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पाखंड की पराकाष्ठा के दौर में समाज इतना क्षीण हो चुका है कि आने वाले कई दशक इस अंधकार से निकलने में लगेंगे।
याचना की वैसाखी पे खडा मनुष्य कब एक ही झटके में भरभरा के गिर जाये क्या सत्तायेँ यूँ इंतजार करती हैँ ?
क्रूरता, दुष्टता, विपत्ति काल में सामने आती है।
जाग मछंदर गोरख आया।
ये मुक्ति के लिए की गयी पुकार थी। और विलासिता के गर्भ से मुक्ति हुई भी। पुरानी बात है, अब युग बदल गया है, 21 वीं सदी है। मूल्य बदल गये हैँ और उनके साथ-साथ लालसाएं, जिनको पूरा करने व करवाने में सहयोगियों की एक पूरी जमात 65 की उम्र में भी बाल दाढ़ी काली कर अपनी करनी पर अभिभूत है।
गर्व है कि हमने वो सब काम किये जिन्हें स्कूल में नहीं करने की शिक्षा दी जाती है। लेकिन शिक्षक तो वेतन पाता है उसका काम है पढ़ाना। हम समझें या उसका आचरण करें ये हमारी मर्जी। स्वतंत्रता का संवैधानिक अधिकार है हमें।
सतयुग में राम नाम की उपलब्धि ही धर्म का चरम था 21 वीं सदी में माया। काली तो बिलकुल भी नहीं।
लूट सके तो लूट। गरीब की रोटियां भी पूरी तरह सिंक नहीं पातीं और उनकी, हमें क्या ? रोटियों के लिए कौन प्रयासरत है ? शतरंज की खेल का शौक है प्यादों को इस्तेमाल करना ही हमारी फितरत है छल और कपट का आनंद ही हमारी भूख है। भावना, मर्म, संवेदना की इस खेल में रत्ती भर भी गुंजाइश नहीं। जिंदगी एक बार मिलती है जी भरकर सदुपयोग कर लें और अपने समकालीन के प्रेरणास्रोत बनकर आने वाली नई पीढ़ियों को संस्कार विहीन बाँझ कर दें।
सामाजिक सरोकार और मानवता के पाठ का समय नहीं है खेल का समय है।
और फिर प्रतिस्पर्धा के इस दौर में हमें भी तो अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करनी है, देश का गौरव बढ़ाना है।
भ्रष्टाचार केवल संवैधानिक शब्द नहीं है कार्यशैली है हमारी। नैतिकता हमारी छल कपट और ठगी है। वेदों, उपनिषदों, ग्रंथों, और गुरुओं की वाणी का हम आदर तो करते हैं लेकिन प्रासंगिता के कसौटी पर हमारे अपने ही सिद्धांत हैं।
षड़यंत्रों में महारत हासिल करना ही हमारी उत्कृष्टता है भले ही नैतिकता कितनी भी आहत हो। इसलिए हम सजा नहीं इनाम के हकदार हैं।
प्रथा भी है अच्छे प्रदर्शन का इनाम मिलना। प्रदर्शन भले ही चाटुकारिता, चापलूसी, या गुमराह करने का हो। आतंरिक सच्चाई को धरातल पर लाने के प्रयासों को ठेंगा दिखाना ही हमारी कुशलता है।
यही गिद्ध का सूप है। हम खाने की परम्परा का पूर्ण निष्ठा से निर्वाह कर रहे है। नोंच-नोंच कर खाने के स्वाद को आप नहीं जानते। हमारी दार्शनिकता की यही परिभाषा बनती है।
इसलिए न अब सुदामा की हिम्मत बची है किसी द्वार पर जाने की और शायद हरिश्चंद की सत्यवादिता का हठ दुबारा इस देश में जन्म भी न लेना चाहेगा।
खेल, खिलाड़ी, सफलता, गौरव,सम्मान, भ्रष्टाचार या अपमान।
जाने कहाँ लाइव है काऊमन वेल्थ ?
मुनाफे के धन्धे की लूट का नाच चारों ओर से आ रही खबरों से साफ दिखायी दे रहा है।
समाजिक आर्थिक सरोकार से व्यकिगत महत्वकांक्षा की संरक्षणवादिता की ओर राजनीति का पलायन इस दौर की नयी उपलब्धि है इसको भी इंकार नहीं किया जा सकता।
थोथी धारणाओं के प्रचार ने सामाजिक संघर्ष की ताकत को ही लील लिया है।
नसीबवाला धूर्त ठगी की कला में अपनी महारत साबित करने के लिये कितना बेताब है। गांव की दहलीजों पे जलती चिताओं का धुआं किसकी श्रेष्ठता का प्रमाण है ? ऐसे सवालों की निर्मम हत्या करने की उपलब्धि के समारक किस प्रथा के साक्षी हैँ?
जगदीप सिन्धु
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