समय के मलबे में दबी पटना क़लम चित्र-शैली की कहानी कहती है बिसात पर जुगनू

hastakshep
22 Feb 2020
समय के मलबे में दबी पटना क़लम चित्र-शैली की कहानी कहती है बिसात पर जुगनू

Vandana Rag's new novel on the history of China and India 'Bissat Par Jugnu' released

चीन और भारत के इतिहास वंदना राग की किताब बिसात पर जुगनू का लोकार्पण

भारत और चीन के इतिहास को जोड़ता ऐतिहासिक उपन्यास। ‘बिसात पर जुगनू’ में गहरे शोध और ऐतिहासिक अन्तर्दृष्टि के साथ-साथ इतिहास के कई विलुप्त अध्याय और उनके वाहक चरित्र जीवन्त हुए हैं।

नई दिल्ली, 22 फरवरी। चर्चित लेखिका वंदना राग के नए उपन्यास बिसात पर जुगनूका लोकार्पण शुक्रवार की शाम इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में हुआ। पूर्व एमएलए संदीप दिक्षित, पंकज राग, मंगलेश डबराल, विनोद भारद्वाज, अपूर्वानंद के साथ साहित्य, राजनीति, मीडिया और कला जगत के चर्चित चेहरे ने कार्यक्रम में शामिल हुए।

लोकार्पण के बाद लेखिका वंदना राग से, आलोचक संजीव कुमार और लेखक ब्लॉगर प्रभात रंजन ने बातचीत की।

बिसात पर जुगनू, उपन्यास की कहानी हिन्दुस्तान की पहली जंगे-आज़ादी के लगभग डेढ़ दशक पहले के पटना से शुरू होकर, 2001 की दिल्ली में ख़त्म होती है। उपन्यास, भारत और चीन, इन दो देशों से जुड़ी कहानी साथ-साथ लेकर चलती है जिसके इर्द-गिर्द आज पूरी दुनिया का अर्थतन्त्र, राजनीति, युद्ध की आशंकाएं और कृत्रिम बीमारियां; सब कुछ छितराया हुआ है।

किताब पर बातचीत करते हुए वंदना राग ने कहा,

“इस किताब के लिए मैंने चीन की लंबी यात्राएं कीं और जाना की दोनों ही देशों के आम लोगों का संघर्ष एक जैसा है। इतिहास में ऐसी कई महिलाएं गुमनामी में रहीं जिन्होंने स्वतंत्रा संघर्ष में योगदान दिया। यह उपन्यास इन महिलाओं की भी कहानी है।“

आलोचक संजीव ने भी वंदना की बात से सहमति जताते हुए कहा कि,

“यहाँ फ़िरंगियों के अत्याचार से लड़ते दोनों मुल्कों के दुःखों की दास्तान एक-सी है और दोनों ज़मीनों पर संघर्ष में कूद पड़नेवाली स्त्रियों की गुमनामी भी एक-सी है। ऐसी कई गुमनाम स्त्रियाँ इस उपन्यास का मेरुदंड हैं।“

कथाकार प्रभात रंजन ने अपनी बात रखते हुए कहा,

“बहुत दिनों बार एक बड़े कैनवास का ऐतिहासिक उपन्यास है बिसात पर जुगनू।“

उन्होंने यह भी कहा,

“19 वीं शताब्दी के इतिहास के द्वंद्व, भारत-चीन व्यापार, कम्पनी का राज, जन जागरण, विद्रोह। पटना कलम के कलाकारों का बिखराव। इस उपन्यास में इतिहास, कला के बहुत से सवाल आते हैं और बेचैन कर देते हैं। बहुत से किरदार डराते भी हैं, मन के  भीतर रह जाते हैं।“

किताब के लोकार्पण पर राजकमल प्रकाशन समूह के प्रबंध निदेशक अशोक महेश्वरी ने कहा,

“इस उपन्यास को पढ़ते हुए हम कुछ तो इस बारे में सोचने के लिए विवश होंगे। किताब भाषा की बात करती है। चीन में आज भी बहुत कम लोग अंग्रेज़ी समझने वाले हैं। वे अपना सारा काम अपनी भाषा में करते हैं, विज्ञान की खोजें भी, यहां तक कि कम्प्यूटर पर काम भी। उन्होंने अपने बच्चों पर एक अतिरिक्त गैरजरूरी बोझ नहीं डाला। मुझे लगता है चीन, जापान आदि देशों के विकसित होने का बड़ा कारण अपनी भाषा में सोचना और काम करना है।“

उपन्यास बिसात पर जुगनू के बारे में

बिसात पर जुगनू सदियों और सरहदों के आर-पार की कहानी है। हिन्दुस्तान की पहली जंगे-आज़ादी के लगभग डेढ़ दशक पहले के पटना से शुरू होकर यह 2001 की दिल्ली में ख़त्म होती है। बीच में उत्तर बिहार की एक छोटी रियासत से लेकर कलकत्ता और चीन के केंटन प्रान्त तक का विस्तार समाया हुआ है। यहाँ 1857 के भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की त्रासदी है तो पहले और दूसरे अफ़ीम युद्ध के बाद के चीनी जनजीवन का कठिन संघर्ष भी।

वन्‍दना राग कौन हैं Who is vandana rag

वन्‍दना राग मूलतः बिहार के सिवान ज़िले से हैं। जन्म इन्दौर मध्य प्रदेश में हुआ और पिता की स्थानान्तरण  वाली नौकरी की वजह से भारत के विभिन्न शहरों में स्कूली शिक्षा पाई। 1990 में दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास में एम.ए. किया। पहली कहानी हंस में 1999 में छपी और फिर निरन्तर लिखने और छपने का सिलसिला चल पड़ा। तब से कहानियों की चार किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं—यूटोपिया, हिजरत से पहले, ख्‍़यालनामा और मैं और मेरी कहानियाँ।

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