What is the meaning of love? पाने का नहीं देने का नाम है प्रेम
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प्रेम पर इन दिनों अनेक कोनों से हमले हो रहे हैं। प्रेम आज विवाद और हिंसा का विषय बना हुआ है। अतः प्रेम के सवाल पर गंभीरता के साथ विचार करना समीचीन होगा। सवाल यह है प्रेमी युगल प्रेम के अलावा क्या करते हैं ? प्रेम का जितना महत्व है उससे ज्यादा प्रेमेतर कार्य-व्यापार का महत्व है।
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प्रेम में निवेश कौन कर सकता है? Who can invest in love?
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who can invest in love
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प्रेम में निवेश वही कर सकता है जो सामाजिक उत्पादन भी करता हो, प्रेम सामाजिक होता है, व्यक्तिगत नहीं। प्रेम के सामाजिक भाव में निवेश के लिए सामाजिक उत्पादन अथवा सामाजिक क्षमता बढ़ाने की जरूरत होती है।
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प्रेम करने वालों को कैसा होना चाहिए?
प्रेम में जिसका सामाजिक उत्पादन ज्यादा होगा उसका ही वर्चस्व होगा। प्रेम करने वालों को सामाजिक तौर पर सक्षम,सक्रिय,उत्पादक होना चाहिए। सक्षम का प्रेम सामाजिक तौर पर उत्पादक होता है। ऐसा प्रेम परंपरागत दायरों को तोड़कर आगे चला जाता है।
प्रेम पुख्ता कब बनता है? When does love become strong?
when does love become strong
पुरानी नायिकाएं प्रेम करती थीं, और उसके अलावा उनकी कोई भूमिका नहीं होती थी। प्रेम तब ही पुख्ता बनता है, अतिक्रमण करता है जब उसमें सामाजिक निवेश बढ़ाते हैं। व्यक्ति को सामाजिक उत्पादक बनाते हैं। प्रेम में सामाजिक निवेश बढ़ाने का अर्थ है प्रेम करने वाले की सामाजिक भूमिकाओं का विस्तार और विकास।
प्रेम पैदा करता है, पैदा करने के लिए निवेश जरूरी है, आप निवेश तब ही कर पाएंगे जब पैदा करेंगे। प्रेम में उत्पादन तब ही होता है जब व्यक्ति सामाजिक तौर पर उत्पादन करे। सामाजिक उत्पादन के अभाव में प्रेम बचता नहीं है, प्रेम सूख जाता है। संवेदना और भावों के स्तर पर प्रेम में निवेश तब ही गाढ़ा बनता है जब आप सामाजिक उत्पादन की प्रक्रिया में सक्रिय रूप से उत्पादक की भूमिका अदा करें ।
क्या प्रेम को समर्पण की आवश्यकता है?
प्रेम के जिस रूप से हम परिचित हैं उसमें समर्पण को हमने महान बनाया है। यह प्रेम की पुंसवादी धारणा है। प्रेम को समर्पण नहीं शिरकत की जरूरत होती है। प्रेम पाने का नहीं देने का नाम है। समर्पण और लेने के भाव पर टिका प्रेम इकतरफा होता है। इसमें शोषण का भाव है। यह प्रेम की मालिक और गुलाम वाली अवस्था है। इसमें शोषक-शोषित का संबंध निहित है।
प्रेम का मतलब कैरियर बना देना, रोजगार दिला देना,व्यापार करा देना नहीं है। बल्कि ये तो ध्यान हटाने वाली रणनीतियां हैं, प्रेम से पलायन करने वाली चालबाजियां हैं। प्रेम गहना, कैरियर, आत्मनिर्भरता आदि नहीं है।
प्रेम सहयोग भी नहीं है। प्रेम सामाजिक संबंध है, उसे सामाजिक तौर पर कहा जाना चाहिए, जिया जाना चाहिए। प्रेम संपर्क है, संवाद है और संवेदनात्मक शिरकत है। प्रेम में शेयरिंग केन्द्रीय तत्व है। इसी अर्थ में प्रेम साझा होता है, एकाकी नहीं होता। सामाजिक होता है, व्यक्तिगत नहीं होता।
प्रेम का संबंध दो प्राणियों से नहीं है बल्कि इसका संबंध इन दो के सामाजिक अस्तित्व से है। प्रेम को देह सुख के रूप में सिर्फ देखने में असुविधा हो सकती है। प्रेम का मार्ग देह से गुजरता जरूर है किंतु प्रेम को मन की अथाह गहराईयों में जाकर ही शांति मिलती है, प्रेमी युगल इस गहराई में कितना जाना चाहते हैं उस पर प्रेम का समूचा कार्य -व्यापार टिका है। प्रेम का तन और मन से गहरा संबंध है, इसके बावजूद भी प्रेम का गहरा संबंध तब ही बनता है जब आप इसे व्यक्त करें, इसका प्रदर्शन करें। प्रेम बगैर प्रदर्शन के स्वीकृति नहीं पाता। प्रेम में स्टैंण्ड लेना जरूरी है।