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Uttar Pradesh moves fast to become new hotspot of COVID epidemic
उत्तर प्रदेश कोविड महामारी के संक्रमण का नया हॉटस्पॉट बनने की ओर तेजी से अग्रसर है। पिछले 24 घण्टों में 32 सौ से ज्यादा मरीज मिले हैं और प्रदेश में अब कुल मरीजों की संख्या 58 हजार (जिसमें 24 हजार सक्रिय मरीज) से ऊपर हो गई है। स्थानीय स्तर पर कई क्षेत्रों में कम्युनिटी ट्रांसमिशन की आशंकाएं (Community transmission) जताई जा रही हैं। भाजपा और सरकार भले ही महामारी और बेकारी से निपटने के सवाल पर योगी मॉडल को सफल बता कर प्रोपैगैंडा कर रहे हों, लेकिन प्रदेश की जमीनी हकीकत और सच्चाई यही है कि चाहे कोविड महामारी सहित स्वास्थ्य क्षेत्र हो, बेकारी का सवाल हो अथवा कानून-व्यवस्था का मसला जैसे सवालों पर योगी सरकार पूरी तरह से नाकाम रही है।
कोविड मरीजों के इलाज, खाने पीने से लेकर साफ-सफाई आदि मामले में लापरवाही व बदइंतजामी और संसाधनों की कमी की मीडिया व सोशल मीडिया में लगातार आती रही हैं। प्रदेश सरकार ने इसमें सुधार लाने के लिए मुकम्मल कदम उठाने की बातें जरूर कीं, लेकिन अभी भी स्थिति जस की तस बनी हुई है।
कोविड मरीजों के मामले में किस स्तर पर लापरवाही और मरीजों की जिंदगी के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है, इसे कुछेक उदाहरण से खुद देख सकते हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक कल ही इलाहाबाद में स्वरूप रानी अस्पताल में भर्ती कोरोना मरीज का शव अस्पताल के पास ही मिला। अस्पताल प्रशासन का कहना है कि शनिवार शाम को मरीज अचानक अस्पताल से निकल गया और जब तक उसे रोकने की कोशिश की जाती, तब तक वह गलियों में गुम हो गया। इस तरह की संदिग्ध परिस्थितियों में भर्ती मरीज का गायब होना और मौत अस्पताल प्रशासन पर गंभीर सवाल खड़ा करता है।
महोबा से मीडिया रिपोर्ट है कि 2-3 दिन पहले बरसात के पानी से जिला अस्पताल का इमर्जेंसी वार्ड, कोविड वार्ड आदि 2 फुट से ज्यादा पानी से लबालब भर गया। 23 जुलाई को हरदोई में एक ही परिवार के 25 सदस्यों को कोरोना पॉजिटिव बता दिया गया, जबकि सभी की रिपोर्ट निगेटिव थी। इसी तरह कानपुर के हैलट से एक मरीज द्वारा खुद ही गला व नाक से स्वाब सैंपल लेने जैसी लापरवाही सामने आई है। जांच में देरी की भी प्रदेश भर से पहले से ही शिकायतें आ रही हैं।
Government has shunned its responsibility to treat non-covid patients.
प्रदेश में हाल यह है कि कोविड मरीजों से भी ज्यादा परेशानियों का सामना गंभीर बीमारियों से ग्रसित नान कोविड मरीजों को उठाना पड़ रहा है। दरअसल एक तरह से सरकार ने नॉन कोविड मरीजों के इलाज कराने की अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया है।
गौरतलब है कि आल इंडिया पीपुल्स फ्रंट की याचिका पर इलाहाबाद हाईकोर्ट के हस्तक्षेप पर ही नॉन कोविड मरीजों के लिए ओपीडी खोलने का निर्णय लिया गया था, लेकिन हालात में कोई खास सुधार नहीं हुआ है, सरकारी अस्पतालों की ओपीडी के सुचारू रूप से चलने और सरकारी अस्पतालों में नॉन कोविड मरीजों के इलाज (Treatment of non covid patients in government hospitals) की कहीं से भी संतोषजनक रिपोर्ट नहीं है।
दरअसल प्रदेश में मुख्य समस्या यह है कि हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर, जो आबादी के लिहाज से बेहद कम है, को महामारी के मद्देनजर मजबूत करने की तरफ ध्यान देने के बजाय ज्यादा जोर आंकड़े प्रस्तुत करने के प्रचार पर रहा। एक लाख से ज्यादा कोविड बेड बना कर देश का पहला राज्य जरूर बन गया, लेकिन चिकित्सक व स्टाफ व मेडिकल उपकरणों के बिना ऐसे कोविड अस्पतालों की उपयोगिता क्वारंटीन सेंटर से ज्यादा नहीं हो सकती है।
The problem of unemployment has become more serious during the tenure of the Yogi government.
दरअसल शुरुआत से ही महामारी से निपटने की मुकम्मल नीति ही नहीं बनाई गई जिसका प्रदेश व देश की जनता खामियाजा भुगत रही है, का सहज अंदाजा लगा सकता है। दरअसल लॉकडाउन के पहले ही उत्तर प्रदेश में बेरोजगारी की दर (Unemployment rate in uttar pradesh) राष्ट्रीय औसत से ज्यादा थी और योगी सरकार के कार्यकाल में बेकारी की समस्या ज्यादा गंभीर हुई है। लेकिन मुख्यमंत्री योगी रोजगार सृजन में प्रदेश के अव्वल होने का प्रोपैगैंडा करते रहे हैं। उसी तर्ज पर प्रदेश सरकार यहां तक कि प्रधानमंत्री द्वारा प्रवासी मजदूरों और बेरोजगारों के रोजगार के लिए उत्तर प्रदेश के योगी मॉडल को सफल बताने का प्रोपैगैंडा किया जा रहा है। इसकी सच्चाई का निम्न तथ्यों से इसका विश्लेषण किया जा रहा है।
प्रधानमंत्री ने 26 जून को अपने वर्चुअल संबोधन में आत्मनिर्भर उत्तर प्रदेश रोजगार अभियान (Self Employed Uttar Pradesh Employment Campaign) शुरू कर प्रदेश की विभिन्न परियोजनाओं में 125 दिनों के लिए 1.25 करोड़ मजदूरों को रोजगार देने की बात कही। लेकिन कहीं से भी ऐसी रिपोर्ट नहीं है कि मनरेगा के अलावा किसी नयी योजना में सरकार के दावों के बरक्स 10 फीसद भी रोजगार मिल रहा हो। मनरेगा में भी आंकड़ों में ऐसा प्रोजेक्ट किया जा रहा है कि मानो प्रदेश में 72 लाख परिवारों को रोजगार की गारंटी की गई है। लेकिन इस रोजगार की हकीकत देखिये।
मनरेगा वेबसाईट के सरकारी रिकॉर्ड के 01अप्रैल से शुरू हुए वित्तीय वर्ष के 27 जुलाई तक 4 महीने में 7233457 परिवारों को रोजगार दिया गया, इसमें 181113156 मानव दिवस का सृजन हुआ। इसमें एक परिवार को इस 4 महीने की अवधि में औसतन 25 दिनों का रोजगार मिला, यानी हर महीने करीब 6 दिन। 100 दिनों का रोजगार तो मात्र 8546 परिवारों को ही मिला और 100 दिनों से ऊपर तो किसी को भी नहीं मिला है। इस तरह एक परिवार को औसतन हर महीने 1200 रू का ही भुगतान किया गया। अभी तक मनरेगा में जो सरकार द्वारा भुगतान किया गया है, वह करीब 34 सौ करोड़ रुपये का है। यह हर होने वाले मनरेगा के रूटीन वर्क जैसा ही है। इसके अलावा भी सोनभद्र, चंदौली से लेकर प्रदेश भर से मनरेगा भुगतान न होने की सूचनाएं आ रही हैं।
दरअसल प्रमुख समस्या यह है कि तमाम मजदूरों से काम कराकर जॉबकार्ड व मस्टररोल में दर्ज ही नहीं किया गया है। इसी तरह सरकार ने अपने सरकारी ट्विटर अकाउंट में जानकारी दी कि प्रदेश के लघु, सूक्ष्म, मध्यम एवं वृहद औद्योगिक ईकाईयों में 49.37 लाख श्रमिक कार्यरत हैं। लेकिन इस जानकारी से यह स्पष्ट नहीं होता है कि इन औद्योगिक ईकाईयों में पहले से कार्यरत मजदूरों की संख्या में कमी आई है या उसमें ईजाफा हुआ है। एमएसएमई सेक्टर में प्रमुख तौर पर फुटवियर, लेदर, बुनकरी, पर्यटन, होटल व माल आदि से जुड़े कामगारों की बड़े पैमाने पर छंटनी और जो मजदूर नियोजित भी हैं उनके वेतन में कटौती व कम दिन काम मिलने की प्रदेश भर से रिपोर्ट हैं। कंट्रक्शन सेक्टर का इससे भी बुरा हाल है। आईटी और सेवा क्षेत्र में भी हालात अच्छे नहीं हैं।
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उत्तर प्रदेश सरकार दावे कुछ भी करे लेकिन इन उद्योगों को पटरी पर लाने के लिए ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं। अब तो लोग आपदा को अवसर में बदलने के आह्वान की हकीकत समझने लगे हैं कि यह कारपोरेट घरानों के लिए अवसर है, जिसके लिए अंधाधुंध निजीकरण किया जा रहा है। इस तरह के देशी विदेशी कारपोरेट के पूंजीनिवेश से बेकारी की समस्या और बढ़ेगी ही। इसी तरह प्रदेश में बेहद खराब स्थिति उच्च शिक्षित बेरोजगार युवाओं की है। अरसे से खाली बैकलॉग पदों पर भर्ती प्रक्रिया शुरू करने की सरकार की कोई मंशा नहीं है।
कानपुर संजीत यादव अपहरण, फिरौती व हत्याकांड में पुलिस की भूमिका, एसडीएम मथुरा व एडीएम बलिया को खुलेआम भूमाफियाओं व दबंगों से धमकी, गोण्डा के व्यवसायी के बेटे की फिरौती के लिए अपहरण सहित प्रदेश में बढ़ रही आपराधिक वारदातों से कानून व्यवस्था के दावों की असलियत सामने आ गई है।
आज प्रदेश में अपराधी-माफियाओं व दबंगों का मनोबल बढ़ा हुआ है और राजनीतिक कार्यकर्ताओं पर दमनचक्र जारी है।
सब कुछ मिला जुलाकर प्रदेश में हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं। सरकार का जोर आंकड़ेबाजी प्रस्तुत करने और प्रोपैगैंडा पर है। चाहे स्वास्थ्य सेवाओं का मसला हो, बेकारी अथवा कानून व्यवस्था का सवाल हो, अगर इन सवालों पर प्रभावी ढंग निपटा नहीं गया तो चीजें नियंत्रण के बाहर जा सकती हैं। हम बराबर इन सवालों पर सरकार को आगाह करते रहे हैं, लोगों की जिंदगी से जुड़े इन सवालों को हल करने की मांग करते रहे हैं।
राजेश सचान,
युवा मंच