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आपातकाल के दौरान मीसा दुरुपयोग हुआ, वैसा ही अब ईडी का हो रहा है
जिस तरह देश में 47 साल पहले लगाए गए आपातकाल के दौरान मीसा दुरुपयोग (Misa abuse during emergency) का हुआ था उसी तरह आजकल देश में ईडी का हुआ है. जो काम कोई दूसरा क़ानून नहीं कर सकता उसके लिए मीसा रामबाण की तरह है. आपातकाल में विरोधियों को सताने के लिए तत्कालीन सरकार ने मीसा का खुला इस्तेमाल किया था, ठीक उसी तर्ज पर आज की सरकार ईडी का इस्तेमाल कर रही है. इसलिए आम बोलचाल की भाषा में आप ईडी को मीसा की मौसी कह सकते हैं.
इन दिनों देश में प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के बाद यदि कोई सर्वाधिक चर्चा में है तो वो है ईडी.
ईडी का नाम सुनते ही नेता हो या अफसर सबको फुरफुरी होने लगती है. ईडी का इस्तेमाल समाजवादी तरीके से विपक्ष और सत्ता विरोधियों के खिलाफ किया जा रहा है. देश की शीर्ष विपक्षी नेता श्रीमती सोनिया गाँधी से लेकर शिव सैनिक संजय राउत तक ईडी की जद में हैं. केवल सत्तारूढ़ दल और उसके सहयोगी दल फिलहाल ईडी से बचे हुए हैं, लेकिन बकरे की मान ज्यादा दिन खैर नहीं मना सकती.
मैंने ईडी को मीसा की मौसी बहुत सोच-समझकर कहा है. इन दोनों कानूनों के बीच शायद इस तरह का रिश्ता किसी और ने स्थापित नहीं किया. नहीं किया तो कोई बात नहीं. ये पुण्य कार्य मैं किये देता हूँ ताकि सनद रहे.
आजकल संद का रहना बहुत जरूरी है, क्योंकि यदि आपके पास संद नहीं है तो आप किसी काम के नहीं हैं. आपके पास हर तरह की सनद रहना चाहिए. जन्म, जाति, शिक्षा, राष्ट्रभक्त की सनद बहुत आवश्यक है. अन्यथा आपकी सनद को संदिग्ध माना जा सकता है. प्रधानमंत्री और स्मृति ईरानी की सनदों को लेकर संदेह आज तक दूर नहीं हो पाया है.
बहरहाल बहुत से लोग जानना चाहते हैं कि ये ईडी...ईडी क्या है ?
तो आपको बता दूँ कि ईडी यानि प्रवर्तन निदेशालय कोई मोदी जी की ईजाद नहीं है. कांग्रेस की तत्कालीन नेहरू सरकार ने प्रवर्तन निदेशालय की स्थापना मई दिवस यानि एक मई, 1956 को की थी, तब विदेशी मुद्रा विनियमन अधिनियम,1947 (फेरा,1947) के अंतर्गत विनिमय नियंत्रण विधियों के उल्लंघन को रोकने के लिए आर्थिक कार्य विभाग के नियंत्रण में एक ‘प्रवर्तन इकाई’ गठित की गई थी। विधिक सेवा के एक अधिकारी, प्रवर्तन निदेशक के रूप में, इस इकाई के मुखिया थे, जिनके संरक्षण में यह इकाई भारतीय रिजर्व बैंक से प्रतिनियुक्ति के आधार पर एक अधिकारी और विशेष पुलिस स्थापना से 03 निरीक्षकों की सहायता से कार्य करती थी।
आरम्भ में केवल मुम्बई और कलकत्ता में इसकी शाखाएं थी। वर्ष 1957 में इस इकाई का ‘प्रवर्तन निदेशालय’ के रूप में पुनः नामकरण कर दिया गया था तथा मद्रास में इसकी एक और शाखा खोली गई। वर्ष 1960 इस निदेशालय का प्रशासनिक नियंत्रण, आर्थिक कार्य मंत्रालय से राजस्व विभाग में हस्तान्तरित कर दिया गया था। समय बदलता गया, फेरा ’47 निरसित हो गया और इसके स्थान पर फेरा, 1973 आ गया।
04 वर्ष की अवधि (1973-77) में निदेशालय को मंत्रीमण्डल सचिवालय, कार्मिक और प्रशासनिक सुधार विभाग के प्रशासनिक अधिकार क्षेत्र में रखा गया ।आजकल ईडी फेमा <विदेशी मुद्रा प्रबन्धन अधिनियम, 1999 >,पीएमएलए <धनशोधन निवारण अधिनियम, 2002 > और फेरा के अलावा उनसे जुड़े कानूनों के तहत काम करती है.
आजकल ईडी की कमान आईआरएस संजय मिश्रा के हाथ में है. सीमांचल दास विशेष निदेशक हैं.
आपातकाल में जिस मीसा से विपक्षी नेता घबड़ाते थे, उसकी जन्मदाता कांग्रेस थी.1971 में भारत -पाक युद्ध के बाद अचानक ताकतवर बनकर उभरी कांग्रेस ने मीसा एक्ट
पिछले आठ साल में ईडी का कितनी बार इस्तेमाल हुआ, इसका कोई आधिकारिक आंकड़ा ईडी भी देने को राजी नहीं है. ईडी की कार्रवाई अनेक मौकों पर कारगर भी साबित हुई लेकिन ज्यादातर इसका इस्तेमाल राजनीतिक भयादोहन < ब्लैकमेलिंग > के लिए किया गया. अधिकाँश क्षेत्रीय दलों के सुप्रीमो ईडी के भी से सत्तारूढ़ दल भाजपा की शरण में आ गए. किसी ने भाजपा को समर्थन दे दिया तो किसी ने मौन साध लिया यानि विरोध करना बंद कर दिया. बहन मायावती से लेकर तमाम बड़े नाम इस ईडी जाल में आ चुके हैं.
केंद्र सरकार ने बिना आपातकाल लगाए मीसा की मौसी ईडी का इतना बेरहमी से इस्तेमाल किया है कि शिव सेना के शेर भी त्राहि..त्राहि कर उठे हैं.
मजे की बात ये है कि सरकार ने इस ब्रम्हास्त्र का इस्तेमाल प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस पर भी आजमाया है. कांग्रेस की सुप्रीमो श्रीमती सोनिया गाँधी और उनके पुत्र राहुल गांधी भी ईडी के सामने कई दिनों और घंटों की पूछताछ का सामना कर चुके हैं, किन्तु ईडी अभी तक इन दोनों को तोड़ नहीं पायी है, और शायद तोड़ भी नहीं पाएगी.
ईडी ने विपक्षी एकता के लिए सक्रिय बंगाल की मुख्यमंत्री सुश्री ममता बनर्जी मंत्रिमंडल के सदस्य पार्थ को ईडी कि जाल में ऐसा फंसाया है कि आजकल ममता की बोलती भी बंद है. सरकार ने संकेत दे दिए हैं कि ईडी के हाथ ममता की गर्दन को भी नाप सकते हैं.
आपातकाल की समाप्ति कि बाद जैसे ही केंद्र की सत्ता में जनता पार्टी आयी उसने सबसे पहले मीसा का खत्मा किया, मुझे लगता है कि यदि कभी कांग्रेस भी सत्ता में आयी तो सबसे पहले ईडी की समाप्ति का काम करेगी. अन्यथा ब्लैकमेलिंग के लिए इसका इस्तेमाल आगे भी होता रहेगा. आने वाले दिनों में ईडी कितने और लोगों कि घरों से काला, पीला, नीला धन बाहर निकाल पाएगी, ये देखना रोमांचक रहेगा.
एक तरह से ईडी प्रभावी क़ानून है लेकिन यदि इसका इस्तेमाल समभाव से किया जाये. बीते आठ साल में ईडी ने कमल छाप एक भी नेता को निशाने पर नहीं लिया है. ईडी इस समय 'परम् स्वतंत्र न सर पर कोई’ वाली मुद्रा में है.
राकेश अचल
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