/hastakshep-prod/media/post_banners/5auIIPuuI80qu1bZaAU4.jpg)
/filters:quality(1)/hastakshep-prod/media/post_banners/5auIIPuuI80qu1bZaAU4.jpg)
परमाणु हथियार निषेध संधि 22 जनवरी को लागू होगी
22 जनवरी को परमाणु हथियार निषेध संधि (The Treaty on the Prohibition of Nuclear Weapons (TPNW) -टीपीएनडब्ल्यू) लागू होगा। इसके साथ परमाणु हथियारों को अवैध घोषित कर दिया जाएगा और वे गैरकानूनी हो जाएंगे। उनका उपयोग, प्रक्षेपण, अनुसंधान, किसी भी रूप में प्रौद्योगिकी का हस्तांतरण अवैध होगा।
मानव इतिहास का एक महान कदम
यह मानव इतिहास में एक महान कदम है और परमाणु हथियारों को खत्म करने और मानव जाति को विलुप्त होने से बचाने का एक वास्तविक अवसर है। यह इसलिए और भी अधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि दुनिया के कई हिस्से अब निम्न स्तर के संघर्षों में लिप्त हैं और दुनिया के कुछ हिस्सों में बड़ी शक्तियों के नरम हस्तक्षेप के साथ पूर्ण पैमाने पर युद्ध की संभावना बन रही है। संघर्ष में कोई भी वृद्धि परमाणु हथियारों के उपयोग की स्थिति पैदा कर सकती है।
हिरोशिमा और नागासाकी के सबक | Lessons from Hiroshima and Nagasaki
हमने 6 और 9 अगस्त. 1945 को जापान में हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बमबारी देखी है। इन दोनों घटनाओं के कारण 200000 से अधिक लोग मारे गए। ब्लास्ट इतना शक्तिशाली था कि बड़ी-बड़ी इमारतें भी उखड़ गईं। बमों से उत्पन्न तापमान इतना अधिक था कि उपरिकेंद्र के आसपास की ठोस इमारतें भी इसका सामना नहीं कर सकीं और पिघल गईं।
देखभाल करने के लिए वहां कोई नहीं था। दोनों शहरों में पूर्ण अराजकता थी। यह इंटरनेशनल रेड क्रॉस (International Red Cross) के डॉ. मार्सेल जूनोड द्वारा बताया गया था, जो सितंबर 1945 में हिरोशिमा की यात्रा करने वाले पहले विदेशी थे। चारों ओर विकिरणों ने स्थिति को बहुत बदतर बना दिया था और इसका प्रभाव अगली पीढ़ी के विकृत शिशुओं और कैंसर के रूप में दिखाई पड़ा था। परमाणु बमबारी से बचे हिबाकुशों द्वारा कई बार इस बात की गवाही दी जा चुकी है।
करीब 2000 परमाणु हथियार हाई अलर्ट पर हैं…
अध्ययनों से पता चला है कि यदि मौजूदा लगभग 14000 परमाणु हथियारों में से एक प्रतिशत का भी उपयोग किया जाता है, तो भी वैश्विक परमाणु हिमयुग पैदा होंगे जो फसल की विफलता, परमाणु अकाल और दो अरब से अधिक लोगों को जोखिम में डाल देंगे। दो प्रमुख परमाणु शक्तियों के बीच कोई भी परमाणु टकराव हजारों वर्षों के मानव श्रम के माध्यम से निर्मित मानव सभ्यता का अंत हो सकता है।
स्थिति अब इतनी जटिल है कि भले ही देशों ने परमाणु हथियारों का इस्तेमाल न करने का फैसला किया हो, लेकिन उनका इस्तेमाल आतंकवादी समूहों या साइबर अपराधियों द्वारा नहीं किया जा सकता है, इसकी गारंटी कोई नहीं दे सकता। प्राकृतिक परमाणु तबाही एक और कारक हो सकता है।
परमाणु हथियारों पर बिलियन डॉलर का खर्च
टीपीएनडब्ल्यू एक अवसर है जिसका वैश्विक समाज को उपयोग करना चाहिए। परमाणु हथियार रखने वाले देश पहले से ही अपने परमाणु शस्त्रागार को अद्यतन करने और मजबूत करने में भारी मात्रा में खर्च कर रहे हैं।
नौ परमाणु हथियारों वाले राज्यों ने 2019 में कुल 72.9 बिलियन डॉलर खर्च किए, जो एक साल पहले 10 फीसदी ज्यादा थी। उसमें से, ट्रम्प प्रशासन द्वारा 35.4 बिलियन डॉलर खर्च किया गया था, जिसने महामारी की रोकथाम पर खर्च में कटौती (Spending cuts on epidemic prevention) करते हुए अपने पहले तीन वर्षों में अमेरिकी शस्त्रागार के आधुनिकीकरण में तेजी लाई थी।
ट्रम्प प्रशासन ने 5 फरवरी, 2021 को समाप्त होने वाले स्टार्ट-2 को आगे बढ़ाने के लिए कोई इरादा नहीं दिखाया था। हम अभी तक जो बिडेन प्रशासन (Joe Biden Administration) द्वारा इस पर स्पष्ट कटौती का दृष्टिकोण नहीं देख पा रहे हैं। इसके अलावा एक द्विपक्षीय संधि है।
जानिए टीएनपीडब्ल्यू परमाणु हथियार निषेध संधि क्या है
टीएनपीडब्ल्यू एक वैश्विक संधि है जो यूएनओ द्वारा 7 जुलाई, 2017 को 122 मतों के बहुमत से पारित की गई थी और केवल एक ने उसके खिलाफ मत दिया था, जबकि एक मतदान के दौरान अनुपस्थित रहा था।
दुनिया भर की शांति सेना व्यापक संधि की वकालत कर रही है, जिससे परमाणु हथियारों को खत्म किया जा सके। परमाणु युद्ध की रोकथाम के लिए अंतरराष्ट्रीय चिकित्सकों को 1985 में नोबेल शांति पुरस्कार (Nobel Peace Prize) से सम्मानित किया गया था। इसने परमाणु हथियार को खत्म करने के अंतरराष्ट्रीय अभियान के बैनर तले सभी शांति आंदोलनों को एकजुट करने की पहल की थी।
परमाणु शक्तियों की नैतिक हार
संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा संधि को अपनाना मोटे तौर पर आईसीएएन द्वारा बड़े पैमाने पर अभियान, लॉबिंग और वकालत का परिणाम था जो संधि में शामिल होने के लिए विभिन्न देशों की सरकारों को समझाने में सक्षम थे। इसके लिए 2017 में उसे नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। छोटे राज्यों पर परमाणु हथियार वाले देशों द्वारा भारी दबाव के बावजूद संधि का पारित होना बड़ी परमाणु शक्तियों के लिए एक नैतिक हार है।
परमाणु हथियारों के विनाशकारी प्रभावों का कोई इलाज नहीं है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization डब्ल्यूएचओ) और रेड क्रॉस ने अब पुष्टि की है कि आपातकालीन सेवाएं इस तरह के भयावह स्वास्थ्य आपात स्थिति में प्रतिक्रिया देने में सक्षम नहीं होंगी। निवारण ही उत्तर है।
हमारे पास ऐसी संधियां हैं जो बारूदी सुरंगों, क्लस्टर बमों, रासायनिक हथियारों और जैविक हथियारों के उपयोग पर रोक लगाती हैं। ये संधियां अच्छी रही हैं और मानव जाति को बचाने में मदद की है। परमाणु हथियार इनसे तो कहीं और ज्यादा घातक हैं। इसलिए यह जरूरी है कि दुनिया के सभी देशों द्वारा टीएनपीडब्ल्यू का सम्मान किया जाना चाहिए। नौ परमाणु हथियार वाले देश जिनमें से पांच एशिया में हैं, इस स्थिति में विशेष जिम्मेदारी निभा सकते हैं।
डॉ अरुण मित्रा
देशबन्धु के आलेख का संपादित रूप साभार