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(यह संक्षिप्त टिप्पणी 2014 के लोकसभा चुनाव के समय की है और हस्तक्षेप.कॉम पर प्रकाशित हुई थीI संक्षिप्त 'पुनश्च:' के साथ नए पाठकों के लिए यथावत रूप में फिर से जारी की गई हैI)
यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि नागरिक समाज के कुछ लोग और संगठन बनारस में ‘आप’ सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल का समर्थन धर्मनिरपेक्षता के नाम पर कर रहे हैंI इधर ‘मोदी-विरोधी’ राजनीतिक पार्टी जनता दल यूनाइटेड ने भी केजरीवाल के समर्थन की घोषणा की है। यह बिल्कुल साफ है कि केजरीवाल को दिया जाने वाला समर्थन वास्तविकता में नरेंद्र मोदी का समर्थन है। केजरीवाल के समर्थन से वाराणसी में मोदी को चुनाव में सीधा फायदा तो होगा ही, नवउदारवादी और सांप्रदायिक शक्तियों के गठजोड़ को भी नई ताकत मिलेगीI कारपोरेट पूंजीवाद ने कांग्रेस का भरपूर इस्तेमाल करने के बाद आगे देश के संसाधनों की लूट के लिए नरेंद्र मोदी को अपना मोहरा बनाया है। मोदी के साथ और मोदी के बाद के लिए कारपोरेट घराने केजरीवाल को आगे बढ़ा रहे हैं, ताकि देश में कारपोरेट विरोध की राजनीति हमेशा के लिए खत्म की जा सकेा
जिस तरह कांग्रेस और भाजपा एक सिक्के के दो पहलू हैं, वही सच्चाई मोदी और केजरीवाल की भी है। दोनों कारपोरेट पूंजीवाद के सच्चे सेवक हैंI
आरएसएस की विचारधारा का पूंजीवाद से कभी विरोध नहीं रहा है। एनजीओ सरगना अरविंद केजरीवाल सीधे कारपोरेट की कोख से पैदा हुए हैंI वे विदेशी धन लेकर एनजीओ की मार्फत लंबे समय से ‘समाज सेवा’ का काम कर रहे हैंI लेकिन उन्होंने 1984 के सिख विरोधी दंगों, 1992 में बाबरी मस्जिद ध्वंस, 2002 में गुजरात में होने वाले मुसलमानों के राज्य प्रायोजित नरसंहार, हाल में मुजफफरनगर में हुए दंगों जैसे सांप्रदायिक कृत्यों का विरोध तो छोड़िए, उनकी निंदा तक नहीं की है। गुजरात के ‘विकास की सच्चाई’, जिसे बता कर वे मोदी के विरोध का ढोंग करते हैं, कितने ही विद्वान और आंदोलनकारी काफी पहले वह बता चुके हैंI
केजरीवाल द्वारा 'इंडिया अगेंस्ट करप्शन' बना कर चलाए गए भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन में आरएसएस पूरी तरह शामिल थाI उनके 'गुरु' अण्णा हजारे ने सबसे पहले नरेंद्र मोदी की प्रशंसा की थीI रामदेव और रविशंकर जैसे ‘संत’ केजरीवाल के हमजोली थे। आज भी ‘आप’ पार्टी में आरएसएस समेत सांप्रदायिक तत्वों की भरमार है। बनारस में धर्म और राजनीति का जैसा घालमेल नरेंद्र मोदी कर रहे हैं, वैसा ही केजरीवाल कर रहे हैंI
इस सबके बावजूद कुछ धर्मनिरपेक्षतावादी उन्हें अपना नेता मान रहे हैं, तो इसलिए कि कांग्रेस के जाने पर उन्हें एक नया नेता चाहिए जो उनके वर्ग-स्वार्थ का कांग्रेस की तरह पोषण करे।
केजरीवाल : मध्यवर्ग के स्वार्थ की राजनीति का नया नायक
राजनीति की तीसरी शक्ति कहे जाने वाली पार्टियों और नेताओं को यह बौद्धिक भद्रलोक पसंद नहीं करताI इनमें से कुछ कम्युनिस्ट पार्टी का शासन तो चाहते हैं, लेकिन उसकी संभावना उन्हें नजर नहीं आतीI साम्यवादी क्रांति के लिए संघर्ष भी ये नहीं करना चाहते, या पहले की तरह संस्थानों पर कब्जा करके क्रांति करना चाहते हैंI लिहाजा, मध्यवर्ग के स्वार्थ की राजनीति का नया नायक केजरीवाल है।
पुनश्च: यह सच्चाई कई रूपों में, कई स्रोतों से, कई बार सामने आ चुकी है कि कांग्रेस-नीत यूपीए सरकार और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को एक सुनियोजित रणनीति के तहत, विशेषकर 2 जी और कोयला घोटाले में, भ्रष्टाचारी प्रचारित किया गया था।
अरविन्द केजरीवाल, अन्ना हजारे, रामदेव, किरण बेदी, रविशंकर, कैग विनोद राय जैसे आला नौकरशाह, भारतीय जनता पार्टी, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, फ़ोर्ड फाउंडेशन के बच्चे, कारपोरेट लॉबी और मीडिया के उस समवेत उद्यम में सभी रंगों के सरकारी कम्युनिस्ट, सरकारी सोशलिस्टों को पानी पी-पी कर कोसने वाले बहुत-से विकल्पवादी सोशलिस्ट और अनेक धर्मनिरपेक्ष एवं प्रगतिशील बुद्धिजीवी/एक्टिविस्ट शामिल थे। तब से गंगा में काफी पानी बह चुका है। देश की राजनीति का चरित्र सांप्रदायिक दक्षिणपंथ बनाम सांप्रदायिक दक्षिणपंथ बन चुका है। सोशल इंजीनियरिंग की शादी कम्युनल इंजीनियरिंग के साथ हो चुकी है। लेकिन कामरेड प्रकाश करात और कामरेड दीपंकर भट्टाचार्य जैसे लोग आज भी केजरीवाल के संघी/ दक्षिणपंथी होने का प्रमाण मांगते हैं। यानि उन्हें आरएसएस का वह रजिस्टर चाहिए, जिसमें केजरीवाल का नाम लिखा हो!
कम से कम समंजिक-राजनीतिक चिंता में शामिल होने वाले नए युवक-युवतियों को यह ध्यान देना चाहिए कि भारतीय राजनीति और लोकतंत्र के एक अत्यंत संगीन मोड़ पर देश को बड़े और छोटे मोदी की सौगात देने वाले धर्मनिरपेक्ष एवं प्रगतिशील खेमे ने आज तक अपनी भूमिका के लिए खेद प्रकट नहीं किया है। (माफ़ी मांगना तो बड़ी दूर की बात है) उसे शायद अहसास ही नहीं है कि उसके आरएसएस/भाजपा पर धारासार प्रहार की साख जनता की नज़र में इसीलिये नहीं बन पाती है; और उसकी आरएसएस बाशिंग उसके अपने नायक को बचाने की रणनीति भर रह जाती है। उसके समर्थन और सहयोग से उसके वर्ग-स्वार्थ की राजनीति का नायक अब 'जननायक' बनने की कवायद में लगा है। हालांकि, मोदी की तरह वह अकेला क्रूसेडर है और किसी की परवाह नहीं करता, लेकिन धर्मनिरपेक्ष एवं प्रगतिशील खेमे को तानाशाही की इस बानगी पर कोई ऐतराज नहीं है।
डॉ प्रेम सिंह
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