उत्तर प्रदेश में योगी सरकार नागरिक अधिकारों पर हमला पहले से ही करती आयी है, इसमें कोई सानी नहीं है। जो योगी जी बोलते हैं वही कानून बन जाता है। पिछले दिनों श्रम कानूनों को निलंबित करने और 12 घण्टे काम लेने के लिए कानून लेकर आये, हाईकोर्ट के हस्तक्षेप के बाद फिलहाल इसे वापस जरूर लेना पड़ा है। लेकिन मजदूरों के लोकतांत्रिक अधिकारों का हनन(Violation of democratic rights of workers) जारी है। आज ही बिजली के निजीकरण(Privatization of electricity) के लिए लाये जा रहे बिल के खिलाफ कर्मचारियों के 1 जून को राष्ट्रीय स्तर पर हो रहे सांकेतिक प्रदर्शन को उत्तर प्रदेश में प्रतिबंधित कर दिया। जहां तक किसानों का प्रश्न है, देश भर में किसान संगठनों ने अभियान चलाया। जय किसान आंदोलन समेत 200 से ज्यादा वाम जनवादी किसान संगठन इसमें शामिल रहे। हम लोगों से जुड़ा मजदूर किसान मंच भी इसमें शामिल था। इसमें राष्ट्रीय स्तर पर कर्ज माफी और फसलों के लागत के डेढ़ गुना दाम पर खरीद जैसी मांगें थी, उत्तर प्रदेश के गन्ना किसानों के बकाया का सवाल भी उठाया गया। लेकिन मोदी सरकार ने न तो कर्ज माफ किया और न ही लाभकारी मूल्य दिया, सच्चाई यही है कि भले ही सरकार ढ़िढोरा पीटे कि किसानों की मांगें पूरी हो गई हैं।
Advertisment
2013 में भूमि अधिग्रहण का नया कानून बना, मोदी सरकार पूरी कोशिश में थी कि इस कानून को पलट दिया जाये, इसके खिलाफ धरना प्रदर्शन हुए और आंदोलन के दबाव में सरकार पीछे हटी। मीडिया रिपोर्ट्स है कि उत्तर प्रदेश में भूमि अधिग्रहण कानून-13 के प्रावधानों को बदल कर किसानों की कृषि योग्य जमीनों को उद्योगों को देने की घोषणा की गई है। इस बदलाव से इसमें कृषि भूमि को औद्योगिक इकाइयों व औद्योगिक पार्कों के लिए लीज पर दिया जा सकेगा। इसके लिए सरकार ने राजस्व संहिता में बदलाव करने की रजामंदी दे दी है।
Advertisment
कृषि भूमि के उद्योगों के उपयोग के लिए परिवर्तन के लिए 15-20 फीसद शुल्क रखने पर भी सहमति बन गई है। इस नये बदलाव से सभी एक्सप्रेस वे के दोनों ओर एक किमी तक की जमीनों के अधिग्रहण की प्रक्रिया आसान हो जायेगी। प्रदेश में तो पहले से ही इंडस्ट्री के लिए पर्याप्त जमीन उपलब्ध है तब इस नये कानून की क्या जरूरत है?
Advertisment
Uttar Pradesh is in a terrible state
Advertisment
Rajesh Sachan राजेश सचान, युवा मंच
उत्तर प्रदेश में भयावह स्थिति है कि किसानों के लिए कुछ नहीं किया गया। वैसे अब लाकडाउन का कोई तर्क नहीं है फिर भी ओपीडी बंद हैं, मेडिकल सुरक्षा इंतजाम कर ईलाज किया जा सकता है। गंभीर बीमारियों से ग्रसित लोगों का भी ईलाज नहीं हो पा रहा, संक्रामक बीमारियों का प्रकोप प्रदेश में बढ़ रहा है लेकिन उसका भी कोई ईलाज नहीं हो रहा है, अगर सरकार ने इनके ईलाज का इंतजाम नहीं किया, तो इन बीमारियों से बड़े पैमाने पर लोग मर सकते हैं। बहुत सारे जिलों से जमीनी स्तर से रिपोर्ट मिल रही है कि क्वारंटाईन की व्यवस्था नहीं है, जहां है भी वहां दुर्दशा है। डाक्टर तक के लिए तो पीपीई किट आदि का इंतजाम आम तौर पर नहीं हैं। नाम सार्वजनिक न करने की शर्त पर खुद कई सरकारी डाक्टरों ने ऐसा बताया।
सब मिलाजुला कर उत्तर प्रदेश की स्थिति वैसे ही बदतर है जैसे अन्य राज्यों की है। इसलिए योगी सरकार और भाजपाबेमतलब में अपनी उपलब्धियों का ढिंढोरा न पीटे तो बेहतर होगा।