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कोको भाजपा के वोट उड़ाकर ले जा रही है ! मोशा परेशान !

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हाथरस में दलित की बेटी के साथ न्याय हो, जहां से भाजपा सांसद राजवीर दिलेर खुद बाल्मीकि समाज से आते हैं

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किसने कहा कि भाजपा के वोट कोको ले गई? | Who said that BJP's vote took coco?

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भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत (Rakesh Tikait, leader of Bharatiya Kisan Union) ने कहा, भाजपा के वोट कोको ले गई। अब सभी परेशान कि ये कोको किस बला का नाम है (What is the name of this coco)? शब्दकोष खंगाले गए, वहां भी कुछ नहीं मिला कि कोको का क्या अर्थ है (what does coco mean)? लेकिन सोशल मीडिया पर कोको का हल्ला मच गया... आगे पड़िए देशबन्धु की संपादक सर्वमित्रा सुरजन का लेख...

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राकेश टिकैत ने कहा, भाजपा के वोट कोको ले गई। अब सभी परेशान कि ये कोको किस बला का नाम है। शब्दकोष खंगाले गए, वहां भी कुछ नहीं मिला। लेकिन सोशल मीडिया पर कोको का हल्ला मच गया। फिर वहीं से पता चला कि कोको बला का नहीं, बाज की नस्ल की एक छोटी चिड़िया का नाम है। बच्चों के हाथ से कोई चीज बड़ों को लेनी होती है, तो उसे छिपा कर कहा जाता है, कोको ले गई। कोको कुछ ले तो नहीं जाती, लेकिन बच्चे की जिद थोड़ी देर के लिए चली जाती है। भाजपा को भी सत्ता की जिद है। अपने हाथों से सत्ता जाने ही नहीं देना चाहती।

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भाजपा को तो बस कुर्सी चाहिए

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मणिपुर, गोवा, हरियाणा, मध्यप्रदेश, कर्नाटक हर जगह भाजपा ने जिद लगाई कि बस कुर्सी चाहिए तो चाहिए। और हाथ-पैर पटक कर अपनी जिद मनवा ली। जिद तो महाराष्ट्र में भी की थी, लेकिन वहां बच्चे की जिद पूरी करने की जगह, इस बार उसे सजा देने पर विचार किया गया, ताकि बच्चा बिगड़ने से बच जाए। मगर बिगड़े बच्चे क्या इतनी आसानी से सुधरते हैं। और अगर चुनाव आयोग, सीबीआई, ईडी, गोदी मीडिया जैसे बिगाड़ने वाले दादा-दादी, नाना-नानी बैठे हों, जो बच्चे को खुश रखने के लिए उसकी हां में हां मिलाएं, उसकी गलत बातों को सही ठहराएं तो फिर बच्चा कभी सुधर ही नहीं सकता। इसलिए टिकैत साहब का कहना है कि इस बार भाजपा के वोट कोको ले गई। अगर सचमुच ऐसा हुआ तो क्या पता सत्ता की जिद थोड़ी कम हो जाए। लेकिन नया भारत बनाने की जो जिद है, वो कैसे कम होगी।

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कहां चला गया अन्ना हजारे का लोकपाल? क्या लोकपाल को भी कोको ले गई?

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2011 में अन्ना हजारे ने भी एक जिद दिखाई थी, देश से भ्रष्टाचार मिटाने की। जनता खुश कि अब लोकपाल आएगा, भ्रष्टाचार मिटाएगा। सौ में से 90 बेईमान, फिर भी मेरा भारत महान, जैसे तंज से छुटकारा मिलेगा।

फिर अन्ना ने बताया कि लोकपाल तो कोको ले गई। जनता आकाश में ताकती रह गई और इस बीच अन्ना ने सत्ता की चाबी हाथ पीछे कर छिपा ली। उस चाबी से बहुतों की सत्ता के ताले खुल गए।

नयी सत्ता संभाले लोगों ने बताया कि अब तक कांग्रेस ने देश को बहुत लूटा, 70 सालों में देश को बर्बाद कर दिया। जनता ने कहा कि इससे पहले अन्ना भी तो यही कहते थे, लेकिन लोकपाल तो कोको ले गई, अब आप क्या करेंगे। जवाब मिला, अन्ना को मार्गदर्शक बना दिया है, अब आगे का रास्ता हम खुद बनाएंगे। लोकपाल नहीं अब अच्छे दिनों की बात करेंगे।

फिर कुछ दिन अच्छे दिन आएंगे गाते हुए प्रभात फेरियां निकलीं। नए भारत निर्माण के संकल्प लिए गए। जनता को बताया गया कि कुछ नया बनाने के लिए पुराने को तोड़ना पड़ता है। इसलिए पुराने भारत को तोड़ना पड़ेगा। जनता को इस राष्ट्र निर्माण के काम में श्रमदान की छूट दी गई।

जनता ने भी बड़े मनोयोग से इस काम में अपना हाथ बंटाया। किसके घर क्या पक रहा है, किसके फ्रिज में क्या रखा है, किसने कौन से कपड़े पहने हैं, कौन किसके साथ घूम रहा है, कौन जय श्रीराम बोल रहा है, कौन नहीं बोल रहा है, कौन मनुस्मृति को मान रहा है, कौन संविधान को मान रहा है, इस पर जनता ने ही निगाह रखना शुरु कर दिया। नतीजा ये हुआ कि राष्ट्र निर्माण स्वयंसेवकों की एक बड़ी फौज खड़ी हो गई। जिसने पुराने भारत के ढांचे को एक धक्का और बोल-बोलकर पूरी तरह ढहा दिया।

Now the Bhoomi Pujan of New India has been done.

अब नए भारत का भूमि पूजन हो चुका है और धीरे-धीरे नया ढांचा खड़ा करने की कोशिश हो रही है। कोई सवाल उठाए कि पुराने को तोड़ने का हक आपको किसने दिया, तो उंगली जनता की ओर उठेगी कि जो किया इसने किया, हम तो केवल नया बनाने की बात कर रहे थे, बाकी सारा काम तो इसी ने किया।

और विकास को भी कोको ले गई!

इस दोषारोपण से बेखबर जनता अभी भी नए भारत के मॉडल (new india models) को देखने में मगन है। पुराने को तो उसने खुद ही तोड़ दिया। नया कुछ बन नहीं रहा है, लेकिन नएपन का गुब्बारा इतना बड़ा और रंगीन है कि जनता उसे ही एकटक ताके जा रही है। बीच-बीच में कोई पूछ लेता है, विकास कहां गया। कुछ समय पहले विकास को गुमशुदा मानकर खोजने की मुहिम भी चलाई गई थी। फिर पता चला कि विकास को तो कोको ले गई।

जनता ने अब विकास की जिद करना छोड़ दी है। हाथ पीछे कर के जो विकास छिपा लिया गया था, उसे दो-चार लोगों ने आपस में बांट लिया है। अब वो लोग बारी-बारी से कौन बनेगा खरबपति का खेल खेलते हैं। बारी-बारी से हॉट सीट पर बैठते हैं। उनसे बेहद आसान सवाल पूछे जाते हैं। जैसे किस सरकारी कंपनी को खरीदने से आप अधिक मुनाफा कमाएंगे।

जनता से टैक्स वसूली के लिए और कौन से तरीके आजमाने चाहिए। जनता को मूर्ख बनाने के लिए स्मार्ट फोन का स्मार्टतम उपयोग आईटी सेल कैसे कर सकती है। कौन से कपड़े पहनने से जनता को लुभाया जा सकता है, हिमाचली टोपी, सिखों की पगड़ी, गुरुदेव जैसी दाढ़ी या भगवा गमछा, किससे अधिक वोट मिल सकते हैं। मोर को दाना चुगाना या शेर की फोटो खींचना, कौन सा काम पर्यावरणप्रेमी जैसा लगेगा। भजन करते हुए मंजीरा बजाना अच्छा है या विदेश जाकर ड्रम बजाना। जो लोग भावनाओं के झांसे में न आकर सवाल उठाते हैं, उनका पता लगाने के लिए कौन से देश की जासूसी तकनीक का इस्तेमाल होना चाहिए। ऐसे कुछ सवालों के जवाब मिलते ही खरबपति बनने के लिए खजाने का ताला खोल दिया जाता है। जनता इन्हें देखकर भी खुश हो जाती है कि क्या पता कोको ने विकास इन्हीं की झोली में गिरा दिया हो, और उसकी कुछ बूंदें कभी गरीबों तक भी पहुंच जाएं।

जनता के पास कुछ नहीं बचा जिसे अब कोको ले जाए

लोकपाल कोको ले गई, अच्छे दिन कोको ले गई, विकास-रोजगार, सब कोको ले गई। अब जनता खाली हाथ रह गई है, उसके पास कुछ बचा ही नहीं, जो कोको छीन कर ले जा सके।

केवल वोट देने की ताकत जनता के पास रह गई। सत्ताचालकों ने सोचा कि जनता से वोट भी ले ही लेंगे। इसके लिए कई महीनों से तिकड़में भिड़ाई गईं। पुराने सारे नुस्खे, नए तरह से आजमाए गए। मगर इन नुस्खों की धार अब कुंद पड़ती जा रही है। शाहीन बाग की औरतों से लेकर किसानों तक ने जनता को बताया है कि कोको हर बार तुम्हारे हाथ से ही नहीं छीनेगी, कभी उनकी भी बारी आ सकती है। अब ऐसा लगता है कि उनकी बारी आ गई है। कोको वोट उड़ा कर ले जा रही है।

सर्वमित्रा सुरजन

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