बलात्कारियों का सम्मान! कैसा समाज बना रहे हैं हम?

बलात्कारियों का सम्मान! कैसा समाज बना रहे हैं हम?

गर निर्भया के दोषी कर दिए जाएं रिहा, तो कैसी होगी आपकी प्रतिक्रिया?

फर्ज़ कीजिये किसी दिन आपको यह ख़बर मिलती है कि निर्भया के दोषियों को जेल से रिहा कर दिया गया है, क्योंकि आज़ादी के मौके पर सरकार ने अच्छी चाल-चलन वाले और बीमार कैदियों को रिहा करने का फैसला किया है, तब आपकी प्रतिक्रिया क्या होती?

निर्भया, जिसके साथ छह लोगों (जिनमें एक नाबालिग) ने बलात्कार किया था, अमानुषिक तरीके से मार-पीटकर घायल किया था और जिसके बाद उसकी मौत हो गई थी। यानी बलात्कार के बाद हत्या (murder after rape)। आप कहेंगे कि उसके चार अपराधियों को तो फांसी हो गई, पांचवे ने जेल में ही ख़ुदकुशी कर ली थी और एक नाबालिक को रिहा कर दिया गया।

ऐसी ही सजा के लायक हैं सामूहिक बलात्कारी

बेशक, सामूहिक बलात्कारी ऐसी ही सजा के लायक हैं। पूरा देश उस वक्त निर्भया के लिए उद्वेलित था जो अपने परिवार के सपनों को पूरा करने के लिए फिज़ियोथेरेपी की पढ़ाई कर रही थी।

क्या बलात्कारी माफी के योग्य हैं?

निर्भया की मां और पिता का सतत संघर्ष था जो अपराधी फांसी के फंदे तक पहुंचे। दूसरी तरफ बिलकिस बानो (Bilkis Bano) हैं जो लगभग निर्भया की ही उम्र की थीं, जब मार्च 2002 के गुजरात दंगों में उनसे सामूहिक बलात्कार हुआ, उनकी तीन साल की बेटी मार दी गई, उनके गर्भस्थ शिशु की भी मौत हो गई, परिवार के सात सदस्यों को भी मार दिया गया। सीबीआई की विशेष अदालत ने मुजरिमों को सजा दी जिसे बॉम्बे हाई कोर्ट ने बरक़रार रखा। ये संख्या में 11 थे जिन्हें पंद्रह अगस्त को गुजरात सरकार ने रिहा कर दिया। बेशक माफी का प्रावधान होता है लेकिन बलात्कार जैसे जघन्य मामलों में नहीं।

कई सवाल खड़े करती है बिलकिस के बलात्कारियों की रिहाई

यह ब्यौरा कई सवाल खड़े करता है। निर्भया के अपराधियों को फांसी, तो बिलकिस बानो के बलात्कारियों की रिहाई क्यों (Why the release of rapists of Bilkis Bano)? मामला जब सीबीआई का था तो राज्य सरकार माफी क्यों दे रही है? आरोपी पहले तिहाड़ जेल में थे, तो गुजरात की जेल में स्थानांतरित क्योंकर किये गए? गुजरात के विधानसभा चुनाव सामने हैं। क्या सरकार को इस बात का कोई डर नहीं कि इस रिहाई से जनता में गलत संदेश जाएगा?

क्या अब मज़हब देख कर मिलेगा न्याय?

बिलकिस बानो जैसों को न्याय अब मज़हब को देखते हुए मिलेगा? जकिया जाफरी, तीस्ता सीतलवाड़ को जेल और अब बिलकिस बानो के अपराधियों की रिहाई न्याय की किस किताब का प्रतिनिधित्व करती हैं? सर्वोच्च न्यायालय पहले भी बिलकिस बानो के हक़ में खड़ा हुआ था। क्या अब भी होगा?

प्रधानमंत्री के कथनी और करनी के फर्क

यह सब तब होता है जब प्रधानमंत्री 15 अगस्त को ही लाल किले की प्राचीर से नारी सम्मान को लौटाने की बात करते हैं। कथनी और करनी के इस फर्क को क्या जनता इन दिनों नज़रअंदाज़ कर रही है?

शायद हां, तभी किसी राजनीतिक दल की सरकार ऐसी दरिंदगी करने वालों को माफी के काबिल समझने लगती है। फिर विश्व हिंदू परिषद के दफ्तर में उनके मस्तक पर तिलक लगते हैं और मिठाइयां बांटी जाती हैं। इसके वायरल हो रहे वीडियो पार्टी के कार्यकर्ताओं को इस बात का संदेश भी देंगे कि हमने जो किया उसके बाद हमें रिहाई भी दिलाई जाती है और सम्मान भी। पार्टी अकेला नहीं छोड़ती। ठीक वैसे ही जैसे भाजपा के सांसद जयंत सिन्हा ने मॉब लिंचिंग के बाद ग्यारह अपराधियों के जेल से रिहा होते ही उनका फूलों की माला से स्वागत किया था।

पीड़ित का नाम बिलकिस बानो हो जाने से क्या नज़रिये में फर्क आ जाता है? निस्संदेह पार्टी को यह यकीन तो होगा ही कि इस फैसले से उनके मतदाताओं में उनकी पैठ नहीं घटने वाली। वास्तविक चिंता वोट बैंक की होनी चाहिए या उस सरोकार की जिससे देश की आधी आबादी भी सुरक्षित रहे। उन्नाव, हाथरस की घटनाओं से बहुत पहले राजस्थान के भटेरी गांव की भंवरी देवी भी हैं जिन्हें कोई न्याय नहीं मिला।

बलात्कारियों की कवच बन गई है सियासत

भंवरी देवी के साथ तीस साल पहले सामूहिक बलात्कार हुआ था। वे साथिन (आंगनवाड़ी कार्यकर्ता ) की ड्यूटी संभाल रही थीं और उन्होंने एक बाल विवाह को रुकवाया था।

भंवरी देवी का बाल विवाह रुकवाना कथित ऊंची जाति वालों को बरदाश्त नहीं हुआ। भंवरी देवी का हुक्का-पानी बंद कर दिया गया और इस पर भी शांति न मिली तो पांच लोगों ने उसके पति के सामने उसका बलात्कार किया। 22 सितंबर, 1992 के बाद से भंवरी देवी 'मन्ने न्याय चाहिए' की पुकार लगा रही हैं और तब से ही उनकी पुकार पर प्रहार का सिलसिला जारी है। घटना के 52 घंटे बाद तक उनका मेडिकल मुआयना नहीं किया गया। वे अपने पेटीकोट को ले लेकर भटकती रहीं। फिर कोर्ट ने तो यहां तक कह दिया कि कोई ऊंची जाति वाला नीची जाति से बलात्कार कैसे कर सकता है? उन पर दबाव बनाया गया कि मुकदमा वापस ले लें लेकिन उनका कहना था कि अगर ये मेरा मान लौटा सकते हैं तो मैं भी मुकदमा वापस ले लूंगी। यही बात उन्होंने गांव के बुर्जुगों से भी कही। इस बीच खूब राजनीतिक दांव-पेंच खेले गए। सियासत बलात्कारियों की कवच बन गई। भंवरी देवी के कई रिश्तेदारों ने भी उनसे मुंह मोड़ लिया। सिवाय उनके पति के।

इस व्यवस्था में स्त्री का भरोसा कैसे कायम रह सकता है?

व्यवस्था जब यूं डोल रही हो तब स्त्री का भरोसा इस व्यवस्था में कैसे कायम रह सकता है? उत्तर प्रदेश के हाथरस में 19 साल की दलित लड़की के साथ चार ऊंची जाति के लोगों ने बलात्कार किया। पंद्रह दिन बाद दिल्ली के अस्पताल में इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई। पुलिस ने जबरदस्ती गुपचुप उसका अंतिम संस्कार कर दिया।

व्यवस्था जब-तब एक स्त्री के सम्मान को यूं आग में भस्म करती रही है। क्यों नहीं एक स्त्री के मन में यह विचार आएगा कि जो भी हो रहा है उसे बर्दाश्त करते रहो क्योंकि न्याय मांगने की राह में व्यवस्था अक्सर उसके खिलाफ देखी गई है।

बलात्कारियों को सत्ता का संरक्षण

उन्नाव मामला 2017 में सामने आया था। पीड़िता की उम्र केवल सत्रह साल थी। भाजपा के पूर्व सदस्य और विधायक कुलदीप सिंह सेंगर को जेल हुई। न्याय मिलने की प्रक्रिया तब शुरू हुई जब उसने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के आवास के सामने खुद को जलाने की कोशिश की। उसके बाद उसके पिता को हिरासत में लिया गया जहां पीड़िता के पिता की मौत हो गई। बाद में पीड़िता भी नहीं रही।

ऐसे मामलों की फेहरिस्त लंबी है जहां की पीड़ा और फिर शोर सुनाई तो दे गया लेकिन न्याय का रास्ता बहुत मुश्किलों वाला रहा। ऐसे में महिलाएं अपनी आवाज घोंट देने में ही अपनी भलाई समझती हैं।

भविष्य के लिए खतरनाक है यह परिपाटी

बिलकिस बानो अब डरी हुई हैं और गहरे विषाद में आ गई हैं। वह कहती है कि मैंने अपनी बच्ची सलेहा की रूह की शांति के लिए दुआ पढ़ी। उनके पति का यह भी कहना था कि ऐसा कोई माफीनामा भी होता है, हमें बिलकुल पता नहीं था।

बिलकिस ने कई जानलेवा धमकियों के बीच इस लड़ाई को लड़ा था। सुनवाई गुजरात की बजाय महाराष्ट्र स्थानांतरित हुई। सर्वोच्च न्यायालय ने 50 लाख रुपए बतौर मुआवजा और नौकरी देने के निर्देश भी दिए। नौकरी मिलना शेष है लेकिन ये पैसे वे अब अपनी बड़ी होती बेटियों की शिक्षा पर खर्च करेंगी। क्या वाकई सरकार का यह भ्रम है या यकीन कि बिलकिस बानो जैसे मामलों से उसके मतदाताओं को कोई फर्क नहीं पड़ता?

हम वही समाज हैं जहां बाल विवाह, बहुविवाह, सती प्रथा के खिलाफ कानून बने जबकि समाज में इन कुप्रथाओं की जड़ें गहरी थीं। एक बेहतर समाज की रचना तभी संभव है जब हरेक के लिए लिंग भेद से परे जीने के समान अवसर हों। अगर कोई सत्ता प्रतिष्ठान यह मानने लगे कि बिलकिस बानो जैसे मामले उसके वोट बैंक को कतई प्रभावित नहीं करेंगे तो यह मान लेना चाहिए कि अब हम भी भीड़तंत्र या लोक लुभावन राजनीति के घेरे में आ चुके हैं; बिना इसकी परवाह किये कि यह भविष्य के लिए खतरनाक है।

- वर्षा भम्भाणी मिर्ज़ा

(लेखिका स्वतंत्र पत्रकार हैं)

मूलतः देशबन्धु में प्रकाशित आलेख किंचित् संपादन के साथ साभार

What kind of society are we creating by respecting rapists?

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