The ultimate goal of CAA and NRC is to make India a Hindu nation!
संशोधित नागरिकता कानून – Citizenship amended act (सीएए) व एनआरसी सच पूछा जाए तो देश को हिन्दू राष्ट्र बनाने की दिशा में उठाए गए कदम हैं। आरएसएस, जिसके दो तपे-तपाए स्वयंसेवक, देश के दो शीर्षस्थ पदों – प्रधानमंत्री व गृहमंत्री – पर विराजमान हैं, संघ के राजनीतिक दर्शन के क्रियान्वयन के लिए प्रतिबद्ध हैं।
आरएसएस के राजनीतिक दर्शन को ठोस रूप उसके दूसरे सर संघ चालक एमएस गोलवलकर ने दिया। उनके विचारों का संकलन ‘बंच ऑफ़ थाट्स’ और ‘द नेशन डिफाइंड’ में है। इनमें से ‘द नेशन डिफांइड’ उपलब्ध नहीं है। अपनी ‘बंच ऑफ़ थाट्स’ में उन्होंने हिन्दू राष्ट्र की परिभाषा (Definition of Hindu nation) दी है। उनकी परिभाषा के अनुसार हिन्दू राष्ट्र में हिन्दू ही रह सकते हैं। हिन्दू राष्ट्र में मुसलमान व ईसाई भी रह सकते हैं परंतु दोयम दर्जे के नागरिक की हैसियत से। संघ का अंतिम लक्ष्य भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाना है। हिन्दू राष्ट्र में हिन्दुओं का वर्चस्व होगा और अन्य धर्मों के मानने वाले इस राष्ट्र में रह तो सकेंगे परंतु वे हिन्दुओं के बराबर नहीं होंगे।
आजादी के आंदोलन के बारे में संघ की अलग सोच थी। उसकी राय थी कि आजादी के आंदोलन में शामिल होने के लिए मुसलमानों की खुशामद करने की ज़रूरत नहीं थी।
संघ के इस रवैये को स्पष्ट किया गया है संघ के समर्पित स्वयंसेवक हो. वे. शेषाद्रि द्वारा लिखित ‘कृतिरूप संघ-दर्शन’ में। शेषाद्रि लिखते हैं:
‘‘किन्तु डॉ हेडगेवार इस बात पर भी उतना ही बल देते थे कि मुस्लिमों को अपने पक्ष में मिलाने के लिए राष्ट्रवाद की भावना का पलड़ा कमजोर न किया जाए। वे चेतावनी दिया करते थे कि यदि मुस्लिमों की अनुचित मनुहार की जाएगी तो उसका फल यह होगा कि उनकी साम्प्रदायिक और विघटनकारी मनोवृत्ति और भड़केगी। वे निःसंकोच भाव से कहा करते थे कि अन्ततोगत्वा मुस्लिमों से उनकी आक्रामक और राष्ट्र विरोधी प्रवृत्तियां छुड़वाई जा सकती हैं पर ऐसा तभी संभव है जब हिन्दू इतने सशक्त और संगठित हो जाएं कि मुसलमान यह अनुभव करने लगें कि उनका हित इसी में है कि वे हिन्दुओं के साथ राष्ट्र की मुख्यधारा में सम्मिलित हो जाएं। इसमें संदेह नहीं कि युद्ध में शत्रु-शिविर में फूट डालने जैसी रणनीतियों की अपनी सार्थकता है किंतु अंतिम निष्कर्ष यही कहता है कि ठोस महत्व सुदृढ़ राष्ट्रवादी शक्ति का ही है। अतः भारतीय संदर्भ में राष्ट्रीय भावना के मूलआधार, हिन्दुओं को सशक्त बनाने के महत्वपूर्ण कार्य को सर्वोच्च प्राथमिकता देनी होगी। तभी अंग्रेजों से टक्कर ली जा सकेगी और मुसलमानों को राष्ट्रवादी धारा में मिलाया जा सकेगा। और यहीं कांग्रेस ने भयंकर भूल की। मुस्लिमों को अपने पक्ष में मिलाने की रणनीति, निर्णायक प्रश्न और स्वराज प्राप्ति की पहली शर्त बन गई। इससे राष्ट्र के मनोबल पर भीषण कुठाराघात हुआ। शीघ्र ही इसके कड़वे फल सामने आने लगे। जहां एक ओर मुस्लिम अलगाववाद को निरंतर पोसा गया, वहीं दूसरी ओर राष्ट्रवाद के मेरूदंड को घातक रूप से जर्जर किया गया। डॉ हेडगेवार को इसका पूर्वानुमान था। इसी कारण उन्होंने निश्चय किया था कि स्वाधीनता प्राप्ति के लिए केवल हिन्दुओं की संगठित राष्ट्रीय शक्ति के निर्माण पर ही ध्यान केन्द्रित किया जाए।
“डॉ हेडगेवार सदैव यह चेतावनी देते रहे कि केवल अंग्रेजों के भारत छोड़ देने से हमारे सभी कष्टों का अंत नहीं हो जावेगा। उनका यह विश्लेषण उल्लेखनीय है कि केवल एक सशक्त, संगठित और पुनरूथानशील हिन्दू समाज ही इस बात की पक्की गारंटी दे सकता है कि हमारी राष्ट्रीय स्वाधीनता और अखंडता बनी रहेगी। विशेषकर उन प्रदेशों में जहां हिन्दू अल्पसंख्या में रह गए हैं अथवा असंगठित और कमजोर रहे हैं। जो स्थिति बन रही है, उसमें उनकी यह चेतावनी अक्षरश: सत्य सिद्ध हो रही है।’’
वे आगे लिखते हैं,
‘‘स्वाधीनता के बाद भी हिन्दुओं की यह मूल निर्बलता हमारा पिंड नहीं छोड़ रही है। देश के नेतृत्व की यह उथली धारणा नितांत थोथी सिद्ध हो रही है कि विभाजन के बाद मुस्लिम अलगाववाद का अंत हो जाएगा। हिन्दू न तो जागृत हैं और ना संगठित। इस अभाव से प्रोत्साहन पाकर गिरगिट जैसे राजनेता मुस्लिमों के थोक वोट हथियाने के लिए उनके तलुवे चाट रहे हैं। फल- मुस्लिम अलगाववाद और कट्टरवादिता का विषधर तुष्टिकरण का दूध पीकर मोटा होता जा रहा है और दिनोंदिन नए-नए भयावह तथा उग्र रूप धारण कर रहा है।
‘‘हमारी सबसे गंभीर ऐतिहासिक असफलता यह है कि हम मुसलमानों को हमारे राष्ट्रीय समाज का हिस्सा नहीं बना सके। इनके पूर्व हमारे देश में और आक्रामक भी आए जिनमें शक और हूण शामिल हैं। इस तथ्य की हमारे देश में आजादी के आंदोलन के नेताओं ने पूरी तरह उपेक्षा की। हमारे नेता यह समझते रहे कि बहुसंख्यकों के हितों की उपेक्षा करते हुए मुसलमानों के हितों की रक्षा करने से हम उनके मन को जीत लेंगे परंतु हमारा यह विश्वास उस समय छिन्न-भिन्न हो गया जब देष का विभाजन हुआ’’ (‘बंच ऑफ़ थाट्स’ की भूमिका से)।
संघ परिवार की मान्यता है कि मुसलमान भारत के प्रति वफादार हो ही नहीं सकते।
संघ परिवार की राय में मुसलमानों को स्वतंत्रता संग्राम से जोड़ने के लिए जो प्रयास किए गए थे, वे व्यर्थ थे। संघ द्वारा प्रकाशित एक पुस्तिका है जिसका नाम है ‘‘संघ गाथा’’। इस पुस्तिका में लिखा गया है:
‘‘स्वतंत्रता की उस समय चल रही लड़ाई में मुसलमानों को अपने साथ लिए बिना सफलता मिलना संभव नहीं है, इसलिए उन्हें कैसे अपने साथ लिया जाए, इसी चक्कर में सभी नेता फंसे हुए थे’’ (पृष्ठ 20)।
Golwalkar’s statement about Christian citizens
ईसाई नागरिकों के बारे में गोलवलकर का कहना है कि
‘‘जहां तक ईसाईयों का संबंध है, ऊपरी तौर से देखन वालों को तो वे नितांत निरूपद्रवी ही नहीं वरन मानवता के लिए प्रेम और सहानुभूति के मूर्तिवान स्वरूप प्रतीत होते हैं। किंतु उनकी गतिविधियां केवल अधार्मिक ही नहीं बल्कि राष्ट्रविरोधी भी हैं।’’
गोलवलकर आगे बताते हैं
‘‘इस प्रकार की भूमिका है हमारे देश में निवास करने वाले ईसाई सज्जनों की। वे यहां न केवल हमारे जीवन के धार्मिक एवं सामाजिक तन्तुओं को ही नष्ट करने के लिए प्रयत्नशील हैं वरन् विविध क्षेत्रों और यदि संभव हो तो पूरे देश मे राजनीतिक सत्ता भी स्थापित करना चाहते हैं।’’
इस समय सबसे महत्ववपूर्ण प्रश्न यह है कि आखिर वे कौन से कारण हैं जिनके चलते नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में घोषित किया गया और अंततः वे प्रधानमंत्री बने। शायद यह इसलिए किया गया क्योंकि आरएसएस को यह विश्वास है कि नरेन्द्र मोदी उसके एजेंडे को अमली जामा पहनाएंगे। संघ द्वारा यह बात अधिकृत रूप से स्वीकार की गई है।
अंग्रेजी दैनिक ‘द हिन्दू’ के संवाददाता प्रशांत झा, नागपुर स्थित संघ के मुख्यालय पहुंचे। ‘द हिन्दू’ के 18 अक्टूबर 2013 के अंक में प्रकाशित उनकी रपट के अनुसार यहां उनकी मुलाकात संघ के एक प्रमुख कार्यकर्ता से हुई। उन्होंने बातचीत में यह दावा किया कि हमने नरेन्द्र मोदी को इसलिए चुना है क्योंकि हमें पूरा विश्वास है कि वे वर्तमान व्यवस्था को परिवर्तित कर देंगे। इस पर संवाददाता ने कहा कि आप अपने दावे पर विस्तृत प्रकाश डालें। संघ के कार्यकर्ता ने बताया कि
‘‘आज की व्यवस्था अल्पसंख्यकों के लिए लाभप्रद है। जब हम सत्ता में आएंगे, तब इस व्यवस्था में परिवर्तन आ जाएगा। गुजरात में व्यवस्था बदल गई है। देखिए वहां एक भी मुस्लिम विधायक नहीं है। ऐसा ही सब जगह होना चाहिए।’’
एल एस हरदेनिया
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।
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