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जब नाजी जर्मनी की हिंसा की सुनवाई 90 साल तक चल सकती है तो गुजरात जनसंहार का क्यों नहीं
लखनऊ, 30 अगस्त 2022। सुप्रीम कोर्ट द्वारा गुजरात जनसंहार से जुड़े सभी मामलों की सुनवाई बन्द कर देने के फैसले को अल्पसंख्यक कांग्रेस अध्यक्ष शाहनवाज़ आलम ने न्यायपालिका के इतिहास का सबसे कलंकित अध्याय बताया है।
उन्होंने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि मीडिया के बाद अब न्यायपालिका का एक हिस्सा खुद को सरकार का अंग बनाने को आतुर है।
कांग्रेस मुख्यालय से जारी बयान में शाहनवाज़ आलम ने कहा कि क्या अब जज यह तय करेंगे कि कौन सा मामला व्यर्थ हो चुका है और याचिकाकर्ता का किस मामले में न्याय मांगने का अधिकार है ?
उन्होंने कहा कि गुजरात जनसंहार मामले में अमित शाह के पूर्व वकील और सुप्रीम कोर्ट के चीफ़ जस्टिस यूयू ललित साहब को बताना चाहिए कि अगर कोई याचिकाकर्ता चाहता है कि उसे गुजरात दंगों के किसी मामले में न्याय मिले तो अब उसे क्या करना चाहिए? उसे कहाँ जाना चाहिए ? क्या यह न्याय पाने के उसके अधिकार का हनन नहीं है ? ये कैसे होने दिया जा सकता है कि न्यायपालिका ख़ुद लोगों के न्याय पाने के अधिकार को खत्म कर दे ?
बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में भाजपा नेताओं उमा भारती, मुरली मनोहर जोशी, विनय कटियार, साध्वी ऋतंभरा और अन्य के खिलाफ़ चल रहे अवमानना की कार्यवाई को बन्द कर देने के सुप्रीम कोर्ट के आज के फैसले को भी उन्होंने न्यायिक फैसला के बजाए राजनीतिक फैसला बताया।
आम लोगों और राजनीतिक दलों को न्यायपालिका के राजनीतिक दुरूपयोग के खिलाफ़ बोलना होगा
उन्होंने जस्टिस एलके कौल की टिप्पणी कि बाबरी मस्जिद के फैसले के बाद 'अब इस मामले में कुछ नहीं बचा है... और आप मरे हुए घोड़े को कोड़ा मारते नहीं रह सकते' को राजनीतिक टिप्पणी बताया।
उन्होंने कहा कि क्या सुप्रीम कोर्ट यह कहना चाहता है कि अब बाबरी मस्जिद विध्वंस का अपराध सिर्फ़ इसलिए अपराध नहीं रहा क्योंकि उसे हुए 30 साल हो गए ? जबकि बाबरी मस्जिद फैसले में ख़ुद सुप्रीम कोर्ट उसे अपराध बता चुका है। यहाँ तक कि लिब्राहन आयोग का गठन ही उस अपराध की जाँच के लिए हुआ था।
शाहनवाज़ आलम ने कहा कि क्या यह फैसला सुनाने वाले सुप्रीम कोर्ट के जजों को दुनिया के न्यायिक इतिहास की बिल्कुल जानकारी नहीं है? क्या उन्हें नहीं पता कि 40 के दशक के नाज़ी जर्मनी के दौर में हुए जनसंहारों का मुकदमा अभी हाल तक चला है। क्या उन्हें यह भी नहीं पता कि पड़ोसी मुल्क बांग्लादेश में 1971 के हत्याकांड के मुकदमों में अभी हाल तक सज़ा हुई है।
शाहनवाज़ आलम ने आरोप लगाया कि 2014 के बाद से न्यायपालिका का एक बड़ा हिस्सा संघ के एजेंडा पर काम कर रहा है। वो चाहता है कि न्यायपालिका की छवि इतनी ख़राब हो जाए कि लोग उस पर भरोसा करना छोड़ दें और सरकार को अदालतों में घसीटना बन्द कर दें। यह सरकार के संविधान के प्रति जवाबदेही को खत्म करने की साज़िश है। इसी साज़िश के तहत संदिग्ध पृष्ठभूमि वाले लोगों को सीधे सुप्रीम कोर्ट का जज तक नियुक्त किया जा रहा है।
जो काम सरकार ख़ुद नहीं कर सकती उसे न्यायपालिका से करवा रही है
शाहनवाज़ आलम ने कहा कि जो काम खुद मोदी सरकार नहीं कर पा रही है उसे अदालतों के ज़रिये करवाया जा रहा है। इसलिए आम लोगों और राजनीतिक दलों को न्यायपालिका के राजनीतिक दुरूपयोग के खिलाफ़ आवाज़ उठानी होगी। आगामी 3 महीने बहुत अहम होने जा रहे हैं।
Today's decision of the Supreme Court is the most tarnished chapter in the history of judiciary- Shahnawaz Alam