The big achievement of 70 years: know what is CDRI, which played a role in making India ‘Pharmacy of the world’
सीडीआरआई का पूरा नाम | सीडीआरआई कहां स्थित है | सीडीआरआई का फुल फॉर्म
नई दिल्ली, 19 फरवरी 2021 : दवाओं का विकास एक जटिल प्रक्रिया है, जो उत्कृष्ट वैज्ञानिक ज्ञान के साथ-साथ धैर्य और अतिरिक्त जिम्मेदारी की माँग करती है। दवाओं का संबंध लोगों की सेहत से जुड़ा है, इसलिए उनकी गुणवत्ता और प्रभावशीलता महत्वपूर्ण है। यही कारण है कि दवाओं के विकास से जुड़े वैज्ञानिकों एवं संस्थानों की सतर्कता और उनकी जिम्मेदारी बेहद मायने रखती है। दवाओं को विकसित होने की प्रक्रिया में लंबे शोध एवं परीक्षणों से गुजरना पड़ता है। वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद की लखनऊ स्थित प्रयोगशाला केंद्रीय औषधि अनुसंधान संस्थान (Central Drug Research Institute, Lucknow Laboratory of Scientific and Industrial Research Council – सीडीआरआई) ने अपनी सात दशक की यात्रा में बेहद धैर्य के साथ अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन किया है।
दुनिया की पहली स्टेरॉयड रहित गर्भनिरोधक गोली किसने बनाई ?
भारत के जनसंख्या नियंत्रण कार्यक्रम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली दुनिया की पहली स्टेरॉयड रहित गर्भनिरोधक गोली (The world’s first steroid-free contraceptive pill) से लेकर मलेरिया-रोधी दवा (Anti-malarial medicine) समेत तमाम सस्ती एवं सुलभ दवाओं की खोज एवं अनुसंधान में सीडीआरआई की भूमिका अग्रणी रही है। देश में दवाओं के विकास का मार्ग प्रशस्त करने के उद्देश्य से वर्ष 1951 में केंद्रीय औषधि अनुसंधान संस्थान (सीडीआरआई) की आधारशिला रखी गई थी। अब 17 फरवरी, 2021 को यह संस्थान 70 वर्ष का हो गया है।
सीडीआरआई के निदेशक डॉ. तपस के. कुंडू बताते हैं कि भारत में जो 21 नयी दवाएं खोजी गई हैं, उनमें से 13 दवाओं की खोज का श्रेय सीडीआरआई के नाम है दर्ज है। पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव ने संस्थान द्वारा विकसित सेंटक्रोमान दवा को राष्ट्रीय स्वास्थ्य परिवार कल्याण कार्यक्रम के लिए रिलीज किया। वहीं, ब्राम्ही से तैयार मेमोरी प्लस भी जारी की गई। औषधि विकास की विशेषज्ञता से लेकर तमाम संसाधन और दवाओं के संश्लेषण के लिए अत्याधुनिक सुविधाएं सीडीआरआई के पास मौजूद हैं। इस कारण औषधि विकास के क्षेत्र में सीडीआरआई को एक उत्कृष्ट संस्थान माना जाता है।
इस संस्थान से पीएचडी करके निकले शोधार्थी आज राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय फार्मा कंपनियों में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। इसी से, इस संस्थान के महत्व और इसके योगदान को समझा जा सकता है।
सीडीआरआई का स्थापना दिवस | CDRI Foundation Day
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, पृथ्वी विज्ञान और स्वास्थ्य तथा परिवार कल्याण मंत्री डॉ हर्ष वर्ध ने “सीडीआरआई के स्थापना दिवस के मौके पर कहा है कि
“सीएसआईआर-सीडीआरआई ने सेंट्रोक्रोमन (पहला गैर-स्टेरॉयड मौखिक गर्भनिरोधक) और आर्टीथर (सेरेब्रल मलेरिया के लिए जीवनरक्षक दवा– Life saving medicine for cerebral malaria) जैसी सस्ती दवाओं की खोज के माध्यम से दुनियाभर में पहचान बनाकर अपनी महत्ता सिद्ध की है। इस संस्थान ने न केवल दवाओं के क्षेत्र में, बल्कि मानव कल्याण हेतु गुणवत्तापूर्ण मौलिक अनुसंधान के साथ-साथ उच्च कोटि के मानव संसाधन विकास में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है।”
आज भारत को ‘दुनिया की फार्मेसी’ की संज्ञा दी जाती है, तो उसमें सीडीआरआई का योगदान बेहद महत्वपूर्ण रहा है।
उल्लेखनीय है कि सीडीआरआई द्वारा विकसित की गई मलेरिया-रोधी दवा अल्फा बीटा आर्टीथर विश्व की पहली स्टेरायड रहित गर्भनिरोधक गोली सेंटक्रोमान की खोज ने इस संस्थान को विश्व पटल पर लाकर खड़ा कर दिया।
इस संस्थान ने औषधि व फार्मा के क्षेत्र में 80 से ज्यादा प्रसंस्करण तकनीकें विकसित की है, जिसके कारण भारतीय फार्मास्यूटिकल क्षेत्र पूरी दुनिया में अपनी छाप छोड़ने में सफल हुआ है।
नई औषधियों की खोज से लेकर ब्रेक-थ्रू टेक्नोलाजी के विकास, विश्व स्तरीय शोध और कुशल मानव संसाधन तैयार करने में इस संस्थान की भूमिका रही है।
संस्थान के शोध कार्य मुख्य रूप से कैंसर से लेकर न्यूरोसाइंस, प्रजनन स्वास्थ्य, परजीवी एवं माइक्रोबियल संक्रमण और बढ़ती उम्र के रोगों पर केंद्रित रहे हैं। कोविड-19 महामारी के दौरान डायग्नोस्टिक, ड्रग रीपरपजिंग और मूलभूत शोध में अपना योगदान देकर सीडीआरआई ने एक बार फिर अपनी उपस्थिति दर्ज करायी है।
वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान विभाग (डीएसआईआर) के सचिव और वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) के महानिदेशक डॉ शेखर सी. मांडे ने संस्थान के स्थापना दिवस के मौके पर कहा है कि
“औषधि अनुसंधान, अस्थि रोग, प्रजनन स्वास्थ्य और जीवनशैली संबंधी डिस्ऑर्डर के क्षेत्र में सीडीआरआई ने उल्लेखनीय कार्य किया है। संस्थान द्वारा कई नई दवाइयां खोजी गई हैं, जिनमें गर्भनिरोधक दवा छाया शामिल है, जिसने राष्ट्रीय परिवार नियोजन कार्यक्रम में अहम भूमिका निभायी है। इसी तरह, मलेरिया की दवा, ई-माल को राष्ट्रीय मलेरिया-रोधी कार्यक्रम में शामिल किया गया है। कोविड-19 के प्रकोप के दौरान एक तरफ यह संस्थान प्रदेश सरकार को कोरोना संक्रमण की जाँच में सहयोग कर रहा था, तो दूसरी ओर संस्थान के वैज्ञानिक कोरोना वायरस की जिनोम सीक्वेंसिंग करने में जुटे थे। संस्थान द्वारा एंटी-वायरल दवा उमीफेनोविर को बनाने की तकनीक विकसित करके व्यावसायिक उत्पादन के लिए उसे फार्मा कंपनियों को सौंपा गया है।”
सीडीआरआई के निदेशक डॉ. तपस के. कुंडू इस संस्थान की गौरवशाली परंपरा तथा इसके योगदान पर गर्व व्यक्त करते हैं, और कहते हैं कि
“सात दशक की इस यात्रा में संस्थान के योगदान पर खुशी के साथ-साथ देश के प्रति जिम्मेदारी का एहसास भी है।”
वह बताते हैं कि स्वतंत्रता से पहले सीडीआरआई की परिकल्पना की गई थी। 17 फरवरी, 1951 को देश को समर्पित इस संस्थान की स्थापना के साथ ही तय हो गया था कि स्वतंत्र भारत में विज्ञान के विविध क्षेत्रों के साथ-साथ दवाओं की खोज एवं विकास के क्षेत्र में भी देश नई ऊंचाई पर जाने के लिए तैयार है। हमारे वैज्ञानिकों ने आज उस सपने को साबित कर दिखाया है। उन्होंने कहा कि हमारी कोशिश स्वास्थ्य के क्षेत्र में मूलभूत एवं अनुप्रयुक्त शोध के लिए वैज्ञानिकों को तैयार करने की है, ताकि इंडस्ट्री एवं समाज की जरूरतों के अनुरूप शोध कार्यों को प्रोत्साहित किया जा सके।
(इंडिया साइंस वायर)