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मण्डल मसीहा का सादर स्मरण, ओबीसी प्रधानमंत्री को भारत भाग्यविधाता वही बना गए

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मण्डल मसीहा का सादर स्मरण, ओबीसी प्रधानमंत्री को भारत भाग्यविधाता वही बना गए

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करीब चार दशक की पेशेवर पत्रकारिता में मुझे रिपोर्टिंग का मौका बेहद कम मिला है, क्योंकि हमेशा अखबार निकालना मेरी जिम्मेदारी होती थी। इसलिए राजनेताओं से मेरा संवाद बहुत कम रहा है। न के बराबर।

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झारखण्ड में शिबू सोरेन, एके राय, विनोद बिहारी महतो आंदोलनों के साथी थे। जैसे सांसद प्रदीप टम्टा। कुछ लोग विश्वविद्यालयों के सहपाठी भी हुए। त्रिपुरा और बंगाल के वाम नेताओं से जरूर संवाद रहा है।

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मेरे पिताजी पुलिनबाबू के उनके जीवनकाल में शरणार्थी और किसान समस्या (Refugees and farmers problem) को लेकर सभी राष्ट्रपतियों, प्रधानमंत्रियों,मुख्यमंत्रियों और पक्ष प्रतिपक्ष के नेताओं से संवाद जरूर थे। लेकिन इसके नतीजे में जनहित में कुछ हासिल न हुआ। यह बचपन से मेरा अनुभव रहा है। इसलिए मैंने हमेशा सत्ता के गलियारे से दूरी बनाए रखी।

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पिता के मित्रों के साथ भी मेरी कभी नहीं बनी। न हमने सम्बन्धों का कभी दुरुपयोग किया।

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इन सबमें शायद विश्वनाथ प्रताप सिंह (Vishwanath Pratap Singh), लालू प्रसाद यादव, नम्बूरीदीपाद और अजित सिंह ही अपवाद होंगे, जिनका हमने इंटरव्यू किया।

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जब कैंसरग्रस्त भूतपूर्व प्रधानमंत्री 1990 में बरेली आये तो राजुल माहेश्वरी जी के कहने पर वीपी से अमर उजाला के लिए लम्बा चौड़ा इंटरव्यू बिना किसी नोट या रिकार्डिंग का किया था, जो अखबार के पूरे पेज में छपा था।

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वीपी ने मण्डल आयोग की रपट लागू करने का साहस किया तो सत्ता में सामाजिक हिस्सेदारी का नक्शा ही बदल गया। मण्डल के बदले चाहे कमंडल की राजनीति से बेड़ा गर्क हो गया हो, ओबीसी प्रधानमंत्री को भारत भाग्यविधाता वही बना गए।

मंडल का विरोध करने वालों के पास भी अब ओबीसी की गिनती करने के अलावा सत्ता में बने रहने का कोई दूसरा विकल्प नहीं रह गया।

संघ परिवार के अंकुश से भी निरंकुश है ओबीसी का प्रधानमंत्री, इस समीकरण के मूल रचयिता भी ठाकुर विश्वनाथ प्रताप सिंह थे।

मेरे पास उस इंटरव्यू का कतरन उसी तरह नहीं है, जैसे कोयला खनन पर मेरे लिखे की या दूसरे तमाम लेखों की। हम उन्हें पेश नहीं कर सकते। खेद है।

स्मृति दिवस पर मण्डल मसीहा का सादर स्मरण

पलाश विश्वास

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