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पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव बाद हिंसा | Violence after West Bengal assembly elections
मोदी-अमित शाह सोनार बांग्ला बनाकर दिल्ली आ गए हैं। अब बंगाल नहीं जाएंगे, अब तक भाजपा के पांच कार्यकर्ताओं की गुंडों ने हत्या कर दी, जगह-जगह भाजपा के लोगों पर हमले हो रहे हैं। क्रमशः गुंडों की हिंसा बढ़ रही है।
सवाल यह है अमित शाह-मोदी अपने कार्यकर्ताओं की गुंडों से रक्षा क्यों नहीं कर पा रहे, अभी तो शासन उनके ही हाथ में है, ममता ने शपथ नहीं ली है।अमित शाह और उनके कोबरा कहां गायब हो गए! एक्शन करो भाई!
बंगाल में हिंसा की नींव रखी है मोदी के प्रचार अभियान ने। आम जनता को हिंदू-मुसलिम विद्वेष से भर देने के पीछे प्रधान कारण है हिंसा को स्थायी बनाना।
हिंसा का सबसे ताकतवर मीडिया-साइबर और सामाजिक फ्लो इस समय मोदी गैंग द्वारा संचालित है। यह गैंग हिंसा बंद कर दे, देश में, बंगाल में नव्वे फीसदी हिंसा बंद हो जाएगी।
हिंसा के वाचिक, कायिक, कानूनी और मेडीकल ये चार रूप चलन में हैं और इनका गोमुख है मोदी गैंग और आरएसएस!
बंगाल में हिंसा रोकने के लिए पीएम सीधे ममता से बात करके उनको समझाएं। ममता से सीधे बात किए बिना हिंसा नहीं रुकेगी, भाजपा के नेताओं को अपने हिंसक बयानों के लिए ममता से माफी मांगनी चाहिए। साथ ही सोचना चाहिए कि भाजपा अब किसी भी रूप में बंगाल में काम नहीं कर पाएगी, इसका बड़ा कारण है भाजपा का विभाजनकारी एजेंड़ा।
बंगाल की मौजूदा हिंसा का प्रधान कारण है विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा के नेताओं और कार्यकर्ताओं के द्वारा दिए गए हिंसक बयान और धमकियां। यह हिंसा असल में मोदी गैंग ने शुरु की इसके लिए उन्होंने चुनाव आयोग से लेकर अन्य संस्थानों और बाहरी गुंडों का चुनाव के दौरान जमकर इस्तेमाल किया। यहां तक कि अकारण टीएमसी के अनेक बड़े नेताओं को हिंसा की आशंका का बहाना बनाकर घर में नजरबंद कर दिया। नंदीग्राम में खुलेआम हिंसा की गई, लेकिन मोदी गैंग कुछ नहीं बोला, उनको समझना चाहिए कि चुनाव के बाद उनकी पिटाई हो सकती है।
ममता के पास मजबूत गिरोह है और अब भाजपा पर वे हमले कर रहे हैं, लेकिन इन हमलों के लिए बहाना तो मोदी गैंग ने ही प्रदान किया है।
अब यहां से देखो भाजपा के नेता बंगाल में काम नहीं कर पाएंगे। जिस तरह ने पंजाब-हरियाणा-राजस्थान-पश्चिमी यूपी में काम नहीं कर पा रहे हैं। धीरे-धीरे भाजपा के खिलाफ यह आक्रामकता बढ़ेगी। इसका प्रधान कारण है भाजपा का विभाजनकारी और जनविरोधी क्रिमिनल एजेंडा। उसे सिर्फ ताकत के बल पर ही उत्तर दिया जा सकता है।
बंगाल में जो कुथ हो रहा है वह इलाका दखल की लड़ाई है। यह बंगाल की पुरानी राजनीतिक कला है। यह ताकतवर की कला है।
उल्लेखनीय है इन दिनों बंगाल का अर्थ है अशांत और असामान्य राज्य। यहां लंपट कल्चर ने सभ्य-लोकतांत्रिक संस्कृति को पदस्थ कर दिया है। नियमहीनता इस राज्य का प्रधान मूल्य है। राजनीति से लेकर प्रशासन के विभिन्न स्तरों और विभागों तक, शिक्षा से लेकर स्वास्थ्य-उद्योग और जनसेवा के क्षेत्रों तक नियमहीनता और धन वसूली ने अपना वर्चस्व है।
वाम शासन में पार्टी के आदेश पर काम होता था इन दिनों ममता के आदेश पर काम होता है। वामशासन में सत्ता पक्ष और विपक्ष में संवादहीनता और निजी हिंसा थी इन दिनों संवादहीनता और सामाजिक हिंसा है।
पश्चिम बंगाल में जिस तरह के हालात बन गए हैं उसमें शांति या सामान्य स्थिति की निकट भविष्य में संभावनाएं नजर नहीं आतीं। राज्य में हिंसा, बमबाजी, तोड़फोड़, धमकी देना, धन वसूलना आदि कभी बंद नहीं होगा।
पश्चिम बंगाल का सामान्य फिनोमिना है उलटा चलो। उलटा चलो या उलटा करो की संस्कृति तब पैदा होती है जब कान बंद हो जाएं, आंखों से दिखाई न दे और बुद्धि का आंख-कान में संबंध खत्म हो जाय।
पश्चिम बंगाल में हिंसा की संस्कृति को कांग्रेस ने रोपा, नक्सलियों ने सींचा, माकपा ने हिंसा के खेतों की रखवाली की और इसकी कई फसलें उठायीं और इन दिनों ममता सरकार उसी हिंसा की फसल के आधार पर अपने राजनीतिक कद का विस्तार करना चाहती हैं।
हिंसा के आधार पर राजनीतिक कद का विस्तार करने की कला का बीजवपन कांग्रेस ने 1971-72 में किया था। कालान्तर में इस फसल से राजनीतिक लाभ लेने की सभी दलों ने कोशिश की। हिंसा के आधार पर राजनीतिक लाभ लेने के चक्कर में कांग्रेस और वाम का यहां अस्तित्व समाप्त हो गया।
कालान्तर में ममता और उनके दल को भी अप्रासंगिक होना पड़ेगा।
राजनीतिक दलों के हिंसक होने का अर्थ है माफियातंत्र की प्रतिष्ठा।
लोकतंत्र में हिंसा तात्कालिक बढ़त देती है लेकिन दीर्घकालिक तौर पर अप्रासंगिक बना देती है। दुर्भाग्य से पश्चिम बंगाल इन दिनों भद्रलोक से निकलकर माफियालोक की ओर जा चुका है। माफिया गिरोहों के सामने सभी बौने हैं। माफिया गिरोह जिस तरफ इच्छा होती है उधर चीजों को मोड़ रहे हैं। माफिया मानसिकता आज पूरे समाज में छायी हुई है। आज सभी दल इसके सामने नतमस्तक हैं।
प्रो. जगदीश्वर चतुर्वेदी की एफबी टिप्पणियों का समुच्चय