चाहे कुछ हो जाये, चुनाव जरूर होंगे। मीडिया और तकनीक के जरिये लड़ेंगे चुनाव। विशाल रैलियां भी होंगी और लॉकडाउन की तैयारी के मध्य कर्फ्यू जारी रहेगा।
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जनादेश का अभूतपूर्व प्रहसन लेकिन स्कूल कालेज कारोबार उद्योग धंधे सब बन्द हो जाएंगे।
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चंद दिनों के लिए गरीबों और भिखारियों को खैरात बांटे जाएंगे और कारपोरेट कम्पनियों को राहत पैकेज दिए जाते रहेंगे।
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चुनाव तक घोषणाएं जारी रहेंगी। आचार संहिता के बाद सिर्फ धनबल होगा और बाहुबल। न विचारधारा होगी और न राजनीतिक चेतना।
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मौसमी बीमारी फ्लू का डीएनए हर मौसम में बदलता रहेगा। अनुसन्धान और शोध जारी रहेगा। टीके बच्चों को भी लगेंगे।
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हर नए मौसम में फिर फ्लू का नया नामकरण होगा और फिर नए सिरे से बूस्टर डोज़। जलवायु बदल रहा है।
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अस्पतालों में गम्भीर और आपात बीमारियों का इलाज बन्द होगा। पुरानी महामारियां लौटती रहेंगी। अन्य बीमारियों का इलाज नहीं होगा।
सभी मृतकों को कोविड टैग लगेगा। फिर ऑक्सीजन संकट होगा। लाशें कतारों में होंगी या नदियों में फेंक दी जाएंगी या जहां तहां दबा दी जाएंगी।
डॉक्टर ड्यूटी पर होंगे, लेकिन मरीज को हाथ नहीं लगाएंगे। वैसे ही पर्ची लिख देंगे।
आइसीयू में भारी भीड़ होगी।
जनादेश आ जायेगा। करोड़पतियों और अरबपतियों की संख्या और उनकी सम्पत्ति में दिन दूना रात चैगुना इजाफा होगा। सेंसेक्स एक लाख पर होगा और विकास के आंकड़े आसमान चूमेंगे।
इसी विकास के लिए हम देश के नागरिक अपने विवेक से पूरे होश में बिना किसी रिश्वत, लालच, दिहाड़ी या शराब या मांस या दलाली के अपनी जाति, वर्ग, नस्ल, धर्म के हिसाब से जनप्रतिनिधि चुनकर नई सरकार के लिए जनादेश का निर्माण करेंगे।
इसी तरह कानून का राज रामराज में बदलेगा और संविधान के मुताबिक जनसंख्या का विन्यास बदलता रहेगा जिसमें सतह के लोग कीड़े मकोड़े की तरह जिएंगे मरेंगे। यह नियति का विधान है। हमारा धर्म इसी के लिए और आस्था भी इसी के लिए और अस्मिता भी। यही मुक्त बाजार का सर्वोच्च हित है।
हम शांति से अपनी अपनी बारी का इंतजार करेंगे। टीका लगाकर अमर होकर जीते जी स्वर्गवासी हो जाएंगे। भारत से बढ़कर स्वर्ग फिर कहाँ है!