होने के कारण भारत की नागरिकता लेकर वह बंगाल में बसना चाहती थीं, लेकिन धर्मनिरपेक्ष भारत के प्रगतिशील बंगाल में भी कट्टरपंथियों की इतनी बड़ी ताकत है कि उनकी यह इच्छा भी पूरी नहीं हो सकी। शरणार्थी बजूद को बगावत में ढाल देने वाली इस लड़की को बांग्लादेश के तमाम अखबारों में जब उसके बागी कॉलम छपा करते थे, तबसे अब तक लगातार पढ़ते रहे हैं।
Taslima Nasreen's novel Lajja focuses on minority oppression in Bangladesh
बांग्लादेश में अल्पसंख्यक उत्पीड़न पर केंद्रित उसके उपन्यास लज्जा के प्रकाशन के बाद से वह बांग्लादेश में निषिद्ध और निर्वासित है। लेकिन भारत में उसके आत्मकथ्य भी कट्टरपंथियों के दबाव में निषिद्ध है।
स्वतन्त्र धर्मनिरपेक्ष नागरिक होने के कारण हम शर्मिन्दा हैं।
हम शुरू से आपका हिंदी, बांग्ला और अंग्रेज़ी में समर्थन करते रहे हैं, करते रहेंगे।
लेकिन माफ करना तस्लीमा, हम देश, दुनिया और आधुनिक मनुष्यता में वैज्ञानिक दृष्टि विकसित करने में असमर्थ हैं।
आपको जन्मदिन की बधाई।
उम्मीद है कि आपसे फिर कभी न कभी मुलाकात होगी।
लेकिन आपको इस देश में कहीं भी आमंत्रित करने में भी हम असमर्थ हैं। आप अन्यथा न लें।
भारत विश्व में सबसे ताकतवर ऐसा देश है जो कट्टरपंथ और विज्ञानविरोधी मनुष्यता विरोधी, लोकतंत्र विरोधी, सभ्यता विरोधी, प्रकृतिविरोधी तत्वों के सामने घुटने टेक देता है और यही राजनीति है।
उम्मीद है कि कभी न कभी यह राजनीति बदलेगी।
एकबार फिर जन्मदिन पर आपकी लड़ाई में शामिल रहने का वायदा है।
पलाश विश्वास
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